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MSME इकाइयां मिलकर एक सम्पूर्ण आपूर्ति श्रृंखला बनाने में सक्षमः MSME सचिव

EEPC India द्वारा आयोजित MSME सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को सम्बोधित करते हुये सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम सचिव बी.बी. स्वैन ने कहा कि MSME को उच्च वृद्धि हासिल करने के लिये दो अति महत्त्वपूर्ण कदम उठाने होंगे, जो ऋण सहायता और प्रौद्योगिकी उन्नयन से जुड़े हैं।

MSME इकाइयां मिलकर एक सम्पूर्ण आपूर्ति श्रृंखला बनाने में सक्षमः MSME सचिव

Saturday January 22, 2022 , 4 min Read

सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम सचिव बी.बी. स्वैन ने कहा है कि अपनी सस्ती निर्माण लागत के कारण भारत के इंजीनियरिंग सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSME) में विश्व मूल्य श्रृंखला के साथ एकीकृत होने की अपार क्षमता है। EEPC India द्वारा आयोजित MSME सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को कल सम्बोधित करते हुये स्वैन ने कहा कि MSME को उच्च वृद्धि हासिल करने के लिये दो अति महत्त्वपूर्ण कदम उठाने होंगे, जो ऋण सहायता और प्रौद्योगिकी उन्नयन से जुड़े हैं। उन्होंने उल्लेख किया कि MSME मंत्रालय अन्य मंत्रालयों और विभागों के साथ नजदीकी काम कर रहा है, ताकि MSME के लिये व्यापार में सुगमता संभव हो सके।

स्वैन ने कहा, “आत्मनिर्भर घोषणाओं का ध्यान MSME के रूप में पंजीकरण करने की प्रक्रिया को सरल बनाने पर है। इसके अलावा ऋण तक आसान पहुंच बनाने पर भी ध्यान दिया जा रहा है तथा उन्हें विश्व संविदाओं के मामलें में आवश्यक सुरक्षा प्रदान करने का प्रयास किया जा रहा है।”

B. B. Swain_ MSME Secretary

उन्होंने सम्मेलन के प्रतिभागियों को बताया कि जो MSME इंजीनियरिंग उत्पादों के निर्माण में संलग्न हैं, उनकी संख्या 67 लाख MSME में से 29 प्रतिशत है, जिन्हें उद्यम पंजीकरण पोर्टल पर एक जुलाई, 2020 से पंजीकृत किया गया है।

स्वैन ने कहा, “MSME इकाइयां मिलकर एक सम्पूर्ण आपूर्ति श्रृंखला बनाने में सक्षम हैं तथा विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने योग्य हैं, क्योंकि वे भिन्न-भिन्न तरह के उत्पादों का निर्माण करते हैं।”

अपने स्वागत वक्तव्य में EEPC India के अध्यक्ष महेश देसाई ने कहा कि MSME को प्रौद्योगिकी के मोर्चे पर अभी बहुत आगे जाना है, क्योंकि ऐसा करने से ही वैश्विक मूल्य श्रृंखला में भारत की हिस्सेदारी बढ़ेगी।

उन्होंने कहा, “मेक-इन-इंडिया पहल की बदौलत भारतीय MSME को बड़े पैमाने पर विश्व निर्माता फर्मों के साथ काम करने का पर्याप्त मौका मिल रहा है और उन्हें उन्नत प्रौद्योगिकी तथा कारगर विपणन तकनीकों तक पहुंच मिली है। महामारी के संकट के बाद, विकसित विश्व में बड़े कॉर्पोरेशन भारत को निर्माण के वैकल्पिक गंतव्य के रूप में देख रहे हैं।”

उन्होंने इस बात का उल्लेख किया कि अर्थव्यवस्था में MSME की महत्त्वपूर्ण भूमिका है तथा वह भारत के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 30 प्रतिशत का योगदान करते हैं और देश के निर्यात में उनकी हिस्सेदारी 50 प्रतिशत है।

उन्होंने आगे कहा, “भारत में MSME सेक्टर की अहमियत को बहुत पहले ही पहचान लिया गया था। अब उसकी क्षमता को भी पहचान लिया गया है। राष्ट्रीय निर्माण नीति में निर्माण को सकल घरेलू उत्पाद का 25 प्रतिशत तक बढ़ाने का लक्ष्य तय किया गया है।”

उल्लेखनीय है कि EEPC India में लगभग 60 प्रतिशत सदस्य MSME सेक्टर से आते हैं। EEPC India भारत में इंजीनियरिंग MSME के विकास में मुख्य भूमिका निभाता है। वह MSME द्वारा इंजीनियरिंग माल के उत्पादन के लिये सरकार के साथ नजदीकी तालमेल रखता है और प्रौद्योगिकी उन्नयन के लिये वाणिज्य विभाग के साथ मिलकर काम करता है। इसके अलावा उसने बेंगलुरु और कोलकाता में दो प्रौद्योगिकी केंद्र भी स्थापित किये हैं, ताकि इंजीनियरिंग MSME के प्रौद्योगिकीय पिछड़ेपन की समस्या का समाधान हो सके।

देसाई ने कहा, “हम इस बात के लिये प्रतिबद्ध हैं कि इस सेक्टर को वैश्विक मूल्य श्रृंखला के साथ एकबद्ध कर सकें। हम यह काम इंजीनियरिंग MSME के लिये अपनी रणनीतिक गतिविधियों को लगातार जारी रखकर कर रहे हैं। हमारा मानना है कि MSME के लिये पूरी तरह समर्पित इस तरह के सम्मेलन हमें अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायक होंगे।”

सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में ‘इंटीग्रेटिंग इंडियन MSME टू ग्लोबल वैल्यू चेन’ (वैश्विक मूल्य श्रृंखला में भारतीय MSME का एकीकरण) नामक एक ज्ञान-प्रपत्र भी जारी किया गया। प्रपत्र में सुझाव दिया गया है कि भारत के व्यापार नियमों को देश में मूल्य संवर्धन को प्रोत्साहित करना चाहिये। प्रपत्र में कहा गया है, “इस तरह, आम शुल्क ढांचे को कच्चे और प्राथमिक माल के लिये कम करना चाहिये, अध-बने माल के लिये थोड़ा अधिक और पूर्ण रूप से तैयार माल के लिये सबसे अधिक होना चाहिये।”

प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर ढांचे के बारे में भी सिफारिश की गई है, जिसके अनुसार इन दोनों को तटस्थ होना चाहिये तथा फर्मों की प्रकृति में भेदभाव नहीं करना चाहिये। प्रपत्र में दिये कुछ बिंदुओं के अनुसारः “बैंकों और वित्तीय संस्थानों को वास्तविक निर्यातकों को पहचानना चाहिये और कम समपार्श्व गारंटी मांगनी चाहिये। अंत में, नीतिगत उपायों में स्थिरता होनी चाहिये और उनकी दखलंदाजी कम हो तथा सरकार की तरफ से तटस्थता पर जोर होना चाहिये।”