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रिसर्च : बिल्ली की संगत से समाप्त हो जाता है तनाव देने वाला 'कॉर्टिसोल हॉरमोन'

रिसर्च : बिल्ली की संगत से समाप्त हो जाता है तनाव देने वाला 'कॉर्टिसोल हॉरमोन'

Tuesday November 26, 2019 , 6 min Read

"बिल्ली के रास्ता काटने की बात अब पूरी तरह मिथक साबित हो चुकी है। पूरे विश्व में लगातार उसकी लोकप्रियता बढ़ने से इधर उन पर रिसर्च में भी तेजी आई है। हाल के शोध में पता चला है कि उनकी संगत से तनाव देने वाला 'कॉर्टिसोल हॉरमोन' घट जाता है। चीन की कंपनी ने पहली क्लोन बिल्ली बनाई है। बिल्ली पालने का पहला संकेत क़रीब दस हज़ार साल पहले मध्य-पूर्व के नियोलिथिक युग में मिलता है।"

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फोटो: Shutterstock

बिल्ली को पालने का सबसे पहला संकेत क़रीब दस हज़ार साल पहले मध्य-पूर्व के नियोलिथिक युग में मिलता है। उस समय उसे चूहों से अनाज के भंडारों की हिफ़ाज़त के लिए पाला जाता था। हाल ही में चीन की कंपनी सिंगोजीन ने देश की पहली क्लोन बिल्ली बनाई है। इसका जन्म 21 जुलाई 2019 को हुआ। यह गार्लिक नामक पालतू बिल्ली की हूबहू नकल है।


क्लोन का जन्म गार्लिक की मौत के सात महीने बाद हुआ। इसे तैयार कराने वाले 23 वर्षीय हुआंग यू ने बताया कि वह गार्लिक को परिवार का हिस्सा मानते थे। उसकी मौत से बहुत दुखी थे लेकिन उसका दूसरा अवतार देखकर खुश हैं। एक बिल्ली का क्लोन तैयार करने में करीब 25 लाख रुपये खर्च हो जाते हैं। पैट फेयर एशिया के अनुसार, चीन में पालतू पशुओं से संबंधित खर्च का कारोबार 23.7 अरब डॉलर सालाना तक पहुंच चुका है।


एक सर्वे के मुताबिक, अमेरिका में लगभग नौ करोड़ पालतू बिल्लियां हैं और दुनिया भर में इनकी संख्या लगभग 50 करोड़ है। ब्रिटेन के हर चौथे घर में बिल्ली पाली जाती है। तुर्की में तो बिल्लियां इस्तांबुल की पहचान बन चुकी हैं। हाल ही में वहां की बिल्लियों पर एक डॉक्यूमेंट्री भी बनी है। अब पूरी दुनिया में बिल्लियों पर तेजी से रिसर्च हो रहे हैं।

'जर्नल एईआरए ओपन' में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक, शोधकर्ताओं ने हाल ही में एक शोध में इस बात का पता लगाया है कि बिल्ली पाल कर अपना मूड सुधारा जा सकता है। उनकी संगत से तनाव पैदा करने वाला कॉर्टिसोल हॉरमोन घट जाता है।


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'रॉयल सोसाइटी जर्नल बायोलॉजी लेटर्स' में वैज्ञानिकों ने बताया है कि बिल्लियों को घर के अंदर रखना मुफ़ीद होता है।


अल्बामा के औबर्न विश्वविद्यालय के फॉरेस्ट्री एंड वाइल्डलाइफ साइंसेज स्कूल की शोधकर्ता केलिघ चाल्कोवस्की का कहना है कि बिल्ली को घर के अंदर रखने से संक्रामक बीमारी से उसे बचाया जा सकता है।


बिल्ली के बर्ताव में ज्यादा उतार-चढ़ाव की वजह इंसान से करीबी के साथ ही उनके जीन्स में भी होती है। यद्यपि वह प्रायः वह इंसानों से छिप कर रहना चाहती है, देखते ही दूर भागती है लेकिन वह इंसानों के साथ ज्यादा समय बिताना पसंद करती है। 


एक्सपर्ट के मुताबिक, दरअसल, बिल्ली आज़ाद ख़याल होती है। वह अक्सर अकेले रहना पसंद करती है, जिसे लोग उसकी खुदगर्जी समझने की गलती कर बैठते हैं।


बिल्ली पालते समय उसके बारे में ये खास जानकारी जरूर होनी चाहिए कि उसका पसीना पंजों से निकलता है।


बिल्ली दिन का ज्यादातर वक़्त सोने में गुजारती है। अविश्वसनीय रूप से अंधेरे में उसका पेशाब चमकता है। वह मीठी चीज़ों का स्वाद नहीं ले पाती है। नर बिल्ली का बायां और मादा का दाया पंजा ज़्यादा सक्रिय होता है।

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बिल्ली समंदर का भी पानी पी लेती है। उसकी किडनी में इतनी क्षमता होती है कि नमक को पानी से अलग कर देती है। सामान्य तौर पर वह खाद्य पदार्थ को तीन बार चख लेने के बाद, चौथी बार भरोसे के साथ उसे खाती है।


