लाखों नौकरियों पर मंदी की मार, आगामी नौ महीने भारत पर बहुत भारी
एक ओर ताज़ा स्टडी में बताया गया है कि आगामी आठ वर्षों में भारतीय अरबपतियों की संख्या दोगुनी हो जाएगी, दूसरी तरफ देश की टॉप सात कंपनियों का मार्केट कैप 86,878.7 करोड़ रुपए लुढ़क गया है। अगले साल दुनिया 2008 से भी खतरनाक मंदी के दुष्चक्र में फंसने जा रही है। भारत पर आगामी नौ महीने बहुत भारी पड़ने वाले हैं।
इस वक़्त हमारा देश दो तरह के आर्थिक परिदृश्य में है। एक ओर जहां, विश्व के सबसे ज्यादा अरबपतियों की सूची में भारत का तीसरा स्थान आगे भी बरकरार रहने के अनुमान हैं, वही दूसरी तरफ, पिछले कुछ ही दिनो में देश की दस बड़ी कंपनियों में से सात (आईटीसी, रिलायंस इंडस्ट्रीज, एचडीएफसी बैंक, एचडीएफसी, कोटक महिंद्रा बैंक, आईसीआईसीआई बैंक और भारतीय स्टेट बैंक) का मार्केट कैप 86,878.7 करोड़ रुपए लुढ़क गया। यद्यपि इसी समयावधि में टीसीएस, हिंदुस्तान यूनिलीवर और इंफोसिस का मार्केट कैप बढ़ गया।
एक ताज़ा स्टडी में बताया गया है कि आगामी आठ वर्षों में भारतीय अरबपतियों की संख्या दो गुनी हो सकती है। इस समय देश में अरबपतियों की कुल संपत्ति 8,230 अरब डॉलर है। इस बीच कांग्रेस नेता और अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा ने प्रधानमंत्री से पूछा है कि, 'सर, स्पष्ट रूप से आर्थिक मंदी इस समय हर किसी के बात करने का मुद्दा है। क्या आपको नहीं लगता कि हमें इसके बारे में कुछ करना चाहिए?'
जब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन में गिरावट हो रही हो और सकल घरेलू उत्पाद कम से कम तीन महीने डाउन ग्रोथ में हो तो उस स्थिति को वैश्विक आर्थिक मन्दी कहते हैं। पूरे विश्व में इस समय मंदी के झटके लग रहे हैं। इस माह अगस्त में तीन प्रमुख बदलावों ने अर्थव्यवस्था के कान खड़े कर दिए हैं; ‘यूरोप का इंजन’ मंदी की ओर है, अमेरिकी बॉन्ड यील्ड में भारी गिरावट दर्ज हुई है, व्यापार युद्ध के जवाब में मुद्रा युद्ध शुरू हो गया है और चीन में उत्पादन घट रहा है।
भारतीय रिज़र्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने कहा है कि अर्थव्यवस्था में जारी मंदी बहुत चिंताजनक है और सरकार को ऊर्जा क्षेत्र और ग़ैर बैंकिंग वित्तीय क्षेत्रों की समस्याओं को तुरंत हल करना होगा। भारत में कपड़ा क्षेत्र में हालात दिनों-दिन बदतर होते जा रहे हैं। प्रॉपर्टी का धंधा कई साल से मंदा चल रहा है। नोटबंदी के समय से खुदरा व्यापारी भी अपना धंधा चौपट होने की शिकायत करते रहे हैं। गौरतलब है कि रघुराम राजन वह अर्थशास्त्री हैं, जिन्होंने पूरी दुनिया में 2008 की मंदी की समय रहते भविष्यवाणी करके ख्याति अर्जित की थी।
हाल ही में 'बैंक ऑफ अमेरिका मेरिल लिंच' की एक रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि अगले साल दुनिया 2008 से भी खतरनाक मंदी के शिकंजे में फंसने जा रही है। सर्वे में शामिल 34 फीसदी फंड मैनेजर्स के मुताबिक, उस खतरनाक आहट के बावजूद बड़ी कंपनियां अभी भी अपनी बैलेंस शीट सुधारने का प्रयास नहीं कर रही हैं। इस आहट से अमेरिका की चीन, ईरान और भारत के साथ व्यापार युद्ध की आशंका गहराती जा रही है। भारत में खासकर चार सेक्टर्स पर मंदी का संकट दिख रहा है, जिनमें कार्यरत लाखों लोगों की नौकरियां खतरे में पड़ गई हैं। बैंक, इंश्योरेंस, ऑटो, लॉजिस्टिक, इंफ्रास्टक्चर के अलावा नॉन बैंकिंग फाइनेंस, वाहन, बिस्किट, टैक्सटाइल उद्योग संकट में हैं।
