सफल एंटरप्रेन्योर बनना है तो Infosys के फाउंडर नारायणमूर्ति की इन 9 बातों को गांठ बांध लें
हाल ही में पब्लिश हुई किताब 'स्टार्टअप कम्पास' में 75 वर्षीय कारोबारी नारायणमूर्ति ने अपनी सफलता के मंत्र शेयर किए हैं. उन्होंने इंफोसिस के शुरुआती दिनों में अपनाए गए एंटरप्रेन्योर बनने की सीख आज के एंटरप्रेन्योर्स दी है.
एनआर नारायणमूर्ति ने साल 1981 में इंफोसिस
की स्थापना की थी. उनके साथ 6 अन्य को-फाउंडर्स थे. हालांकि, उस समय आज की तरह एंटरप्रेन्योर्स को उतना समर्थन नहीं मिलता था. ऐसे में यह जानना दिलचस्प है कि नारायणमूर्ति इंफोसिस को कैसे खड़ा किया और देश में सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) रिवॉल्यूशन लेकर आए.हाल ही में पब्लिश हुई किताब 'स्टार्टअप कम्पास' में 75 वर्षीय कारोबारी नारायणमूर्ति ने अपनी सफलता के मंत्र शेयर किए हैं. उन्होंने इंफोसिस के शुरुआती दिनों में अपनाए गए एंटरप्रेन्योर बनने की सीख आज के एंटरप्रेन्योर्स दी है.
इसमें उन्होंने बताया है कि वह आज भी घरेलू उड़ानों में बिजनेस के बजाय इकॉनमी क्लास में यात्रा क्यों करते हैं. इसके साथ ही उन्होंने इंफोसिस के को-फाउंडरों के साथ मतभेदों को लेकर भी अपनी पत्नी के साथ कभी चर्चा नहीं करने का नियम बना लिया था.
यहां हम आपको नारायणमूर्ति की ऐसी 9 सीख आपको बताने जा रहे हैं जो उन्होंने खुद एक एंटरप्रेन्योर बनने के लिए अपनाए थे.
1. नारायणमूर्ति और उनकी इंफोसिस टीम ने जिस सबसे पहली और महत्वपूर्ण सीख को अपनाया वह थी वैल्यू को अपनाना और उनका पालन करना.
मूर्ति ने कहा कि वैल्यूज एक एंटरप्रेन्यों के दृढ़ संकल्प की रीढ़ होते हैं। हमारे वैल्यूज सिस्टम का पहला और सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांत फाउंडिंग टीम द्वारा लिए गए प्रत्येक निर्णय में कंपनी के हित को हमारे व्यक्तिगत हित से आगे रखना था.
उन्होंने आगे बताया कि उनके फाउंडिंग टीम के कुछ सहयोगी उनमें से कुछ निर्णयों से सहमत नहीं थे, लेकिन उन्होंने उन निर्णयों को स्वीकार किया और उनका पूरी प्रतिबद्धता के साथ पालन किया.
2. असफलताओं को एंटरप्रेन्योर्स की यात्रा का हिस्सा बताते हुए इंफोसिस के एमेरिटस के अध्यक्ष ने कहा कि यदि समय रहते और तत्काल विश्लेषण किया जाए तो विफलता फायदेमंद साबित हो सकती है. इसके लिए आपको पता लगाना होगा कि आप क्यों असफल हुए, असफलता से आपने क्या सबक सीखा और सुनिश्चित करें कि आपने दोबारा वही गलती नहीं की. उन्होंने सॉफ्ट्रोनिक्स में अपनी असफलता का उदाहरण दिया.
उन्होंने कहा कि सॉफ्ट्रोनिक्स की विफलता से मुझे पता चला कि उसके लिए मार्केट उपलब्ध नहीं है. इसके बाद अपने अगले वेंचर के लिए मैंने एक्सपोर्ट मार्केट पर फोकस किया.
3. मूर्ति ने कहा कि एक एंटरप्रेन्योर्स को हमेशा इसके लिए तैयार रहना चाहिए कि उसकी कंपनी को किसी स्ट्रक्चरल समस्या का सामना करना पड़ सकता है. ऐसे में एक एंटरप्रेन्योर्स अपने आइडिया को लेकर पैशन को थोड़ा कम रखने, भावनाओं में न बहने और जल्द से जल्द उससे बाहर निकलने के बारे में सोचना चाहिए.
