मध्यप्रदेश का पहला बैगलेस विद्यालय: अब स्कूल बैग के बोझ तले झुकते नहीं बच्चों के कंधे
एक बरामदा और एक कमरे में बना यह विद्यालय टीएलएम की साज-सज्जा के लिए भी काफी सुर्खियों में है. प्रीति का यह स्कूल ‘बैगलेस’ है. यानि कि यहां बच्चे खाली हाथ आते हैं और खाली हाथ जाते हैं. 14 नवंबर 2022 को इस विद्यालय में ‘बैगलेस मुहिम’ की शुरुआत की गई.
मध्यप्रदेश के शाजापुर ज़िले में स्थित कालापीपल प्रखंड के भरदी गाँव का प्राथमिक विद्यालय बेहद कम संसाधनों में बच्चों को क्रिएटिव तरीके से पढ़ाने के लिए चर्चा में है. विद्यालय की शिक्षिका प्रीति उपाध्याय जब विद्यालय प्रांगण में प्रवेश करती हैं तो बच्चे जोश से भर जाते हैं. ऐसा लगता है जैसे यह रिश्ता किसी टीचर और स्टूडेंट का नहीं, बल्कि इनके बीच कोई गहरा आत्मीय संबंध हो.
एक बरामदा और एक कमरे में बना यह विद्यालय टीएलएम की साज-सज्जा के लिए भी काफी सुर्खियों में है. प्रीति का यह स्कूल ‘बैगलेस’ है. यानि कि यहां बच्चे खाली हाथ आते हैं और खाली हाथ जाते हैं. 14 नवंबर 2022 को इस विद्यालय में ‘बैगलेस मुहिम’ की शुरुआत की गई. अब बच्चे इसमें ढल गए हैं, बैग के बोझ तले अब उनके कंधे झुक नहीं रहे हैं.
प्रीति ना सिर्फ कम संसाधनों में बच्चों को पढ़ा रही हैं, बल्कि समय-समय पर उन्होंने बच्चों के बीच बैग और स्लैट आदि बांटने का भी काम किया है. प्रीति कहती हैं कि हमने यही सोचकर काम किया है कि ये सभी बच्चे अपने हैं. हम इनको जितनी खुशी दे सकते हैं, देते हैं. जब तक सांस है मैं इन बच्चों के लिए काम करती रहूंगी.
मिशन अंकुर के बाद टीएलएम में हुए बदलाव पर बात करते हुए प्रीति बताती हैं, “अब हम पाठ योजना के मुताबिक पढ़ाते हैं और पाठ योजना बहुत उम्दा है. पाठ योजना में बनी हुई चीज़ें मिल रही हैं, जिससे हमें आसानी होती है.”
प्रीति का जुनून महज़ बच्चों को गुणवत्ता शिक्षा देने तक ही सीमित नहीं है. समय-समय पर वो विद्यालय में संसाधनों को दुरुस्त कराने का भी काम करती हैं. हाल ही में उन्होंने विद्यालय भवन के बरामदा निर्माण के वक्त फंड के पैसे कम पड़ने के कारण अपना पैसा मिलाकर काम पूरा कराया.
प्रीति का कहना है कि पहले कुछ बच्चे हमेशा पीछे की बेंचों में बैठते थे या यदि उन्हें नीचे बिठाकर पढ़ाया जा रहा है तो वे अक्सर पीछे बैठे पाए जाते थे मगर अब ये चीज़ें खत्म हो गई हैं. अब कक्षा की गतिविधियों में सभी बच्चों की बराबर की भागीदारी होती है.
14 नवंबर 2022 से प्रीति ने अपने विद्यालय में बच्चों का जन्मदिन मनाने की भी शुरुआत की है. प्रीति कहती हैं, “बच्चे घर जाकर अपनी माँओं से कहते हैं कि हमारा बर्थडे जितने अच्छे से मनाया जाता है, क्या कभी तुमने ऐसे मनाया है अपना बर्थडे?”
प्रीति के विद्यालय में लगातार अभिभावकों और शिक्षकों के बीच पेरेन्ट्स मीटिंग के ज़रिये बातें होती हैं. प्रीति बताती हैं कि स्कूल के बैगलेस होने के बाद शुरुआती दिनों में पेरेन्ट्स को लगता था कि पता नहीं बच्चे स्कूल में क्या ही पढ़ते होंगे! मगर जब वे पेरेन्ट्स मीटिंग में स्कूल आते हैं और यहां पर बच्चों की कॉपीज़ चेक करते हैं तो हैरान रह जाते हैं.
प्रीति चाहती हैं कि मिशन अंकुर के तहत शुरू हुई इस मुहिम में उनके साथ काम करने वाले सहकर्मी भी प्रेरित और उत्साहित रहें. इसलिए हाल ही में उन्होंने अपने विद्यालय की सहयोगी शिक्षिका को सर्टिफिकेट से नवाज़ते हुए एक घड़ी भी भेंट दी. वो कहती हैं कि सहयोगी शिक्षिका तो वैसे ही समय की बड़ी पक्की हैं मगर फिर भी ये घड़ी उन्हें हमेशा समय की अहमियत को याद दिलाती रहेगी.
स्कूल की दिनचर्या पर बात करते हुए प्रीति बताती हैं कि सबसे पहले सुबह जब बच्चे विद्यालय पहुंचते हैं तो आधे घंटे की प्रार्थना होती है. इस बीच बच्चे न्यूज़ पढ़कर सुनाते हैं. उसके बाद जब कक्षाएं शुरू होती हैं तो एकदम से पढ़ाई पर हम नहीं जाते, पहले हम बातचीत करते हैं. बच्चे बताते हैं कि मेरा यहां ऐसा हुआ-वैसा हुआ. फिर कक्षाएं शुरू होती हैं.
प्रीति का कहना है कि मिशन अंकुर के तहत जो शिक्षा दी जा रही है, बच्चों को उसमें काफी व्यवस्थित काम मिला है. अगर ध्वनि जागरुकता की बात करें तो बच्चों को एक-एक ध्वनि समझ आ रही है.
ज़ाहिर तौर पर यदि स्थितियां इसी तरह से अनुकूल रहीं तो वह दिन दूर नहीं जब साल 2026 के मिशन अंकुर का लक्ष्य पूरा हो जाएगा. शिक्षकों की ये कोशिशें सरकारी स्कूलों को लेकर लोगों के ज़हन में बैठी नकारात्मक मानसिकता को भी खत्म कर रही हैं.