मंदी के बादल ऐसे सेक्टर्स पर भी घिरने वाले हैं, जहां करोड़ों नौकरियां खत्म हो सकती हैं। इसी घेराव में पेट्रोलियम, खनन, टेक्सटाइल, फर्टिलाइजर एवं संचार सेक्टर्स में उद्योगों ने कर्ज लेना कम कर दिया है। मारुति सुजुकी, बजाज, टाटा स्टील, टाटा मोटर्स, यूनाइटेड इंडिया इंशोरेस, नेशनल इंश्योरेंस जैसी दिग्गज कंपनियां मंदी की चपेट में आ चुकी हैं। अगले नौ महीने भारत समेत पूरी दुनिया पर भारी पड़ने वाले हैं।
अपने यहां लाखों की संख्या में कर्मचारियों की छंटनी कर रहीं कंपनियों की नजर अब केवल सरकार से उम्मीद लगा रही है। सरकार प्रोत्साहन पैकेज पर मंथन में जुटी है। खुद प्रधानंमत्री नरेंद्र मोदी वित्त मंत्रालय समेत तमाम वित्तीय अधिकारियों के साथ इसको लेकर बैठक कर चुके हैं। कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों ने आर्थिक संकट गहरा दिया है। डॉलर के मुकाबले रुपए ने 70 का आंकड़ा पार कर लिया है। उधर, देश का राजकोषीय घाटा बढ़ता जा रहा है। इस दौरान निर्यात में गिरावट से विदेशी मुद्रा कोष को भी झटके लग रहे हैं।
आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा है कि घरेलू मांग में और कमी आने के संकेत साफ हैं। मंदी गहरा रही है। मैन्युफ़ैक्चरिंग और खनन में मंदी का साफ़ असर दिख रहा है। नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार कहते हैं कि बीते सत्त वर्षों में देश का वित्तीय क्षेत्र इतने अविश्वास के दौर से कभी नहीं गुजरा है। कोई भी किसी पर भी भरोसा नहीं कर रहा है। निजी क्षेत्र के भीतर कोई भी कर्ज देने को तैयार नहीं है। हर कोई नकदी लेकर बैठा है।
इस बीच वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा है कि सरकार अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए कई कदम उठा रही है। अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध तथा मुद्रा अवमूल्यन के चलते वैश्विक व्यापार में काफी उतार-चढ़ाव वाली स्थिति पैदा हुई है। अब भारत में कारपोरेट सामाजिक दायित्व (सीएसआर) नियमों के उल्लंघन को दिवानी मामले की तरह देखा जाएगा। सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में 70 हजार करोड़ रुपये की पूंजी डालने जा रही है ताकि बैंक बाजार में पांच लाख करोड़ रुपये तक की नकदी जारी करने में सक्षम हो सकें। छोटे एवं मझोले उद्यमों (एमएसएमई) के अब तक के सभी लंबित जीएसटी रिफंड का भुगतान 30 दिन के भीतर कर दिया जाएगा। भविष्य के रिफंड मामलों को 60 दिन के भीतर निपटा दिया जाएगा। बैंकों ने रेपो दर में कटौती का फायदा ग्राहकों को पहुंचाने का फैसला किया है।
अब घर और वाहन खरीदने पर और ज्यादा क्रेडिट सपोर्ट दिया जाएगा। लोन आवेदन की ऑनलाइन निगरानी की जाएगी। लॉन्ग, शॉर्ट टर्म कैपिटेल गेन सरचार्ज वापस लिया जाएगा। सरकार ईज ऑफ डूइंग बिजनस और ईज ऑफ लिविंग पर फोकस कर रही है। टैक्स के नाम पर किसी को परेशान नहीं किया जाएगा। हम जीएसटी की प्रक्रिया को और सरल बनाने जा रहे हैं।