हमारी हवा को प्रदूषित करने में पुरुषों का योगदान महिलाओं से ज्यादा
पुरुषों के महंगे शौक पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहे हैं. इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस की यह नई स्टडी है, जो कह रही है कि हमारी हवा को प्रदूषित करने में महिलाओं के मुकाबले पुरुषों का योगदान कहीं ज्यादा है.
पर्यावरण को कौन ज्यादा नुकसान पहुंचा रहा है? पुरुष या महिलाएं?
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस की यह एक नई स्टडी है, जो कह रही है कि हमारी हवा को प्रदूषित करने में महिलाओं के मुकाबले पुरुषों का योगदान ज्यादा है. इस स्टडी का विषय है- “Understanding the mitigation potential of sustainable urban transport measures across income and gender groups”. यानी विभिन्न आय और जेंडर समूह शहरी परिवहन उपायों को कैसे ज्यादा सस्टेनेबल और पर्यावरण फ्रेंडली बना सकते हैं. यह स्टडी जनरल ऑफ ट्रांसपोर्ट ज्योग्राफी में प्रकाशित हुई है.
इस स्टडी के जरिए यह समझने की कोशिश की गई कि अलग-अलग आय समूहों वाले और जेंडर वाले लोगों शहर के भीतर आवागमन के लिए किस तरह के परिवहन का ज्यादा इस्तेमाल करते हैं और उसका पर्यावरण पर क्या असर हो रहा है. इन लोगों को दो जेंडरों के साथ कुल आठ प्रकार के आय समूहों में विभाजित किया गया है.
इस अध्ययन के नतीजे काफी रोचक हैं. यह स्टडी कहती है कि समान आय समूह वाली महिलाओं के मुकाबले पुरुष कार्बन इमिशन (कार्बन उत्सर्जन) में ज्यादा योगदान करते हैं. उच्च आय समूह वाले पुरुष दफ्तर जाने के लिए निजी वाहन का ज्यादा इस्तेमाल करते हैं और उनका टोटल रोड टाइम यानि कुल रोड ट्रिप्स महिलाओं के मुकाबले ज्यादा है.
स्टडी कहती है कि उच्च आय समूह वाली महिलाएं पुरुषों के मुकाबले सार्वजनिक परिवहन को ज्यादा प्राथमिकता देती हैं, अगर वह सस्ता, सुरक्षित और विश्वसनीय है. जैसे उच्च आय समूह की महिलाएं पुरुषों के मुकाबले ऑफिस जाने के लिए ज्यादा मेट्रो सेवा का इस्तेमाल करती हैं. वहीं निम्न आय समूह की महिलाएं बस सेवा का ज्यादा प्रयोग करती हैं.
स्टडी कहती है कि उच्च आय समूहों द्वारा कार्बन डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन ज्यादा किया जाता है. वहीं निम्न और मध्य आय समूहों द्वारा PM2.5 यानि 2.5 माइक्रोन्स से कम क्षमता वाले परटिकोलेट मैटर का उत्सर्जन ज्यादा होता है.
इतना ही नहीं, यह अध्ययन यह भी कहता है कि पुरुषों के मुकाबले महिलाएं काम पर जाने के लिए ज्यादा पैदल चलती हैं क्योंकि वह पब्लिक ट्रांसपोर्ट का ज्यादा प्रयोग कर रही होती हैं.
यह इस तरह का पहला अध्ययन नहीं है. 2021 में जरनल ऑफ इंडस्ट्रियल इकोलॉजी में स्वीडन की एक स्टडी प्रकाशित हुई, जो यही बात कह रही थी कि महिलाओं के मुकाबले पुरुष हमारे पर्यावरण को ज्यादा नुकसान पहुंचा रहे हैं.
गाडि़यों, मांस-मदिरा का मर्दों का शौक ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन की बड़ी वजह है. इस स्टडी के मुताबिक स्वीडन में ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन में पुरुषों का योगदान महिलाओं के मुकाबले 16 फीसदी ज्यादा है, जबकि उपभोक्ता उत्पादों पर उनका खर्च महिलाओं से सिर्फ 2 फीसदी ज्यादा है.
स्टडी में इसकी वजह पर भी रौशनी डाली गई थी.
वह स्टडी कहती है कि पुरुष अपना 70 फीसदी पैसा ऐसे उत्पादों जैसे गाड़ी, पेट्रोल आदि पर खर्च करते हैं, जिनका कार्बन इमिशन ज्यादा है. यानि जिन चीजों से ज्यादा मात्रा में कार्बन डाई ऑक्साइड निकलकर पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रही है. वहीं महिलाएं ऐसे उत्पादों पर खर्च करती हैं, जिनका कार्बन इमिशन कम है, जैसे हेल्थकेयर, फर्निशिंग, कपड़े इत्यादि.
स्वीडन की यह स्टडी कहती है कि एकल पुरुष एकल महिलाओं के मुकाबले कार्बन इमिशन में ज्यादा योगदान देते हैं क्योंकि छुट्टियों के लिए वो कार का प्रयोग ज्यादा करते हैं जबकि महिलाएं ट्रेन से यात्रा करने को वरीयता देती हैं.
जेंडर और पर्यावरण के रिश्ते को समझने के लिए पहले और भी कई गंभीर अध्ययन हो चुके हैं. पिछले साल नवंबर में स्विटजरलैंड स्थित बैंक फॉर इंटरनेशनल सेटलमेंट के जरनल में एक स्टडी प्रकाशित हुई. इसमें दुनिया की 24 विकसित अर्थव्यवस्थाओं की 2000 लिस्टेड कंपनियों का अध्ययन किया गया. अध्ययन में मुख्य रूप से दो तथ्यों के अंतर्संबंधों को समझने की कोशिश की गई.
इन कंपनियों में नेतृत्व के निर्णायक पदों का जेंडर अनुपात कितना है और किस कंपनी का कार्बन इमिशन कितना है. क्या लीडरशिप के जेंडर और कार्बन इमिशन रेट का कोई सीधा कनेक्शन है?
स्टडी में पाया गया कि जिन कंपनियों में टॉप और मिडिल मैनेजमेंट पदों पर महिलाओं की संख्या ज्यादा थी, उन कंपनियों का कार्बन इमिशन रेट कम था. महिला मैनेजर की संख्या में एक फीसदी की बढ़ोतरी के साथ कार्बन इमिशन रेट 0.5 फीसदी कम था.
यूएन की एक स्टडी कहती है कि दुनिया के विभिन्न देशों, नस्लों, एथनिक समूहों और समुदायों में प्रकृति और पर्यावरण के लिए संघर्षरत लोगों में 76 फीसदी संख्या महिलाओं की है.