देश को सशक्त बनाना है तो सबसे पहले महिलाओं को सशक्त करो- मिलिंडा गेट्स
कोविड के दौरान भारत में न सिर्फ महिलाएं वर्कफोर्स से बाहर हुई हैं, बल्कि बहुत सारी लड़कियां स्कूल और शिक्षा से भी वंचित हो गई हैं.- मिलिंडा गेट्स
बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन की सह अध्यक्ष मेलिंडा फ्रेंच गेट्स इन दिनों भारत की यात्रा पर हैं. अपनी यात्रा के दौरान उन्होंने कई महत्वपूर्ण लोगों से मुलाकात की और इंटरव्यू दिए. उन्होंने गत मंगलवार को राष्ट्रपति भवन में भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से मुलाकात की थी. राष्ट्रपति ने सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए किए जा रहे फाउंडेशन के कामों की सराहना की.
बुधवार को वह लखनऊ में थीं और उन्होंने यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से उनके आवास पर मुलाकात की. बातचीत के दौरान मिलिंडा गेट्स ने कहा कि उत्तर प्रदेश सिर्फ भारत के लिए ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक मॉडल बन सकता है.
इसके अलावा उन्होंने विदेश मंत्री जयशंकर और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया से भी मुलाकात की. इन सारी मुलाकातों और बातचीत के केंद्र में उन चुनौतियों को देखना है, जिसका इस वक्त भारत सामना कर रहा है. मौजूदा समस्याओं को दूर करने के लिए क्या जरूरी कदम उठाए जा सकते हैं और इस काम में बिल एंड मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन किस प्रकार सहयोगी हो सकता है.
मिलिंडा गेट्स ने इंडियन एक्सप्रेस को एक लंबा इंटरव्यू भी दिया है, जिसमें उन्होंने महिला सशक्तीकरण से लेकर भारत के सामने मौजूदा चुनौतियों, सवालों और उनके संभावित हल को लेकर लंबी बातचीत की है.
इस बातचीत में मिलिंडा कहती हैं कि महिलाओं के पास बहुत ताकत है, लेकिन अकसर हम उन बाधाओं और मुश्किलातों को नहीं देख पाते और नजरंदाज करते हैं, जो उनकी प्रगति की राह में दीवार बनकर खड़ी हैं. इसलिए मैं महिला सशक्तिकरण की बजाय उन्हें फुल पॉवर देने के बारे में कहती हूं.
हिंदुस्तान की ही बात करते हैं. मान लीजिए, आपने एक महिला को नौकरी तो दे दी, लेकिन आपने यह सुनिश्चित नहीं किया कि वह अपने बच्चे की देखभाल कैसे करेगी, उसे कहां रखेगी तो वह महिला नौकरी को भी अपना संपूर्ण नहीं दे पाएगी. उसके सामने और बड़ी चिंताएं हैं. मिलिंडा कहती हैं कि महिलाओं के सामने चाइल्डकेयर एक बड़ी चुनौती है. अगर वो काम पर जाएं तो अपने बच्चों को कहां छोड़ें. इस बारे में सोचने और कदम उठाने की जरूरत है.
इसी तरह मान लीजिए कि आपने एक महिला के नाम से बैंक अकाउंट तो खोल दिया, लेकिन उस बैंक अकाउंट तक उसकी खुद की पहुंच नहीं है, वो उसे खुद ऑपरेट नहीं करती तो सिर्फ अकाउंट खुलवाने भर से वो सशक्त नहीं हो सकती. यह सशक्तिकरण का सिर्फ ऊपर-ऊपर का काम है, जो एक महिला को बुनियादी तौर पर मजबूत और आत्मनिर्भर बनाने में पूरी तरह मददगार नहीं हो सकता.
मिलिंडा कहती हैं कि कोविड महामारी ने महिलाओं को पहले से भी ज्यादा पीछे ढकेल दिया है. पूरी दुनिया में बड़ी संख्या में महिलाएं नौकरियों से बाहर हो गई हैं.
मिलिंडा कहती हैं कि हालांकि भारत ने महिलाओं को मजबूत बनाने के लिए बहुत से जरूरी कदम उठाए हैं. भारत सरकार ने 20 करोड़ महिलाओं और 30 करोड़ लोगों को नकद मदद करने के लिए डिजिटल बैंकिंग का सहारा लिया. कोविड महामारी के दौरान मदद की. यह एक सराहनीय कदम है.
कोविड के दौरान भारत में न सिर्फ महिलाएं वर्कफोर्स से बाहर हुई हैं, बल्कि बहुत सारी लड़कियां स्कूल और शिक्षा से भी वंचित हो गई हैं. इस पर मिलिंडा गेट्स कहती हैं कि आपको पहले ये देखना होगा कि वो कौन सी चीजें हैं, जो लड़कियों के स्कूल छोड़ने की बड़ी वजह बनती हैं. जैसेकि पीरियड्स को लेकर समुचित व्यवस्था न होना, स्कूलों में टॉयलेट्स का अभाव.
मिलिंडा कहती हैं कि समाज में भेदभाव हरेक स्तर पर है. हमें देखना होगा कि स्त्री और पुरुष, दोनों की सामाजिक भूमिकाओं में, काम में, उनके वेतन में इतना फासला क्यों है और इस फासले को दूर करने की कोशिश करनी होगी.
मिलिंडा गेट्स कहती हैं कि महिलाओं की मजबूती और उनका सशक्तिकरण किसी भी समाज की प्रगति का सबसे बुनियादी पैमाना है. अगर हमें अर्थव्यवस्था को मजबूत करना है, समाज को आगे बढ़ाना है तो हमें अपनी महिलाओं को मजबूत करना होगा.
Edited by Manisha Pandey