धमकियों से भी नहीं डिगीं दर्जनों सोसाइटी कचरा मुक्त बनाने वाली मुंबई की मारिया डिसूज़ा
इसे स्वीडन की उस 17 वर्षीय क्लाइमेट एक्टिविस्ट ग्रेटा थनबर्ग के जलवायु आपदा विरोधी आह्वान का असर मानें, जिन्हें हाल ही में दोबारा नोबल शांति पुरस्कार के लिए नामित किया गया है, अथवा भारत सरकार के प्लास्टिक विरोधी और स्वच्छ भारत मिशन की प्रेरणा कि देश-दुनिया बचाने के लिए लोग खुद-ब-खुद उठ खड़े हुए हैं।
वह अमेरिकी समुद्र तटों पर सक्रिय एंड्रयू कूपर और एलेक्स सुलेज हों, जो पानी से चार हजार टन प्लास्टिक कचरा निकाल कर तरह तरह के उत्पाद बना रहे हैं अथवा मुंबई की 68 वर्षीय रिटायर्ड अध्यापिका मारिया डीसूज़ा, जिन्होंने मुंबई की 44 सोसाइटी को कचरा मुक्त करा दिया है।
एक लहर की तरह उठी प्लास्टिक और कचरा विरोधी पहल की ही देन है कि एंड्रयू और एलेक्स ने अपनी कोशिशों की तरफ पूरे विश्व के युवाओं का ध्यान खींच लिया है और मारिया ने मुंबई वालो का।
मारिया डीसूज़ा की कोशिशों की तो दास्तान ही गज़ब की है। इस समय वह महानगर की लगभग चार दर्जन बांद्रा, खार, सांताक्रूज आदि की सोसाइटियों को कचरामुक्त करने के साथ ही अब वहां की बीस एएलएम सोसाइटी में कचरा कंपोस्टिंग को भी अंजाम तक पहुंचा चुकी हैं।
जब उन्होंने पूरे साहस और मेहनत के साथ इस दिशा में पहल की तो अपराधी तत्वों ही नहीं, पार्षदों तक से उन्हे मदद के बजाए धमकियां मिलीं लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।
बांद्रा के वैकुंठ अपार्टमेंट में रह रहीं मारिया ने इसकी शुरुआत तो लगभग एक दशक पहले ही कर दी थी लेकिन धीरे-धीरे लोग उनसे जुड़ते गए और कारवां बनता गया।
इस मुहिम की शुरुआत में उन्होंने पार्षदों के, नगर निगम के खूब फेरे लगाए लेकिन कहीं कोई सुनवाई नहीं।
जिस स्कूल में वह पढ़ाती थीं, वहां से उनके आवास तक पहुंचने में जगह-जगह मलबों के ढेर बदबू से राह निकलना दुश्वार किए रहते थे।
उनको मिल रहीं धमकियों की वजह थी, स्थानीय लोगों को अपने बगल में ही कचरा फेक देने की आदत।
वे तो गुस्से में उन पर ही कचरा फेक देते। इसके बाद वह सोसाइटी के कमेटी पदाधिकारियों से मिलने लगीं और कोशिश रंग लाने लगी।
वह कचरे को रिसाइक्लिंग सेंटर पर भेजने लगीं। साफ-सफाई का लोगों के दिमाग पर भी गहरा असर होने लगा। वे मारिया के साथ जुड़ते गए। अब ज्यादातर हाउसिंग सोसाइटी में रिसाइक्लिंग यूनिटें लग चुकी हैं।
अमेरिका में एंड्रयू कूपर और एलेक्स सुलेज ने तीन साल पहले बाकायदा '4ocean' नाम की कंपनी बनाकर अपनी मुहिम की शुरुआत की। उनके अभियान का मकसद रहा समुद्र से प्लास्टिक कचरा निकालना। अब कूपर और सुलेज इससे कई तरह के उत्पाद बनाकर बेच रहे हैं, जिनमें एक 14 सौ रुपये के ब्रेसलेट के अलावा बॉटल्स, शॉपिंग बैग्स, कपड़े आदि भी शामिल हैं। बीस डॉलर के ब्रेसलेट की सबसे ज्यादा डिमांड की वजह करीब 450 ग्राम कचरा हटाने में उसकी महत्वपूर्ण उपयोगिता है। ब्रेसलेट समुद्र के प्लास्टिक संकट को दूर कर रहा है
कूपर और सुलेज समुद्रों से प्लास्टिक कचरा समेटने के साथ ही लोगों को इस दिशा में जागरूक करने में भी जुटे हुए हैं। उन्होंने मध्य अमेरिका के समुद्र तटों की सफाई के लिए बीस स्थानीय कर्मी और छह कचरा हटाने वाली जहाज तैनात कर रखी हैं। इस समय वे नदियों से बहकर पहुंचे फ्लोरिडा, बाली, हैती के तटों पर फैले कचरे को हटा रहे हैं।
उन्होंने फ्लोरिडा, हैती, ग्वाटेमाला और इंडोनेशिया में अपनी कंपनी के ऑफिस भी खोल दिए हैं, जिनमें 300 से ज्यादा कर्मचारी काम कर रहे हैं। रिसाइकल प्लास्टिक उत्पाद बेचकर ही कर्मचारियों की सेलरी निकलती है।