गोवा की ये 'पैडवुमन' घर पर ही करती हैं बायोडिग्रेडेबल सैनिटरी पैड्स का उत्पादन
"गोवा की जयश्री परवार बायोडिग्रेडेबल सैनिटरी पैड्स का उत्पादन कर रहीं हैं जो ज्यादातर देवदार की लकड़ियों से बने कागज से बने हुए हैं। उनके नेतृत्व में इस स्वयं सहायता समूह ने साल 2015 से अब तक 2000 सैनिटरी पैड्स का उत्पादन किया है।"
हमारे भारतीय समाज में मासिक धर्म को आज भी टैबू माना जाता है। लोग इस पर खुल कर बात करने से झिझक महसूस करते हैं। लेकिन बात यदि मासिक धर्म ये जुड़े स्वास्थ्य और स्वच्छता की है, तो अभी बहुत सारे लोगों को जागरूक और शिक्षित करने की आवश्यकता है।
हालांकि यह बात काबिले तारीफ है कि राज्य सरकारों ने विभिन्न एनजीओ के साथ और विभिन्न व्यक्तियों के साथ मिलकर मासिक धर्म के इर्द-गिर्द आधारित मुद्दों को संबोधित करने की दिशा में एक सकारात्मक कदम उठाया है। इसी दिशा में काम कर रही हैं गोवा की जयश्री परवार, जो अपने तीन दोस्तों के साथ मिलकर बायोडिग्रेडेबल सैनिटरी पैड्स का उत्पादन कर रही हैं।
वह कहती हैं,
"बायोडिग्रेडेबल सैनिटरी पैड्स, जैसा कि हम सभी जानते हैं पर्यावरण के अनुकूल है, हमारा उद्देश्य है की उनको किफायती बनाया जाय।"
जय श्री महिलाओं के स्वयं सहायता समूह 'सहेली' का नेतृत्व करती हैं, जो कि मलगांव के अंतर्गत पणजीम (गोवा) से तकरीबन 45 किलोमीटर दूर है। जयश्री ने साल 2015 में पर्यावरण के अनुकूल बायोडिग्रेडेबल सैनिटरी पैड्स का उत्पादन करने के लिए अपने काम की शुरुआत की। इनके नेतृत्व में बनाये जा रहे अधिकतर सैनिटरी पैड्स देवदार की लकड़ियों से बने कागज के बने होते हैं, हालांकि यह उत्पादन केंद्र सिलिकॉन पेपर, बटर पेपर, गैर बुना हुए कपड़े से भी पैड्स बनाता है। यहां चार मशीनों द्वारा 100 पैड्स प्रतिदिन का उत्पादन होता है।
अभी तक 'सहेली' ने दो हजार पैड्स का उत्पादन तथा विपणन कर लिया है। ये पैड्स, जिनको 'सखी' का नाम दिया गया है इन्होंने अंतरराष्ट्रीय प्रसिद्धि हासिल कर ली है और इन्हें दूसरे देशों में ऑनलाइन चैनल्स के माध्यम से भी बेचा जा रहा है।
जयश्री कहती हैं,
"हमें स्थानीय लोगों से जबरदस्त प्रतिक्रिया नहीं मिली, यह सामान्य था। लेकिन ऑनलाइन मांग जबरदस्त है।"
साथ ही वह ये भी कहती हैं,
"सामान्य सैनिटरी पैड्स के साथ यह बुनियादी दिक्कत है कि वह उपयोग करने के बाद बायोडिग्रेडेबल नहीं होते हैं, लेकिन जिन पैड्स का उत्पादन हम कर रहे हैं वे देवदार की लकड़ी से बने कागज के हैं, जो मिट्टी के संपर्क में आते हीं 8 दिनों के अंदर नष्ट हो जाते हैं।
इस उद्देश्य के पीछे के प्रेरणा स्त्रोत
सामाजिक कार्यकर्ता अरुणाचलम मुरुगनाथम (भारत के पैडमैन) से जयश्री खासा प्रभावित हैं। मुरुगनाथम वही शख्सियत हैं जिन्होंने महिलाओं के लिए किफायती और पर्यावरण अनुकूल सैनिटरी पैड्स बनाये और जिन पर प्रसिद्ध बॉलीवुड अभिनेता अक्षय कुमार फिल्म भी बना चुके हैं।
जयश्री कहती हैं,
"हमारे एक कॉमन फ्रेंड ने कुछ साल पहले मुझे मुरुगनाथम सर से मिलवाया। मैं उनसे इतनी प्रभावित हुई की मैंने निश्चय कर लिया कि चाहे कुछ भी हो जाए मैं पहले अपने गांव में स्वच्छता के मुद्दों को बेहतर करने के लिए कार्य करूंगी और उसके बाद पूरे भारत में। उसके बाद मैंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा। मैंने गाँव की 10 महिलाओं के झुंड को इकट्ठा किया जिन्होंने कुछ झिझक के बाद मेरे साथ काम करना स्वीकार किया।"
लेकिन जयश्री के लिए यह सफर बहुत सुहाना नहीं रहा। शुरुआती दिनों में उन्हें कई तरह के उतार-चढ़ावों का सामना करना पड़ा। इंडियन विमन ब्लॉग के अनुसार जब जयश्री प्रदर्शनियों में अपने दुकान लगाती थीं तब लोग सैनेटरी पैड्स को देख कर मुंह फेर लेते थे, लेकिन जो जागरुक थे वे उनकी दुकान पर आते और सैनेटरी पैड्स खरीदते थे।
जयश्री कहती हैं,
"मैं महिलाओं के महासंघ में हूं जोकि बहुत सारे स्वयं सहायता समूह से बना हुआ है। एक दिन हमसे पूछा गया कि पर्यावरण के अनुकूल सैनेटरी पैड्स का उत्पादन कौन करेगा? और वह मैं थी जिसने यह प्रस्ताव स्वीकार किया और क्यों नहीं पर्यावरण के अनुकूल सैनिटरी पैड्स बनाएं? इसमें देवदार की लकड़ी से बने कागज का उपयोग होता है। जो मिट्टी में दबते ही आठ दिनों के भीतर ही गलने लगते हैं।"
उत्पादन की संपूर्ण प्रक्रिया जयश्री के घर पर ही होती है। इस काम में वह अपने गांव की महिलाओं को रोजगार उपलब्ध करा रही हैं। प्रत्येक समूह 10 महिलाओं से बना होता है जो हर महीने 200 रुपये दान करती हैं और फिर यह राशि उन महिलाओं को दी जाती है जो अपना उद्यम शुरू करना चाहती हैं।
ये पैड्स ऑनलाइन अमेज़न पर उपलब्ध हैं और भविष्य में जयश्री की इच्छा है कि वह समूचे भारत में अपनी दुकान खोलें ताकि यह सैनिटरी पैड्स सभी के लिए उपलब्ध हों।