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इन 3 कहानियों से आप सीख सकते हैं; ‘हारकर जीतने वाले को कहते हैं बाज़ीगर’

इन 3 कहानियों से आप सीख सकते हैं; ‘हारकर जीतने वाले को कहते हैं बाज़ीगर’

Monday October 21, 2019 , 6 min Read

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योरस्टोरी आपके लिए ऐसे ऑन्त्रप्रन्योर्स की दास्तान लेकर आया है, जिन्होंने अपने लिए बड़े लक्ष्य तय किए और तमाम असफलताओं और मुश्क़िलों के बावजूद अपने लक्ष्य को हासिल किया।


ऐसे ऑन्त्रप्रन्योर्स, जिन्होंने प्रतिकूल परिस्थितियों को हंसकर पार करते हुए करोड़ों रुपए के बिज़नेस स्थापित किए।

चामुंडी अगरबत्ती

कई लोग मानते हैं कि छोटी जगहों के लोग खुली आंखों से बड़े-बड़े सपने देखते हैं। जब कांतीलाल परमार के भाई जालोर राजस्थान से बेंगलुरु, कर्नाटक अपने पिता के दोस्त की अगरबत्ती ट्रेडिंग फ़र्म में काम करने के लिए आए, तब कांतीलाल की आंखों में भी बड़े-बड़े सपने थे।


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कांतिलाल परमार (40 वर्षीय) ने योरस्टोरी को बताया.

“मेरे बड़े भाई, मेरे पिता जी के दोस्त की ट्रेडिंग फ़र्म में काम करने के लिए बेंगलुरु आ गए। मैं उस समय जालोर में ही पढ़ाई कर रहा था। अपनी स्कूल की पढ़ाई ख़त्म होने के बाद मैं काम में हाथ बंटाने के लिए बेंगलुरु आ गया।”


कांतिलाल बताते हैं कि उनके भाई शुरुआत में रोटोग्रेवर प्रिंटिंग का काम करते थे। बाद में, 2003 में दोनों भाइयों ने मिलकर अगबत्ती को तैयार करने में इस्तेमाल होने वाले सामान की ट्रेडिंग शुरू की।


2009 में, अपनी बचत के पैसों और संपत्ति पर मिले लोने की मदद से कांतिलाल ने 1200 स्कवेयर फ़ीट की जगह में एक मैनुफ़ैक्चरिंग यूनिट खोली।

कांतिलाल बताते हैं,

“मार्केट में हमारे संबंध थे, लेकिन फिर भी शुरुआत में ऑर्डर्स मिलने काफ़ी दिक़्क़त पेश आई। हमने पूरे एक साल संघर्ष करते रहे, लेकिन इसके बाद हमें अच्छी प्रतिक्रिया मिलना शुरू हुई।”

धीरे-धीरे कंपनी आगे बढ़ने लगी और 2012 तक कंपनी के पास 320 डिस्ट्रीब्यूटर्स का नेटवर्क हो गया। इतनी अच्छी प्रतिक्रिया मिलने के बाद कांतिलाल ने हिम्मत दिखाते हुए 8 हज़ार स्कवेयर फ़ीट के एरिया में दूसरी मैनुफ़ैक्चरिंग यूनिट खोल दी।


कांतिलाल ने 2012 में एमएसएमई योजना के तहत चामुंडी अगरबत्ती का रजिस्ट्रेशन कराया और मात्र तीन सालों में कांतिलाल का ब्रैंड, अगरबत्ती के सबसे बड़े निर्माताओं में से एक बन गया। आज की तारीख़ में कंपनी का सालाना टर्नओवर 20 करोड़ रुपए है।

पाञ्चजन्य एंटरप्राइज़ेज़

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व्यवसायी श्रीनिवास एम.

2002 में बेंगलुरु के व्यवसायी श्रीनिवास एम. ने एक अख़बार में पढ़ा कि एमएसएमई मंत्रालय केमिकल मैनुफ़ैक्चरिंग के लिए एक प्रशिक्षण सत्र का आयोजन कराने जा रहा है। श्रीनिवास एक केमिकल ट्रेडर थे और उन्होंने सोचा कि ख़ुद से केमिकल मैनुफ़ैक्चरिंग सीखने का यह अच्छा मौक़ा है।


वह कहते हैं,

“मुझे इस अवसर में मैनुफ़ैक्चरिंग सेक्टर में जाने की राह दिखा, जिसमें ट्रेडिंग के बिज़नेस से कहीं अधिक संभावनाएं थीं। मैंने इस अवसर को भुनाने का फ़ैसला लिया और कार्यक्रम के अंतर्गत अपना रजिस्ट्रेशन करवा लिया।”

प्रशिक्षण ख़त्म होने के बाद श्रीनिवास ने तय किया कि अब वह अपनी मैनुफ़ैक्चरिंग यूनिट लगाएंगे। उन्होंने 5 लाख रुपए के निवेश के साथ बेंगलुरु से पाञ्चन्य एंटरप्राइज़ेज़ की शुरुआत की और इसमें उन्होंने लिक्विड हैंड वॉश, लिक्विड डिश वॉश, टॉयलट क्लीनर्स का आदि की मैनुफ़ैक्चरिंग शुरू की। 


