व्यापार ऐपः स्टॉक मैनेज करने से लेकर जीएसटी रिपोर्ट तैयार करने तक, सारी सुविधाएं एक प्लैटफ़ॉर्म पर
भारत का माइक्रो, स्मॉल ऐंड मीडिया एंटरप्राइज़ेज़ (एमएसएमई) सेक्टर देश के करीब 1 करोड़ लोगों को रोज़गार देता है और देश में होने वाले कुल उत्पादन में 45 प्रतिशत भागीदारी इस सेक्टर की है। लेकिन अभी भी इस सेक्टर के अंतर्गत अधिकतर इकाईयां पेपर बिलिंग पर निर्भर हैं। डिजिटल अकाउंटिंग के ज़माने में, इस सेक्टर में काम करने वाले इकाईयों की मदद करना अपने आप में बिज़नेस की संभावना है।
बेंगलुरु के रहने वाले ऑन्त्रप्रन्योर सुमित अग्रवाल (35) इनट्विट्स क्विकबुक्स में काम करते थे, जो छोटे स्तर के व्यवसायों के लिए एक अकाउंटिंग सॉफ़्टवेयर पैकेज है। इस दौरान ही उन्हें डिजिटल अकाउंटिंग के क्षेत्र में इस संभावना को भुनाने का विचार आया।
सुमित के पास 8 लाख रुपए की बचत थी और उन्होंने तय किया कि वह इस बचत के पैसों के साथ ही एमएसएम एंटरप्राइज़ेज़ को सरल और किफ़ायती सॉल्यूशन्स उपलब्ध कराने के लिए एक स्टार्टअप की शुरुआत करेंगे, जो अकाउंटिंग और इनवेंटरी मैनेजमेंट में उनकी मदद करेगा।
इसी क्रम में उन्होंने 2016 में 'व्यापार' स्टार्टअप की शुरुआत की, जो एक सरल बिज़नेस अकाउंटिंग और इनवेंटरी मैनेजमेंट ऐप्लिकेशन है और छोटे स्तर के बिज़नेस वेंचर्स को अपनी सुविधाएं मुहैया कराता है।
सुमित ने योरस्टोरी को बताया,
"व्यापार की मदद से एक ऑन्त्रप्रन्योर फ़ाइनैंस संबंधी दिक्कतों को सुलझा सकता है; समय पर पेमेंट कलेक्शन कर सकता है; इनवेंटरी का प्रबंधन कर सकता है; जीएसटी रिपोर्ट तैयार कर सकता है और बिज़नेस से जुड़े बेहतर निर्णय ले सकता है।"
फ़िलहाल यह ऐप स्मार्टफ़ोन्स और डेस्कटॉप्स के लिए उपलब्ध है और ऐप को 10 लाख से ज़्यादा डाउनलोड्स मिल चुके हैं। कंपनी का सालाना रेवेन्यू 3 करोड़ रुपए तक पहुंच चुका है।
योरस्टोरी के साथ हुई एक ख़ास बातचीत में, सुमित ने बताया कि उन्होंने व्यापार की शुरुआत कैसे की और यह कैसे काम करता है।
पेश हैं बातचीत के कुछ अंशः
एमएसएम एंटरप्राइज़ेज़ को डिजिटल अकाउंटिंग सॉफ़्टवेयर के इस्तेमाल की ज़रूरत क्यों है?
सुमित अग्रवालः आज भी 90 प्रतिशत बिज़नेस वेंचर्स बिलिंग आदि कामों के लिए पेपर का ही इस्तेमाल करते हैं। उन्हें इस बात की समझ नहीं होती कि उनके बिज़नेस में क्या हो रहा है; उन्हें कितना मुनाफ़ा हो रहा है; और स्टॉक्स की व्यवस्था को नियमित कैसे किया जाए आदि। इस तरह की असंगठित व्यवस्था के चलते उन्हें अक्सर नुकसान उठाना पड़ता है।
आपको इस क्षेत्र में काम करने की प्रेरणा कैसे मिली?
सुमित अग्रवालः मैंने भारत में छोटे व्यवसाइयों की जद्दोजहद भरी ज़िंदगी देखी है। मेरे पिता और हर हफ़्ते के अंत में अकाउंट्स टैली करते थे और उन्हें महीने के अंत में नुकसान के बारे में पता चलता था।
एक दिन, उन्होंने मुझसे कहा कि मैं उनके बिज़नेस को संभालने के लिए एक मोबाइल ऐप्लिकेशन डिवेलप करूं, जिसे इस्तेमाल करना भी आसान हो। मैंने लंबे समय तक रिसर्च के बाद यह पाया कि सामान्य लोगों के लिए सॉल्यूशन ढूंढना बहुत मुश्क़िल था। मैंने तय किया कि मैं एक ऐसा प्रोडक्ट डिवेलप करूंगा, जिसे एक 10वीं पास बिज़नेसमैन भी आसानी से इस्तेमाल कर सके।
आपने इस आइडिया को अमलीजामा कैसे पहनाया?