कुत्ते अपने जंगली दौर की खासियतें भुला चुके हैं लेकिन बिल्लियों में अपने पुरखों के गुण अब भी बचे हुए हैं। बिल्लियां ऐसे पूर्वजों की वंशज हैं, जो सामाजिक प्राणी नहीं थे।


इसीलिए बिल्ली आत्मनिर्भर और एकाकी जीवन जीना चाहती है। वह अपना ख़याल रख सकती है। उसकी लोकप्रियता बढ़ती जा रही है। बिल्ली के रास्ता काटने की बात अब पूरी तरह से मिथक साबित होती जा रही है।


ग्रम्पी नाम की बिल्ली तो इतनी अधिक लोकप्रिय थी कि फेसबुक पर उसके 85 लाख, इंस्टाग्राम पर 25 लाख और ट्विटर पर 15 लाख से अधिक फॉलोअर्स थे।


कैट एक्सपर्ट बताते हैं कि बिल्ली अपने बॉडी लैंग्वेज से सामने वाले के साथ संवाद करती है। यद्यपि उसके संकेत समझना आसान नहीं होता है। वह अपने मूड के मुताबिक कभी पूंछ को उलटती-पुलटती है, कान हिलाती है अथवा मीठे-मीठे ग़ुर्राती है। 'म्याऊं' उसका दोस्ताना अथवा सामने वाले से संतुष्ट होने का इशारा होता है। रिसर्च से पता चला कि ये आवाज़ उसके कंठ से निकलती है।


जब भी वह सांस लेती, छोड़ती है, आवाज़ निकलती है। वैज्ञानिकों के मुताबिक इसका सीधा ताल्लुक़ उसके दिमाग़ के एक हिस्से न्यूरल ऑसिलेटर से होता है। कई बार वह तब भी म्याऊं करती है, जब अकेली होती है। किसी बिल्ली को म्याऊं करना एकदम अच्छा नहीं लगता और किसी को बहुत सुखद लगता है। कोई-कोई बिल्ली तो सुलाते समय अथवा मरते वक़्त भी म्याऊं की आवाज़ निकालती है।


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स्टडी से पता चला है कि बिल्ली, ज्यादातर खुश होने पर म्याऊं करती है और कई बार वह नर्वस होने पर, तनाव या डर की स्थिति में भी ऐसी आवाज़ निकालती है। वह म्याऊं कहकर अपनी दूसरी भावनाओं का भी इज़हार करती है।


बिल्ली पैदा होने के कुछ दिन बाद से ही म्याऊं की आवाज़ निकालने लगती है। इस आवाज़ की मदद से मां उस तक दूध पिलाने पहुंचती है। बड़ी होकर भी वह भूखा होने पर खाते-पीते समय बचपन की इस आवाज की आदती होती है।


बिल्ली नए माहौल में पहुंचते ही म्याऊं-म्याऊं करने लगती है। वह जब खाना मांगती है तो म्याऊं की ट्यून अलग तरह की होती है। कुछ जानकारों का यह भी कहना है कि म्याऊं की आवाज़ से असल में बिल्ली ख़ुद को सहलाती है। अपनी दिमाग़ी मालिश करती है। यही वजह है कि झपकी लेते वक़्त भी वह गुर्राने की आवाज से अपनी थकान मिटाती है।


एक ताज़ा स्टडी में पता चला है कि बिल्ली पालना, तनाव से बचने का सबसे अच्छा ज़रिया है। इससे दिल की बीमारी का ख़तरा एक तिहाई तक घट जाता है। उसकी म्याऊं सेहत के लिए अच्छी होती है।

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उसके म्याऊं में सुखद एहसास होता है। वह अपने को अकेला छोड़ दिए जाने का भी संकेत करती है लेकिन आम तौर से उसके ऐसे जज़्बातों को अनसुना-अनदेखा कर दिया जाता है।


बिल्ली जब इंसान के शरीर से अपने बदन को रगड़ती है, तो वह उसका आत्मीयता जताने का एक संकेत होता है। बिल्ली असल में अपने बदन की बू को इंसानों के शरीर में भेजती है और इंसान के शरीर की बू को अपने बदन से लगाती है।


ये असल में दोनों के बदन की बू को मिलाकर एक ऐसी बू तैयार करने के इरादे से किया जाता है, जो दोस्तों और दुश्मनों में फ़र्क़ बताए। सहज भाव से बैठी बिल्ली क़रीबी ताल्लुक़ की इच्छा जताती है।


वह बड़े सलीक़े से रहना पसंद करती है। अपना खाना-पानी समय और सही जगह पर चाहती है और गंदगी को दूर करने से ख़ुश हो जाती है।


जब उसकी ज़रूरत की हर चीज़ सही तरीक़े से होती है, तो फिर वो इंसानों से ताल्लुक़ बनाने की कोशिश करती है। घर पहुंचने पर घूरने की बजाय वह बड़ी तन्मयता से निहारती है या फिर जम्हाई लेकर उसका इजहार करती है। वह ख़ामोशी से ये कह रही होती है कि आप को देख कर उसे अच्छा लगा।