अनामिका के अनोखे नवाचार से कुपोषित बच्चों के काम आया पहला कौर कन्या का
"नेशनल जूडो गोल्ड मेडलिस्ट से तीन साल पूर्व कानपुर की सीडीपीओ बनीं अनामिका सिंह कहती हैं कि बाल-कुपोषण पूरी तरह समाप्त हो जाने तक उनकी जंग जारी रहेगी क्योंकि हमारे देश के बच्चे ही भारतीय समाज का भविष्य हैं। उनकी बहुमुखी कोशिशों से कानपुर में कुपोषित बच्चों की संख्या 1600 से घटकर 350 रह गई है।"
यह देश की एक ऐसी महिला अधिकारी की दास्तान है, जिसने जहां भी कदम रखा, नतीजे खुलकर परवान चढ़े। वह हैं, कानपुर की मौजूदा बाल विकास परियोजना अधिकारी (सीडीपीओ) अनामिका सिंह, जिनकी ईमानदार मेहनत से दो वर्षों में उनके कार्यक्षेत्र में कुपोषित मासूमों की संख्या 1600 से घटकर मात्र 350 रह गई। गौरतलब है कि अभी हाल ही में भारत सरकार और संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य कार्यक्रम की नई साझा रिपोर्ट 'खाद्य एवं पोषण सुरक्षा विश्लेषण, भारत 2019' ने हमारे देश के एक बड़े हिस्से में बाल भुखमरी और कुपोषण की स्थिति को उजागर किया है।
संयुक्त राष्ट्र की 'ग्लोबल न्यूट्रिशन रिपोर्ट' के मुताबिक, दुनिया में कुल 15 करोड़ 80 लाख अविकसित बच्चों में से 31 फीसदी बच्चे भारत में हैं। हमारे देश में हर साल कुपोषण से मरने वाले 05 साल से कम उम्र के बच्चों की संख्या 10 लाख से भी ज्यादा है। मारे देश में 4 करोड़ 60 लाख 60 हज़ार बच्चे लंबे समय तक खराब भोजन और बार-बार संक्रमण से पीड़ित रह रहे हैं । दुनिया के 15 करोड़ 80 लाख अविकसित बच्चों में से 31 प्रतिशत भारतीय हैं। इस बीच अनामिक सिंह जैसी अधिकारियों की कोशिशों के चलते ही देश में पिछले कुछ वर्षों में गंभीर कुपोषण पीड़ित बच्चों का अनुपात 48 प्रतिशत से घटकर 38.4 प्रतिशत रह गया है।
कुपोषण मुक्ति में अनामिका सिंह की जबर्दस्त कामयाबी के पीछे उनके जिंदगी के कई ऐसे कड़वे अनुभव रहे हैं, जिन्होंने सिस्टम की तमाम खामियों से जूझते हुए उन्हे एक कामयाब शख्सियत के रूप में सुर्खियों में आने का हुनर दिया है। कुछ ही वक़्त में इतनी बड़ी संख्या में संसाधनहीन परिवारों के सैकड़ों बच्चों को अगर किसी एक अधिकारी की कोशिशों ने कुपोषण से बचा लिया है तो उसके पीछे उनके तरह-तरह के एक्सपेरीमेंट रहे हैं। मसलन, वजन दिवस, सुपोषित मेला, लाल, पीले, हरे रंग के कागजों के माध्यम से परिजनों को समझाने के लिए, ज्यादा कुपोषित, कम कुपोषित और स्वस्थ बच्चों का अलग-अलग श्रेणियों में वर्गीकरण।
इसके साथ ही कुपोषित बच्चों के लिए विशिष्ट किस्म के सस्ते आहार की व्यवस्थाएं। जैसे कि पहला कौर कन्या का हो, कुपोषित बच्चों को रोजाना सादे चावल-दाल में एक चम्मच कड़वा तेल मिलाकर खिलाना, गर्भवती महिलाओं के आहार में मेथी, पालक, बथुआ, सरसों, अंकुरित दाल, पत्तेदार सब्जी और गुड़ की अधिकतम मात्रा।
