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इटली और फ्रांस की प्रदर्शनियों में 80 वर्षीय आदिवासी जुधैया बाई की पेंटिंग

इटली और फ्रांस की प्रदर्शनियों में 80 वर्षीय आदिवासी जुधैया बाई की पेंटिंग

Tuesday November 26, 2019 , 3 min Read

जिंदगी के चार-पांच दशक मजदूरी में बिता चुकीं मध्य प्रदेश की अस्सी वर्षीय आदिवासी विधवा जुधैया बाई की पेंटिंग्स अब विश्व-कला दीर्घाओं में धूम मचा रही हैं। अपने गांव के वैश्विक मानचित्र पर उभरने से रोमांचित जुधैया बाई कहती हैं- 'पेंटिंग मुझे दूसरी दुनिया में ले जाती है, जहां मैं एक पक्षी की तरह स्वतंत्र विचरती हूं।' 

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मध्य प्रदेश के तीन मुख्य आदिवासी समुदायों में एक है बैगा जनजाति, उन्ही में एक बैगा समुदाय से उमरिया (म.प्र.) के गांव लोरहा की 80 वर्षीय आदिवासी विधवा जुधैया बाई वनाच्छादित इलाके में अपनी विश्व-प्रसिद्ध पेंटिंग्स से परियों की कहानी जैसा सुखद एहसास करा रही हैं। हाल ही में, इटली के मिलान शहर और पेरिस (फ्रांस) की इंटरनेशनल प्रदर्शनियों में भी उनकी पेंटिंग्स प्रदर्शित हो चुकी हैं। उनकी एक पेंटिंग तो मिलान की प्रदर्शनी के लिए रचित आमंत्रण पत्र के कवर पेज पर भी प्रकाशित हुई है। 


जुधैया बाई की पेंटिंग्स भोपाल, खजुराहो, मंडावी (धार) और उज्जैन में भी प्रदर्शित हो चुकी हैं। विगत 40 वर्षों से पेंटिंग कर रही


जुधैया बाई कहती हैं,

'पेंटिंग मुझे दूसरी दुनिया में ले जाती है, जहां मैं एक पक्षी की तरह स्वतंत्र विचरती हूं। अपने गांव को वैश्विक मानचित्र पर रखने और यहां की परंपराओं को जीवित रखने का उनके पास यही एक तरीका है। उनको खुशी है कि उनकी पेंटिंग को अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर पहचाना जा रहा है।'


बुजुर्ग कलाकार जुधैया बाई अपने जीवन के पांच दशक मज़दूरी करते हुए बिता चुकी हैं। उन्हे अपनी बेटी और दो बेटों को पालने के लिए लकड़ी की कटाई से लेकर देसी शराब बेचने तक के काम करने पड़े हैं। उनके पति की लगभग चार दशक पहले मृत्यु हो गई थी। उसके बाद वह पेंटिंग करने लगीं। वह हर वो चीज अपनी पेंटिंग्स में उतार सकती हैं, जिसे एक बार गौर से देख लेती हैं। अब तो वह अपना ज्यादातर वक़्त पेंटिंग में ही बिताती हैं।

 




शांति निकेतन से स्नातक उनके कला-शिक्षक आशीष स्वामी को उन पर गर्व है। वह कहते हैं कि बिना कोई शिक्षा लिए जोधाबाई बाई बैगा की उपलब्धि आदिवासी समुदाय के अन्य लोगों को इस तरह की गतिविधियों में शामिल होने के लिए प्रेरित करती है। अपने दुख-दर्द को पीछे छोड़ते हुए वह हमेशा अब अपने हुनर पर ध्यान केंद्रित किए रहती हैं।


उनकी पेंटिंग का इटली और फ्रांस में प्रदर्शन पूरे आदिवासी समुदाय के लिए गर्व का विषय है। वह अपनी ज्यादातर पेंटिंग्स में वन्यजीवों, वनस्पतियों, श्रमशील लोगों को चित्रित करती हैं। वर्ष 2008 में स्वामी ने जब लोरहा गाँव में बैगाणी चित्रकला शैली की पेंटिंग प्रदर्शिनी लगाई थी, तभी उनकी जुधैया बाई से पहली मुलाकात हुई थी। 


इटली और फ्रांस में प्रदर्शन के दौरान जुधैया बाई की पेंटिंग देखकर विश्व के जाने-माने कलाधर्मियों का कहना था कि वह अपनी पेंटिंग में गुलाबी और लाल रंगों का बड़े सधे हाथों से इस्तेमाल करती हुई दुर्लभ सृजन करती हैं, वैसा संतुलित परिदृश्य उभार पाना तो कई बार अनुभवी कला-कर्मियों के लिए भी आसान नहीं होता है। उनके विविधरंगी चित्रों में वन्य जीवन के साथ मानवीय सह-अस्तित्व के अद्भुत रेखांकन हुए हैं।