नोबेल विजेता सत्यार्थी ने संयुक्त राष्ट्र संघ को किया आगाह पॉर्नोग्राफिक डाटा प्रोवाइडरों के खिलाफ बने सख्त कानून
नोबेल पुरस्कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी ने संयुक्त राष्ट्र संघ और भारत सरकार को आगाह किया है कि डाटा प्रोवाइडरों को पॉर्नोग्राफिक सामग्री मुहैया कराने से रोकने के लिए एक ठोस कानून बनाया जाए। पहले से मान्य प्रॉटोकॉल पर अमल न होने से भारत की आत्मा आहत हो रही है, युवा पीढ़ी, बच्चे तक बर्बाद हो रहे हैं।
हमारी युवा पीढ़ी को खतरनाक हालात में धकेल चुकी ऑनलाइन पॉर्नोग्राफी ने इतने चिंताजनक हालात पैदा कर दिए हैं कि पहली दफा कड़ा हस्तक्षेप करते हुए हमारे देश की एक नोबेल पुरस्कार विजेता जानी-मानी शख्सियत कैलाश सत्यार्थी ने डेटा प्रोवाइडरों पर शिकंजा कसने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ और भारत सरकार से कानून बनाने की मांग उठा दी है। 'बचपन बचाओ आन्दोलन' के संस्थापक सत्यार्थी कहते हैं- 'भारत विविधताओं का देश है। यह विविध रंगों वाले फूलों के गुलदस्ते की तरह है। यही हमारी ताकत है। हमारे ऐसे देश में बच्चों की पॉर्नोग्राफी का धंधा लगातार बढ़ता जा रहा है, जो बहुत ही चिंताजनक है। मैं चाहता हूं कि इसके लिए एक अंतरराष्ट्रीय कानून बने। दुनिया में ऐसी कोई ताकत नहीं पैदा हुई, जो भारत की आत्मा को मार सके। पॉर्नोग्राफी के बढ़ते चलन से नई पीढ़ी नैतिक रूप से बर्बाद हो रही है। पूरी दुनिया से बाल श्रम को खत्म करने के लिए अंतरराष्ट्र्रीय बाल श्रम संगठन और 144 देशों ने बच्चों के अधिकारों के लिए एक प्रोटोकॉल बनाया है। इस प्रोटोकॉल का अनुमोदन करने वाले देश को अपनी सीमा में पॉर्नोग्राफी पर पूर्ण रोक लगानी होती है।'
कैलाश सत्यार्थी कहते हैं- 'फिलहाल भारत में ऐसा कोई कानून नहीं है, जो डाटा प्रोवाइडरों को पॉर्नोग्राफिक सामग्री मुहैया कराने से रोक सके। सरकार ने कई ऐसी वेबसाइटों पर पाबंदी जरूर लगाई है लेकिन तकनीक के चलते इस पाबंदी को बाइपास करना मुश्किल नहीं है। पाबंदी के बाद कई ऐसी वेबसाइटें नए नाम से संचालित की जा रही हैं। एक ठोस कानून की स्थिति में डाटा प्रोवाइडर ऐसी साइटों पर पॉर्नोग्राफिक सामग्री अपलोड या डाउनलोड करने पर अंकुश लगा सकते हैं। पॉर्नोग्राफी एक वैश्विक समस्या है। इसलिए मेरा जोर संयुक्त राष्ट्र की कानूनी तौर पर बाध्य एक ऐसी संधि पर है, जो सदस्य देशों को एक विशेष कानून बनाने पर मजबूर कर सके। इससे यौन शोषण, पॉर्नोग्राफी और बाल तस्करी पर अंकुश लगाया जा सकेगा। मेरी मांग है कि ऑनलाइन पॉर्न और दूसरी आपत्तिजनक सामग्री की निगरानी के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और इंटरपोल को साथ लेकर एक वैश्विक तंत्र की स्थापना भी की जानी चाहिए।'
