सफलता के लिए जरूरी नहीं आईआईटी या आईआईएम का टैग, इन टेक कंपनियों के फाउंडर्स ने किया साबित
पिछले 8-9 सालों में विजय शेखर शर्मा (पेटीएम), बायजू रवींद्रन (बायजू), आशीष शाह (पेपरफ्राई) और गिरीश मतरुबुतम (फ्रेशवर्क्स) जैसे टेक स्टार्टअप्स के फाउंडर्स ने यह साबित किया है कि एक सफल उद्यमी होने के लिए आईआईटी-आईआईए क्लब का हिस्सा होना अनिवार्य नहीं है।
एक सफल कंपनी खड़ी करने के लिए आईआईटी और आईआईएम के टैग को काफी अहम माना जाता है। खासतौर से जब बात एक टेक कंपनी को खोलने की हो। आईआईटी से पढ़ाई पूरी करने के बाद कंपनी खोलने वाले उद्यमियों में नारायण मूर्ति और नंदन निलेकणि (इंफोसिस), सचिन बंसल (फ्लिपकार्ट), विनोद खोसला (सन माइक्रोसिस्टम) और अन्य के नाम शुमार है। वहीं आईआईएम के पास संजीव बिकाचंदानी (नौकरीडॉटकॉम), दीप कार्ला (मेकमायट्रिप), अजित बालाकृष्णन (रेडिफडॉटकॉम) जैसे नाम है। हालांकि पिछले 8-9 सालों में विजय शेखर शर्मा (पेटीएम), बायजू रवींद्रन (बायजू), आशीष शाह (पेपरफ्राई) और गिरीश मतरुबुतम (फ्रेशवर्क्स) जैसे टेक स्टार्टअप्स के फाउंडर्स ने यह साबित किया है कि एक सफल उद्यमी होने के लिए आईआईटी-आईआईए क्लब का हिस्सा होना अनिवार्य नहीं है।
पिछले कुछ सालों में खुले इन टेक स्टार्टअप्स के अलावा भी ऐसे कई गैर-आईआईटी और गैर-आईआईएम उद्यमी हैं, जिन्होंने एक लंबे समय में सफलता अर्जित की है। एसएमबीस्टोरी ने कुछ ऐसे ही सफल टेक उद्यमियों की सूची तैयार की है, जिन्होंने एक लंबे समय में यह साबित किया है कि एक मुनाफा कमाने वाली कंपनी को बनाने और चलाने के लिए किसी को आईआईटी और आईआईएम के डिग्री की जरूरत नहीं है।
आर एस सनभाग- वैल्यूप्वाइंट सिस्टम्स
कर्नाटक के हुबली में स्थित केएलई टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी (पूर्व में बीवीबी कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी के नाम से जाने जानी वाली) से इंजीनियरिंग डिप्लोमा करने के बाद आर एस सनभाग ने 1991 में वैल्यूप्वाइंट सिस्टम नाम से एक आईटी इंफ्रास्ट्रक्चर सर्विस कंपनी की शुरुआत की थी। एक छोटे से गांव से आने वाले सनभाग के पास कंपनी को शुरू करने के वक्त सिर्फ 10,000 रुपये थे। वह अपनी कंपनी को सेक्टर की बड़ी कंपनियों में शुमार कराना चाहते थे, लेकिन उन्हें यह पता था कि यह मंजिल 100 मीटर की तेज दौड़ से नहीं बल्कि मैराथन के जरिए ही हासिल की जा सकती है।
बेंगलुरु के पहले दौर के उद्यमी होने, एक कंपनी के लाइफ साइकल के बारे में जानकारी होने और आईटी हब के रूप में शहर के विकास ने निश्चित रूप से सनभाग की मदद की। इसके अलावा उन्होंने लॉन्ग-टर्म गोल को निर्धारित कर उसकी दिशा में काम किया और अपनी कंपनी को कुछ हजार रुपये से आज 600 करोड़ रुपये के टर्नओवर वाली कंपनी में बदल दिया है। साथ ही इस दौरान आई तीन मंदियों का भी उन्होंने सफलतापूर्वक सामना किया।
अभिषेक रुंगता- इंडस नेट टेक्नोलॉजीज
अभिषेक रुंगता युवास्था में लोगों के घरों में इंटरनेट कनेक्शन इंस्टॉल कर और उन्हें ब्राउजर व ईमेल के इस्तेमाल की ट्रेनिंग देकर अपनी पॉकेटमनी हासिल किया करते थे। कंम्यूटर को लेकर अपने शौक को देखते हुए उन्होंने 1997 में कोलकाता में इंडस नेट टेक्नोलॉजीज नाम से एक आईटी कंपनी खोली। हालांकि उनके सामने सबसे बड़ी रुकावट यह थी कि उनके पास इंजीनियरिंग की कोई डिग्री नहीं थी। उन्होंने बताया, 'मैंने कोलकाता के सेंट जेवियर्स कॉलेज से बीकॉम किया था। कोडिंग के बारे में मैंने खुद से सीखा था। मुझे अभी भी लगता है कि मुझे इंजीनियरिंग से जुड़े विषय से एक औपचारिक डिग्री की जरूरत है।'
