मिलें घायल पड़ी बच्ची को अपनाकर नई जिंदगी देने वाली कॉन्स्टेबल ममता से
आज भी इंसानियत कहीं गई नहीं है। आज भी हमारी दुनिया में 'बच्चे मन के सच्चे, सारे जग की आंख के तारे...ये वो नन्हे फूल हैं, जो भगवान को लगते प्यारे।' वैसे तो बच्चों के लिए हर स्री ममता की मूर्ति होती है लेकिन बागपत (उ.प्र.) की पुलिस कांस्टेबल रेखा नागर ने ममता की नई मिसाल कायम की है।
रेखा नागर बागपत जिले के बड़ौत थाने में महिला कांस्टेबल हैं लेकिन इन दिनों वह 'ड्यूटी' पर वर्दी में नहीं, सादे ड्रेस में निकलती हैं। उन पर डेढ़ साल की मासूम गुड़िया की जिम्मेदारी भी तो है। इस बच्ची का नामकरण भी रेखा ने ही किया है। ममता की छांव में खिलखिलाती गुड़िया अब तो सबकी चहेती बन चुकी है। जन्म से ही बदकिस्मत गुड़िया की दास्तान इतनी कारुणिक है कि उसके बारे में जानकर किसी का भी दिल पिघल सकता है।
पिछले महीने 17 अप्रैल को जिले के ढोढरा गांव के जंगल में एक महिला का शव बरामद हुआ था। लोगों को शव से चंद कदम दूर डेढ़ साल की जिंदा बच्ची दिखी। काफी प्रयास के बाद भी मृत महिला की शिनाख्त नहीं हो सकी। इसके बाद शव को बागपत में दफना दिया गया। सीओ रामानंद कुशवाहा बताते हैं कि ग्राम प्रधान ने थाने में आकर सूचना दी थी कि गन्ने के खेत में एक शव है और उसके पास ही एक घायल बच्ची भी पड़ी है। उसकी सांसें चल रही हैं। इसके बाद पुलिस ने शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया और बच्ची को अस्पताल में भर्ती करवाया। इंस्पेक्टर आरके सिंह बताते हैं कि महिला के धर्म की तस्दीक नहीं हो सकी लेकिन उसे दफनाने के कई कारण रहे। पहला, शव के पास घायल मिली बच्ची जब भी अस्पताल में बुर्के वाली महिला को देखती तो उसकी तरफ आकर्षित हो जाती। दूसरा, वह अब्बू-अब्बू बोलती है।
गुड़िया के माथे के बाएं हिस्से में प्रहार किया गया था, जिससे घाव हो गया था। सीटी स्कैन में सिर की हड्डी का ढांचा क्षतिग्रस्त मिला। सिर के घाव में संक्रमण के कारण टांके नहीं लग सके। बच्ची के शरीर में कीड़े होने के कारण संक्रमण हुआ था। बागपत के आस्था मल्टी स्पेशिएलिटी हॉस्पिटल में भर्ती गुड़िया उससे पहले लगभग पांच दिनों तक भूखी-प्यासी हालत में रही थी। इस समय उसे बड़ौत पुलिस स्टेशन में तैनात कांस्टेबल रेखा नागर की देखरेख में रखा गया है। रेखा कहती हैं, गुड़िया को अब उनसे गहरा लगाव हो गया है। वह हमेशा उनकी ही गोद में सोती है।
रेखा रोज़ाना सुबह दस बजे अस्पताल पहुंच जाती हैं और रात नौ बजे तक वहीं रहती हैं। रेखा सादे कपड़ों में अस्पताल जाती हैं ताकि गुड़िया उन्हें देखकर अटपटा न महसूस करे। गुड़िया की कमर से नीचे का हिस्सा रगड़ से छिला हुआ है, जिसमें खुजली होने से वह बेचैन रहती है और ठीक से सो नहीं पाती। वह खिचड़ी, चाय और चिप्स ही बोल पाती है। अस्पताल से बाहर जाने पर खुश होती है और खाने की चीजों को इशारे में बताती है। रेखा गुड़िया को गोद लेने के बारे में सोचती तो हैं, लेकिन उनका खुद का पांच साल का बेटा है। कुछ अन्य मजबूरियां भी हैं, जिससे यह संभव नहीं हो पा रहा है। उनकी नौकरी भी ऐसी है कि उन्हें कभी भी देर रात निकलना पड़ जाता है। हालांकि उन्हें पूरी उम्मीद है कि गुड़िया को जल्द ही कोई अपना लेगा।
इसी तरह इस साल जनवरी में भी एक लावारिस बच्चे को हैदराबाद के एक कांस्टेबल की पत्नी प्रियंका का ममत्व मिला था। यह बच्चा उसमानिया हॉस्पिटल के पास मिला था। प्रियंका बताती हैं कि उनके कॉन्सटेबल पति ने बच्चे के बारे में बताया तो वह फौरन उसे देखने पहुंच गईं। बच्चा भूखा था। उन्होंने तुरंत उसे ब्रेस्टफीड करवाया। बाद में बच्चे की असली मां का पता लग गया और बच्चे को उसे सौंप दिया गया। जब इस बारे में सिटी पुलिस को पता लगा तो उन्होंने प्रियंका और उसके पति की सराहना की। पुलिस कमिश्नर ने उन्हें अवॉर्ड भी दिया। प्रियंका खुद भी एक बच्चे की मां हैं लेकिन उन्होंने उस बच्चे के लिए जो भाव दिखाए, उसके बाद सोशल मीडिया पर उनकी तारीफों की बाढ़ आ गई थी। ट्विटर पर लोगों ने उन्हें खूब दुआएं दीं।
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