बच्चों का दिल जीतने वाले शिक्षक गोविंद विश्वकर्मा की अनूठी कहानी
गोविंद अपने स्कूल के तमाम शिक्षकों के साथ मिलकर धन इकट्ठा करते हैं, ताकि गरीब बच्चों की शिक्षा को सहारा दे सकें. वो हर वर्ष जाड़े के महीने में बच्चों के लिए स्वेटर तैयार करवाते हैं. साथ ही बच्चों में बैग भी बांटते हैं.
मध्यप्रदेश के शाजापुर ज़िले के कालापीपल प्रखंड में बसा है गाँव खारदों कलां, जहां के प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक गोविंद विश्वकर्मा अपनी अदभुत शिक्षण शैली के ज़रिये दूर-दराज़ के गाँवों तक मशहूर हैं.
गोविंद विश्वकर्मा का संघर्ष तब शुरू हुआ जब उनके पिता की मौत के बाद उन्हें अपने परिवार का पालन-पोषण करने के लिए नौकरी करनी पड़ी. उनका मन शिक्षक बनने का नहीं था और ना ही इसमें कोई दिलचस्पी थी. धीरे-धीरे छात्रों के साथ उनका एक मजबूत रिश्ता बनाने लगा, जो आज मिसाल बन गए हैं.
गोविंद अपने स्कूल के तमाम शिक्षकों के साथ मिलकर धन इकट्ठा करते हैं, ताकि गरीब बच्चों की शिक्षा को सहारा दे सकें. वो हर वर्ष जाड़े के महीने में बच्चों के लिए स्वेटर तैयार करवाते हैं. साथ ही बच्चों में बैग भी बांटते हैं.
गोविंद ने एक और महत्वपूर्ण पहल शुरू की है. वो यह कि वो अपने और अन्य शिक्षकों के जन्मदिन में खर्च होने वाली राशि से कुछ पैसे बचाकर ज़रूरतमंद बच्चों के लिए ज़रूरत की चीज़ें मंगवाते हैं ताकि उनकी मदद हो पाए. वो कहते हैं कि उन्होंने अपने विद्यालय को अपना घर मान लिया है और इसके साथ ही उन्होंने बच्चों को अच्छे तरीके से पढ़ाने के सिद्धांत को भी अपनाया है.
गोविंद की यह पहल उनके विद्यालय में बच्चों के लिए जीवन कौशल को बढ़ावा देने का भी काम कर रही है. उन्होंने शिक्षा की गतिविधियों को खेल-खेल में बदल दिया है और बच्चों के सामाजिक और पर्यावरणिक परिवेश को भी महत्वपूर्ण बना दिया है.
गोविंद कहते हैं, “सरकारी स्कूलों को लेकर लोगों की जो धारणाएं हैं हमें वो बदलनी है. हम चाहते हैं कि आने वाले वक्त में सरकारी स्कूलों से पढ़े बच्चे भी अपने सपनों को पूरा कर पाएं.”
मिशन अंकुर पर बात करते हुए गोविंद कहते हैं कि इसके आने से हमें पढ़ाने में काफी सहूलियत हुई है. कल हमें क्या पढ़ाना है यह पहले से तय रहता है और सबसे अच्छी बात यह है कि अब सभी बच्चे सीख रहे हैं. पहले सारे वर्ण बच्चे एक बारे में सीखते थे अब एक दिन में हम केवल 1-2 वर्ण पढ़ाते हैं.
इन बच्चों में से अधिकांश बेहद गरीब तबके से हैं लेकिन गोविंद उनकी मदद करने के लिए पूरी तरह से समर्पित हैं. हैंडमेड और रेडिमेड टीएलएम की मदद से वो अपने छात्रों को बेहतर शिक्षा प्रदान कर रहे हैं. उनके द्वारा आयोजित ‘बाल सभा’ ने छात्रों को सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से परिपक्व बनाया है.
कक्षा 3 के छात्र निर्मल माल्वी कहते हैं कि उनका स्कूल अब उनके लिए घर जैसा लगता है और वह रोज़ स्कूल आने के लिए बेताब रहते हैं. उनके अनुसार, गोविंद द्वारा सुनाई जाने वाली उत्कृष्ट कहानियों ने उनकी रुचि को बढ़ावा दिया है.
विद्या देवड़ा, कक्षा 3 की छात्रा कहती हैं कि पहले स्कूल के नाम से डर लगता था लेकिन अब वह स्कूल को अपना दूसरा घर मानती हैं. आगे चलकर विद्या डॉक्टर बनना चाहती हैं. विद्या के साथ-साथ अन्य बच्चों के सपनों को पूरा करने के लिए विद्यालय के तमाम शिक्षक बड़ी शिद्दत से मेहनत कर रहे हैं.
स्थानीय सरपंच गिरवर सिंह परमार कहते हैं, “ये शिक्षक बच्चों को बेहतर जीवन की ओर अग्रसर करने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं और हमें इन पर गर्व है. इस विद्यालय के कारण अब हमारे गाँव की चर्चा दूर-दूर तक होने लगी है. अब लोग हमारे गाँव को मॉडल के तौर पर देखते हैं.”
गोविंद विश्वकर्मा का यह संघर्ष एक महत्वपूर्ण संदेश देता है कि यदि हमारे पास अच्छे संसाधन ना हों, तो भी हम शिक्षा के क्षेत्र में सकारात्मक परिवर्तन ला सकते हैं. गोविंद विश्वकर्मा जैसे शिक्षक हमारे समाज के लिए प्रेरणा स्रोत होते हैं और उनका काम बच्चों के भविष्य को बेहतर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.