"नेशनल फॅमिली हेल्थ के ताज़ा सर्वे के मुताबिक, कानपुर में 06 माह से 05 वर्ष तक के 73.6 फीसदी बच्चों और 15 से 49 वर्ष तक की 58.7 फीसदी महिलाओं में खून की कमी पाई गई है। इनमें 59.4 फीसदी सामान्य और 45.2 फीसदी गर्भवती महिलाओं में भी खून की न्यूनता रही है।"
अनामिका सिंह की इन कोशिशों के जब नतीजे सामने आए, कानपुर के आला अधिकारी तक भौचक्के रह गए। वर्ष 2017 में अति कुपोषित बच्चों की संख्या 1600 थी, जो घटकर 350 रह गई। तिवारीघाट, गुड़ियाना, भैरोंघाट समेत 13 केंद्र कुपोषण मुक्त हो गए यानी इन केंद्रों की परिधि में एक भी बच्चा कुपोषित नहीं रह गया। ब्लाक के ढाई सौ केंद्रों में से 134 में सिर्फ एक-एक बच्चा कुपोषित मिला। इससे पहले अनामिका सिंह ने जिले के बाल पोषण एवं आंगनबाड़ी केन्द्रों का उच्चीकरण कराने के साथ ही ‘पहला कौर कन्या का’ कार्यक्रम कुपोषित बच्चे-बच्चियों को दही, जलेबी खिलाकर शुरू कराया। उसके बाद सुनियोजित तरीके से नवरात्र में बेटियों को नौ दिन की बजाए 15 दिन तक लगातार पुष्टाहार दिए गए।
उधर, 'दस्तक' अभियान चलाकर कुपोषित बच्चों के परिजनों को इस नवाचार से लगातार आगाह किया जाता रहा। जिले में हर महीने गर्भवती महिलाओं और कुपोषित बच्चों का 'वजन दिवस' मनाया जाने लगा। बच्चों, किशोरियों एवं गर्भवती महिलाओं को कुपोषण से बचाने के लिए हर माह के पहले बुधवार को एएनएम उपकेंद्रों और आंगनवाड़ी केन्द्रों पर सुपोषण स्वास्थ्य मेले लगने लगे।
इस दौरान अनामिका सिंह ने जिले की एएनएम, आंगनवाड़ी, सहायिका, आशा, बच्चो, किशोरियों, गर्भवती एवं धात्री महिलाओं को कुपोषण विरोधी मिशन से आगाह किया। इन मेलों में पोषाहार के साथ ही, बच्चों के 'गुड टच', 'बैड टच', साथ ही उन्हे हाथ धोने के महत्व बताए जाते हैं। नवजात शिशुओं के टीकाकरण, गर्भवती महिलाओं के प्रसव पूर्व परीक्षण के लिए मेले स्वास्थ्य एवं पोषाहार से संबन्धित स्टॉल लगाए जाते हैं।
सीडीपीओ अनामिका सिंह के अतीत का जिंदगीनामा भी कुछ कम दिलचस्प नहीं रहा है। उनका बचपन कानपुर में ही गुजरा है। वह बहुत कम उम्र से ही खेलकूद में अव्वल आती रही हैं। उन्होंने पिता सुरेंद्र सिंह के साथ जूडो का अभ्यास किया। जूडो के चुनिंदा दस बेहतर खिलाड़ियों में शुमार होने के साथ ही वह नेशनल लेवल की प्रतिस्पर्धी बनीं। एक दर्जन से अधिक राष्ट्रीय जूडो मुकाबलों में भाग लेने के साथ ही लगातार दस साल तक स्टेट लेवल पर कई गोल्ड मेडल जीते। जूडो में देश की सबसे कम उम्र की पहली महिला कोच बनीं।
जब यूपी जूडो एसोसिएशन की एक मीटिंग में मलिहाबाद (लखनऊ) में अनामिका को कुछ पुलिस अधिकारियों की फटकार का सामना करना पड़ा तो खुद अफसर बनने के लिए सिविल सर्विसेज की तैयारी करने लगीं। उसके बाद वह 2015 में सीडीपीओ सेलेक्ट हो गईं और अगले साल पहली पोस्टिंग कानपुर में ही मिल गई। वह कहती हैं कि अब तो कुपोषण की पूरी तरह समाप्ति हो जाने तक उनकी यह जंग जारी रहेगी क्योंकि हमारे देश के बच्चे ही भारतीय समाज का भविष्य हैं।