उन्होंने आगे कहा कि सॉफ्ट्रोनिक्स का कोई घरेलू मार्केट नहीं था और मेरे पास उससे बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं था. इसलिए मैंने उसे 9 महीने में ही बंद कर दिया.
4. चौथी सीख उन्होंने एक एंटरप्रेन्योर की यात्रा में भाग्य की भूमिका बताई. मूर्ति ने कहा कि मेरे बहुत सारे दोस्त और सहपाठी थे, जो मुझसे ज्यादा होशियार थे. उनकी टीमों की साख हमसे बेहतर थी। उनके पास हमसे बेहतर विचार थे. लेकिन भगवान ने हमें मुस्कुराने के लिए चुना. कई ऐसी कठिन परिस्थितियां आईं और कई ऐसे डील्स के मौके आए जिनका परिणाण कुछ और निकल सकता था. हालांकि, ऐसी परिस्थितियों में भी भगवान ने हमें सही रास्ता दिखाया.
5. पांचवी सीख उन्होंने मार्केट कॉम्पिटिशन को लेकर दी जिसके दिवंगत कारोबारी राहुल बजाज ने सबसे बढ़िया मैनेजमेंट स्कूल बताया था. मूर्ति ने कहा कि मार्केट कॉम्पिटिशन ने हमें सिखाया कि अच्छे कस्टमर्स और कर्मचारियों को कैसे आकर्षित किया जाए और कैसे बनाए रखा जाए और अपने निवेशकों का विश्वास कैसे बढ़ाया जाए। हमारे ऑपरेशन के हर क्षेत्र में, हमने दुनिया में बेस्ट प्रैक्टिसेस के साथ खुद को बेंचमार्क किया.
6. छठीं सीख लीडरशिप को लेकर है. उन्होंने याद करते हुए कहा कि इंफोसिस के शुरुआती वर्षों के दौरान, जब कंपनी को रोजाना के खर्चों को लेकर सख्त होने की जरूरत थी, तब उन्होंने 1 अरब डॉलर के राजस्व पहुंचने तक अंतरराष्ट्रीय उड़ानों में भी इकॉनॉमी क्लास की यात्रा की.
उन्होंने आगे कहा कि मैं आज भी घरेलू उड़ानों में इकॉनमी क्लास से यात्रा करता हूं. मैं 2011 में सेवानिवृत्त होने तक हर सुबह 6.20 बजे ऑफिस में पहुंच जाता.
7. मूर्ति ने सातवीं बात 7 फाउंडर्स की टीम के उत्साह और आत्मविश्वास को 30 साल तक बनाए रखने को लेकर सीखी. मूर्ति ने कहा कि मैंने यह भी तय किया कि ऑफिस में किसी मुद्दे पर हमारे बीच जो भी मतभेद हैं, हममें से कोई भी अपने जीवनसाथी के साथ चर्चा नहीं करेगा. मैंने इसका सख्ती से पालन किया.
8. मूर्ति ने यह भी तय किया कि किसी भी कंपनी में किसी भी समय एक और केवल एक लीडर होना चाहिए. मूर्ति ने कहा कि कोई भी कंपनी समितियों द्वारा नहीं चलाई जा सकती. हमने सीखा कि एक लीडर को वैल्यूज पेश करके लीड करना होता है. लीडर को सबसे कठिन काम करना चाहिए, सबसे बड़ा बलिदान देना चाहिए. लीडर को कोई भी निर्णय लेने से पहले सक्षम और विशेषज्ञ सहयोगियों के विचारों और राय का स्वागत करना चाहिए, अपने निर्णय में उन विचारों पर विचार करना.
9. मूर्ति की नौवीं सीख एक सफल और नॉलेज कंपनी बनाने के लिए सक्षमता और उच्च वैल्यू सिस्टम थी. यही कारण है कि ‘पावर्ड बाय द इंटेलेक्ट, ड्राइवेन बाय वैल्यू’ इंफोसिस की टैगलाइन बन गई.