क्यों भारत में प्रैक्टिस के लिए टेस्ट नहीं पास कर पा रहे हैं विदेशों में पढ़ने वाले मेडिकल छात्र?
विदेश जाकर मेडिकल कि पढ़ाई करने वाले छात्रों को भारत में प्रैक्टिस के लिए अनिवार्य टेस्ट पास करने में कठिनाई हो रही है। बिना यह टेस्ट पास किए ये मेडिकल छात्र भारत में प्रैक्टिस नहीं कर सकेंगे।
विदेश जाकर पढ़ाई करने वाले डॉक्टरों के लिए भारत में प्रैक्टिस करना मुश्किल हो रहा है और उसका कारण है भारत में प्रैक्टिस करने के लिए अनिवार्य स्क्रीनिंग टेस्ट को पास करना।
गौरतलब है कि भारत में एमबीबीएस की पढ़ाई के लिए सीट हासिल करना काफी मुश्किल है, ऐसे में बड़ी संख्या में छात्र विदेशी कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में जाकर अपनी मेडिकल की पढ़ाई पूरी कर रहे हैं।
84 प्रतिशत मेडिकल छात्र हुए फेल
ये छात्र जहां 5 से 6 साल में अपनी पढ़ाई पूरी कर रहे हैं, वहीं पढ़ाई में लाखों रुपये भी खर्च हो रहे हैं, बावजूद इसके ताजा आंकड़ों के अनुसार विदेश में पढ़ने वाले कुल डॉक्टरों में से 84 प्रतिशत डॉक्टर ऐसे हैं, जो भारत में प्रैक्टिस करने के लिए जरूरी टेस्ट भी पास नहीं कर सके हैं।
गौरतलब है कि भारत का कानून भारत के छात्रों को विदेश जाकर मेडिकल की पढ़ाई करने की अनुमति तो देता है, लेकिन उन्ही छात्रों को भारत आकर प्रैक्टिस करने के लिए फ़ॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट एग्जामिनेशन भी पास करना होता है।
NBE कराता है परीक्षा
यह परीक्षा नेशनल बोर्ड ऑफ एग्जामिनेशन कराता है, जिसे पास करना विदेश में पढ़े छात्रों के लिए अनिवार्य है। इस परीक्षा में पास होने के बाद ही मेडिकल छात्रों को भारत में प्रैक्टिस की अनुमति जारी की जाती है।
इसके पहले केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने भी यह स्वीकार किया था कि विदेश जाकर मेडिकल की पढ़ाई करने वाले छात्रों को एफ़एमजी परीक्षा पास करने में कठिनाई हो रही है।
गिर रहा है प्रतिशत
गौरतलब है कि यह पहली बार नहीं है कि विदेश जाकर पढ़ने वालों छात्रों को इस परीक्षा में कठिनाई का सामना करना पड़ा हो। साल 2011 के आंकड़ों की बात करें तब विदेश से मेडिकल की पढ़ाई कर आए महज 26.94 प्रतिशत छात्र ही इस परीक्षा को पास कर सके थे। साल 2016 में इन मेडिकल छात्रों की सफलता का प्रतिशत गिरकर 9.44 रह गया था, जबकि 2018 में यह 11 फीसदी रहा।
हालांकि बीते कुछ सालों में विदेश से मेडिकल की पढ़ाई करने वाले छात्रों ने एनबीई पर जानबूझकर कठिन पेपर बनाने का आरोप लगाया है। छात्रों का आरोप है कि इस तरह से निजी मेडिकल कॉलेजों को फायदा पहुंचाया जा रहा है।