हाल में, पांञ्चजन्य की दो मैनुफ़ैक्चरिंग यूनिट्स हैं कंपनी का टर्नओवर 7.5 करोड़ रुपए का है। बिज़नेस की सफलता को देखते हुए 2012 में जानवरों के खाने (फ़ूड सप्लीमेंट्स) की मैनुफ़ैक्चरिंग भी शुरू की गई। श्रीनिवास को उम्मीद है कि अगले पांच सालों में उनकी कंपनी का टर्नओवर 50 करोड़ रुपए तक पहुंच सकेगा।

मदर स्पर्श

रिशु गांधी 2015 में इन्फ़ोसिस में काम करती थीं। इस दौरान ही लंच टाइम में अपने साथी के साथ हुई बातचीत ने उनके जीवन की दिशा बदल ली। 29 साल के रिशु के करियर में एक ऐसा पल आया, जिसने उनके करियर की दिशा ही बदलकर रख दी। दरअसल, एक मां ने उनसे इस बात पर चर्चा की कि उनके बच्चे को वाइप्स की वजह से रैशेज़ हो जाते हैं।


अगले एक साल रिशु ने अपनी रिसर्च और आकलन की मदद से यह समझा कि बेबी प्रोडक्ट्स के मार्केट में कई कमियां हैं, जिन्हें पूरा किया जा सकता है। उन्हें जल्द ही एहसास हुआ कि मार्केट में ऐसे बेबी केयर प्रोडक्ट्स की ज़रूरत है, जो पूरी तरह से ईको-फ़्रेंडली और ऑर्गेनिक हों।


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रिशु गांधी


रिशु याद करते हुए बताती हैं,

“मैं ईको-फ़्रेंडली प्रोडक्ट्स का बिज़नेस करना चाहती थी, लेकिन मुझे इस बात की समझ नहीं थी कि शुरुआत कहां से की जाए। मैंने सबसे पहले अपने पिता जी से बात की और उन्होंने मेरा समर्थन किया। मैं अपने कुछ रिश्तेदारों से भी मदद मांगी और उन्होंने मुझे एक थर्ड पार्टी मैनुफ़ैक्चरर से मिलवाया। मैं मानती हूं कि मेरी नई ज़िंदगी की शुरुआत यहीं से हुई।”

2016 में बिना किसी बाहरी स्रोत से फ़ंडिंग लिए, पंजाब के मोहाली से मदर स्पर्श की शुरुआत की। उन्होंने अपने ब्रैंड के अंतर्गत भारत का पहला ईको-फ़्रेंडली और 98 प्रतिशत पानी के साथ वाला वाइप्स लॉन्च किया, जो बायोडिग्रेडेबल था। ब्रैंड का दावा है कि उनका उत्पाद सबसे शुद्ध है और साथ ही, बच्चों की नाज़ुक त्वचा का भी पूरा ख़्याल रखता है।


वह कहती हैं,

“एक बच्चे की त्वचा बहुत ही नाज़ुक और संवेदनशील होती है। मदर स्पर्श के वॉटर-बेस्ड वाइप्स पूरी तरह से प्राकृतिक हैं और पेड़-पौधों से मिलने वाले फ़ैब्रिक से तैयार किए जाते हैं और ये साफ़ पानी से बने हैं और बिल्कुल मखमल की तरह से मुलायम है। मुझे इस बात का ध्यान ही नहीं रहा कि मार्केट में पहले से ही बहुत बड़े-बड़े ब्रैंड्स मौजूद हैं और उनके सामने मेरा इस तरह से टिक पाना संभव नहीं हो सकेगा। मैंने लगभग 1 करोड़ रुपए बर्बाद कर दिए और यही मेरे लिए सबसे बड़ा सबक था।”

मदर स्पर्श लॉन्च करने के बाद जल्द ही रिशु ने सोच लिया कि वह रीटेल सेगमेंट में उतरेंगी। उन्होंने अपने उत्पादों की मार्केटिंग पर 1 करोड़ रुपए खर्च कर दिए और गुजरात और राजस्थान में स्टोर्स में अपने प्रोडक्ट्स रखवाए।


रिशु कहती हैं,

“मैं पूरे आत्मविश्वास के साथ रीटेल इंडस्ट्री में उतरी क्योंकि मुझे अपने प्रोडक्ट पर बहुत भरोसा था। मैं मानती हूं कि यही मेरी सबसे बड़ी ग़लती थी।”

इस भारी नुकसान के बाद, रिशु ने अपना मार्केटिंग मॉडल बदला और प्रोडक्ट सैंपलिंग से नई शुरुआत करने का फ़ैसला लिया। कंपनी ने अपनी टारगेट ऑडियंस को फ़्री सैंपल्स देना शुरू किया और उन्हें अपने प्रोडक्ट्स की ख़ूबियों से परिचित कराया। इसी साल, रिसर्च ऐंड मार्केट्स डॉट कॉम (researchandmarkets.com) नाम के मार्केट रिसर्च सोर्स ने मदर स्पर्श का ज़िक्र किया और मार्केट में मदर स्पर्श को उन चुनिंदा ब्रैंड्स की सूची में जगह दी, जो वॉटर-बेस्ड वाइप्स बना रहे थे।


आज की तारीख़ में कंपनी हर महीने 40-50 लाख रुपए के प्रोडक्ट्स बेचती है। यह बिक्री काउंटर्स और ईकॉमर्स प्लैटफ़ॉर्म आदि के माध्यम से  होती है। कंपनी का दावा है कि उनका सालाना टर्नओवर 3.5 करोड़ रुपए तक है।