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जादव पायेंग: इस अकेले शख्स ने खुद के दम पर खड़ा किया 1360 एकड़ का जंगल!

मिलें जादव मोलाई पायेंग से...

जादव पायेंग: इस अकेले शख्स ने खुद के दम पर खड़ा किया 1360 एकड़ का जंगल!

Wednesday October 16, 2019 , 3 min Read

कहते हैं कि अगर इंसान किसी काम को करने की ठान ले तो उसे पूरा होने से कोई नहीं रोक सकता। असम के जोराहाट जिले में पाई जाने वाली मिशिंग जनजाति के जादव 'मोलाई' पायेंग (55 साल) का नाम सुनने में भले ही आम लग रहा हो लेकिन यह कोई आम इंसान नहीं हैं। इन्होंने अपनी मेहनत और दृढ़ इच्छाशक्ति से केवल मिट्टी और कीचड़ से भरी जमीन को फिर से हरा-भरा कर दिया।


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जादव मोलाई पायेंग

साल 1979 में असम में आई भयंकर बाढ़ ने उनके जन्मस्थान के आसपास बड़ी तबाही मचाई थी। बाढ़ का ही असर था कि आसपास की पूरी जमीन पर सिर्फ मिट्टी और कीचड़ दिखता था। साधारण से दिखने वाले जादव ने अकेले उस खाली जमीन को घने जंगल में बदल दिया।


यह सब तब शुरू हुआ जब एक दिन जादव ब्रह्मपुत्र नदी स्थित द्वीप अरुणा सपोरी लौट रहे थे। उस समय जाधव ने बालिगांव जगन्नाथ बरुआ आर्य विद्यालय से कक्षा 10 की परीक्षा दी थी। रेतीली और सूनसान जमीन में सैकड़ों सांपों को बेजान मरता देख वह चौंक गए।


द बेटर इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक, एक दिन जादव ने आसपास के बड़े लोगों से पूछा,

'अगर इन्हीं सांपों की तरह एक दिन हम सब मर गए तो वे (बड़े लोग) क्या करेंगे?'


उनकी इस बात पर सभी बड़े-बुजुर्ग लोग हंसने लगे और उनका मजाक उड़ाने लगे, लेकिन वह (जादव) जानते थे कि उन्हें इस भूमि को हरा-भरा बनाना है।



बाढ़ ने द्वीप समूह को तबाह कर दिया था। अप्रैल 1979 में इस तबाही को देख जादव ने (जब वह महज 16 साल के थे) मिट्टी और कीचड़ से भरे द्वीप को एक नया जीवन देने के बारे में ठान लिया। इस बारे में जादव ने गांव वालों से बात की। गांव वालों ने उन्हें पेड़ उगाने की सलाह के साथ-साथ 50 बीज और 25 बांस के पौधे दिए। जादव ने बीज बोए और उनकी देखरेख की। उसी का परिणाम है कि आज 36 साल बाद उन्होंने अपने दम पर एक जंगल खड़ा कर दिया। 


जोराहाट में कोकिलामुख के पास स्थित जंगल का नाम मोलाई फॉरेस्ट उन्हीं के नाम पर पड़ा। इसमें जंगल के आसपास का 1360 एकड़ का क्षेत्र शामिल है। हालांकि इस जंगल को बनाना आसान नहीं था। जादव दिन-रात पौधों में पानी देते। यहां तक कि उन्होंने गांव से लाल चींटियां इकठ्ठी कर उन्हें सैंड बार (कीचड़) में छोड़ा।


अंत में उन्हें प्रकृति से उपहार मिला और जल्द ही खाली पड़ी जगह पर वनस्पति और जीव-जंतुओं की कई श्रेणियां पाई जाने लगीं। इनमें लुप्त होने की कगार पर खड़े एक सींग वाले गैंडे और रॉयल बंगाल टाइगर भी शामिल हैं।


उन्होंने कहा,

'मैंने कभी नहीं सोचा था कि मेरी एक छोटी सी पहल एक दिन इतना बड़ा परिवर्तन लाएगी।'