गौरतलब है कि उत्तराखंड हाईकोर्ट के निर्देश पर केंद्र सरकार ने पिछले वर्ष 827 पॉर्नोग्राफिक साइटों पर पाबंदी लगाई थी लेकिन इससे खास अंतर नहीं आया है। उससे पहले वर्ष 2015 में भी ऐसा ही आदेश जारी करने के बाद सरकार ने यह कहते हुए अपने पांव पीछे खींच लिए थे कि जिन साइटों पर बाल पॉर्नोग्राफी उपलब्ध नहीं है, उसके इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर (आईएसपी) ही पाबंदी का फैसला कर सकते हैं। हाल ही में भारत सरकार द्वारा कराए गए एक सर्वे में पाया गया है कि देश के आधे से भी अधिक बच्चे यौन दुर्व्यवहार के शिकार हो रहे हैं। इससे भी ज्यादा चिंता की बात यह है कि इनमें से केवल तीन फीसदी मामलों में ही शिकायतें दर्ज की गई हैं।
उत्तराखंड हाईकोर्ट ने देहरादून के एक मामले का स्वतः संज्ञान लेते हुए सीधे सीधे पोर्न वेबसाइटों के दुष्प्रभावों को रेखांकित किया है।हाईकोर्ट की बेंच ने ध्यान दिलाया है कि रेप जैसी जघन्यता की एक बड़ी वजह किशोरों और युवाओं में पॉर्न के प्रति बढ़ता रुझान है। धीरे धीरे यही ड्रग्स जैसा नशा उन्हें अपराध के लिए उकसा रहा है। दूसरी तरफ पूरी दुनिया में लंबे समय से इस पर बहस चल रही है कि आखिर पोर्न का वास्तविक समाज में स्त्रियों पर घटित होने वाले अपराधों से कोई संबंध है या नहीं। ऐसी मनोवृत्ति और स्वास्थ्य संबंधी अध्ययनों के अलावा नैतिकता, पाबंदी, आचार संहिता, वर्जना, यौन अपराध और मनोविकार और पोर्न की लत से जुड़े अध्ययन भी हुए हैं।
नोबेल विजेता कैलाश सत्यार्थी के सोच के विपरीत शोध निष्कर्षों में पाया गया है कि सीधे तौर पर पोर्नोग्राफी को ही कारक मानना कठिन है क्योंकि राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के तत्कालीन आंकड़े भी इस परिकल्पना की पुष्टि करते नहीं पाए गए। अमेरिका विश्व में पोर्न का सबसे बड़ा उपभोक्ता है और आंकड़ों के मुताबिक वहां बलात्कार के मामलों में पिछले दस साल में गिरावट ही दर्ज की गई है। पोर्न को लेकर नैतिकता, सजा या शुद्धतावादी ठेकेदारी से ज्यादा ऐसे सुहृद्य, साहसी और समझदार परिजनों, पर्यवेक्षकों, बौद्धिकों, शिक्षकों, मनोविज्ञानियों, कानूनविदों और पुलिस अधिकारियों की जरूरत है, जो पोर्न से जुड़ी गलत और भ्रामक धारणाओं पर नई पीढ़ी से, किशोरों से और बच्चों से स्पष्ट और सरल भाषा में संबोधित हो सकें, उन्हें खतरों से आगाह कर सकें।
इस बीच विश्व के साथ भारत में भी गैरकानूनी तरीके से सेक्स खिलौनों का बाजार फल-फूल रहा है, जबकि हमारे देश में 'सेक्स खिलौने' की बिक्री पर कानूनी प्रतिबंध है। देश की बाकी जगहों की कौन कहे, दिल्ली के पालिका बाजार और मुंबई के क्राफर्ड मार्केट तक में ऐसे सामान बेंचे जा रहे हैं। हालात कितने गंभीर हैं कि समीर सरैया माइक्रोसॉफ्ट की बड़ी नौकरी छोड़कर इस कारोबार में उतर चुके हैं। समीर बताते हैं कि भारत में इस समय लगभग डेढ़ हजार करोड़ का कारोबार हर साल 35 फीसदी की दर से बढ़ रहा है। अगले साल 2020 तक यह कारोबार 8,700 करोड़ रुपए का हो जाने की संभावना है।
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