1991 में अभिषेक ने यूके के यूनिवर्सिटी ऑफ बॉथ में जाकर मल्टीमीडिया में एमएससी किया। इसके बाद वह जावा, मोबाइल एप्लिकेशन, टॉपनेट और दूसरी नई टेक्नोलॉजी को अपनी कंपनी में लॉन्च करने में सफल हो सके। अभिषेक के पास कई तरह के क्लाइंट्स थे। हालांकि इनमें सबसे ज्यादा संख्या एसएमई की थी। अगले दो दशक में उन्होंने उस कोलकाता शहर में एक शानदार टेक ईकोसिस्टम खड़ा किया, जिसने अभी डिजिटल क्रांति की सफर चलना शुरू ही किया था।
मुरुगवेल जनकिरमन- भारतमैट्रीमोनी
भारतमैट्रीमोनी देश की पहली विवाग संबंधी वेबसाइट है। इसे मुरुगवेल जनकिरम ने 1997 में शुरु किया था। इस वेबसाइट को शुरू करने से पहले मुरुगवेल, अमेरिका में एक तमिल समुदाय को चलाते थे, जिसका अनुभव उनके काम आया। यूनिवर्सिटी ऑफ मद्रास से कंप्यूटर एप्लिकेशन में ग्रेजुएट मुरुगवेल अमेरिका में इस समुदाय को तमिल कैलेंडर, त्योहार, भारत की यात्रा और फ्लाइट बुकिंग में मदद जैसी मुफ्त सेवाएं उपलब्ध कराते थे। इन सेवाओं में शादी के लिए जोड़ियों को मिलाना भी शामिल था। अगले कुछ सालों में उन्होंने देखा कि लोग शादी के लिए लड़के-लड़की की तलाश से जुड़ी सेवा में ज्यादा दिलचस्पी ले रहे हैं, जिसके बाद उन्होंने इस पेड सर्विस बनाने का फैसला किया। इस प्लेटफॉर्म के जरिए मिले सबसे सफल जोड़ों में से एक की कहानी 1999 में शुरू हुई, जब मुरुगवेल को खुद इस पोर्टल के जरिए अपनी जीवनसंगिनी मिली। आज की तारीख में भारतमैट्रीमोनी एक लिस्टेड कंपनी है, जिसकी 2018 में आनुमानित आमदनी करीब 350 करोड़ रुपये थी।
सत्य प्रभाकर- सुलेखा
पिछले एक दशक में इंटरनेट और डिजिटल माध्यमों के बढ़ते चलन के चलते डायरेक्टरीज अब लगभग गायब हो गई है और इसकी जगह कंपनियां और सर्विस प्रोवाइडर्स अब ऑनलाइन लिस्ट हो रहे हैं। चेन्नई निवासी और एनआईटी से ग्रेजुएशन करने वाले सत्य प्रभाकर ने इसे पहले ही भांप लिया था। उन्होंने 2007 में स्थानीय सेवाओं के लिए सुलेखा नाम से एक डिजिटल प्लेटफॉर्म शुरू किया।
उन्होंने बताया, 'मैं 2015 से पहले एक ऑलाइन लिस्टिंग सर्विस चलाता था, जो एक ऑनलाइन येलो पेजेस की तरह था। यह भारत और अमेरिका के 100 से ज्यादा शहरों में कंज्यूमर को स्थानीय कंपनियों से जोड़ने का काम करता था।' सुलेखा ने 2015 में खुद को एक विशुद्ध डिजिटल प्लेटफॉर्म में बदल दिया, जहां कंज्यूमर्स और सर्विस प्रोवाइडर्स सीधे एक दूसरे को ढूढ़ और जुड़ सकते हैं। लोगों की ऑनलाइन सर्विस में बढ़ती दिलचस्पी के चलते सत्या की अगुआई वाली सुलेखा आज सभी स्थानीय सेवाओं को मुहैया करानी वाली एक लाखों डॉलर की कंपनी में बदल चुकी है।
नलिन तायल- जीएटीएल इंडिया
पंजाब के लुधियाना से आने वाल नलिन तायल ने गुरु नानक देव कॉलेज से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की थी और 5 सालों तक फाइनेंशियल कंसल्टेंट के रूप में काम किया था। हालांकि तायल हमेशा से अपनी खुद की कंपनी शुरू करना चाहते थे। ऐसे में उन्होंने 1991 में जीएटीएस इंडिया लिमिटेड नाम से अपनी खुद की फाइनेंशियल कंसल्टेंसी फर्म खोली। उन्होंने बताया, 'मुझे पता था कि भविष्य अनिश्चित है। मेरे पास शुरुआत में कुछ भी नहीं था। मैं वह दिन कभी नहीं भूल सकता जब मैंने अपने स्कूटर में पेट्रोल भरवाने के लिए अपनी पत्नी से 100 रुपये मांगे थे।'
नलिन ने जल्द ही यह अंदाजा लगा लिया कि आने वाला समय फिनटेक कंपनियों का है। ऐसे में उन्होंने कैशलेस पेमेंट ईकोसिस्टम में निवेश करना शुरू किया। उनकी कंपनी का डिजिटल वॉलेट, जीएटीएस पे बीटूबी पेमेंट्स को सपोर्ट करता है। फिलहाल इस प्लेटफॉर्म से करीब 42,000 यूजर जुड़े हैं जो रोजाना करीब 5.7 लाख ट्रांजैक्शन करते हैं। कंपनी ने 400 रुपये की आमदनी दर्ज की है और बैंकिंग, फॉरेक्स, टूर एंड ट्रैवेल्स और डिजिटल पेमेंट्स जैसी सेवाओं में खुद का विस्तार किया है।