सुमित अग्रवालः मेरे को-फ़ाउंडर शुभम और मैंने ऐंड्रॉयड ऐप डिवेलमेंट को पढ़ना शुरू किया और कोडिंग की शुरुआत की। हम रात में और सप्ताह के अंत में व्यापार ऐप को तैयार करने के लिए काम कर पाते थे। प्रोडक्ट को मार्केट में उतारने के कुछ समय बाद ऐप के लिए अच्छी मांग आने लगी और डाउनलोड्स बढ़ने लगे।
हम ऑर्गेनिक ग्रोथ के साथ आगे बढ़ रहे थे और इसलिए हमने तय किया कि हम अपने फ़ुल-टाइम जॉब्स छोड़कर पूरा समय और मेहनत व्यापार पर ही खर्च करेंगे। इसके बाद हमारे साथ एक और को-फ़ाउंडर जुड़े, रुक़इया ईरम।
यह ऐप कैसे काम करता है?
सुमित अग्रवालः इसकी मदद से एंटप्राइज़ेज़ अपने जीएसटी बिल्स तैयार कर सकते हैं, कैल्कुलेशन ऑटोमैटिक हो जाती है आदि। वे अपने बिल्स को प्रिंट कर सकते हैं और वॉट्सऐप पर शेयर भी कर सकते हैं; रिमाइंडर्स भेज सकते हैं और सीधे ऑनलाइन पेमेंट भी ले सकते हैं। इतना ही नहीं, बिज़नेस वेंचर्स को व्यापार की मदद से स्टॉक्स के प्रबंधन में भी सहूलियत मिलती है।
अगर स्टॉक में किसी चीज़ की कमी होती है तो उसके लिए अपने आप ही अलर्ट मिल जाता है। ऐप की मदद से स्टॉक वैल्यू, प्रोडक्ट्स की एक्सपाइरी डेट, बैच नंबर आदि का भी पता लगाया जा सकता है। एंटरप्राइज़ेज़ टैक्स फ़ाइल करने के लिए जीएसटीआर रिपोर्ट भी जेनरेट कर सकते हैं।
व्यापार का रेवेन्यू मॉडल क्या है?
सुमित अग्रवालः व्यापार का सब्सक्रिप्शन मॉडल बहुत ही आसान है। यहां पर ग्राहक प्रीमियम वर्ज़न के लिए सालाना तौर पर भुगतान कर सकते हैं। पेड वर्ज़न से यूज़र को प्रीमियम फ़ीचर्स की सुविधा मिल जाती है। मोबाइल ऐप का फ़्री वर्ज़न है, लेकिन डेस्कटॉप वर्ज़न पेड है और फ़्री ट्रायल सिर्फ़ 30 दिनों के लिए है। यह ऐप बिना इंटरनेट के भी ऑपरेट किया जा सकता है।
आपके सामने क्या चुनौतियां आईं?
सुमित अग्रवालः शुरुआत में बिज़नेसमैन अपने डेटा को ऑनलाइन लाने से हिचकिचाते थे और उसे पेपर तक ही रखना चाहते थे ताकि किसी और की पहुंच उनके डेटा तक न हो। समय के साथ यह समस्या सुलझी और व्यापारी, व्यापर ऐप के साथ जुड़ने लगे। जीएसटी लागू होने के बाद भी बहुत से व्यापारी असहज हो गए थे, लेकिन हमने उनका भरोसा बनाए रखा।
आपके प्रतिद्वंद्वी कौन हैं और आप उनसे किन मायनों में अलग हैं?
सुमित अग्रवालः जीएसटी मोबाइल बिलिंग के क्षेत्र में काम करने वाला व्यापार एकमात्र ऐप हैं। मार्केट में मौजूद अन्य ऐप्स सिर्फ़ क्रेडिट और डेबिट का हिसाब रखने का सॉल्यूशन देते हैं। जल्द ही हम अपने प्रोडक्ट में अकाउंटिंग सॉफ़्टवेयर टैली के फ़ीचर को भी शामिल करेंगे।
भविष्य के लिए आपकी क्या योजनाएं हैं?
सुमित अग्रवालः भविष्य के लिए हमारी योजना है कि ज़्यादा से ज़्यादा एंटरप्राइजे़ज़ क अपने साथ जोड़ा जाए और अपने कस्टमर बेस में इज़ाफ़ा किया जाए।