ताकि सलामत रहें सफाई कर्मचारी: युवाओं ने बनाया मैनहोल की सफाई करने वाला रोबोट
आज ऐसे वक्त में जब बिन ड्राइवर के कार चल सकती हैं और घर साफ करने के लिए रोबोट बन जाते हैं वहीं भारत में सफाई कर्मचारी गंदगी से भरे मेनहोल में डूबकर मरने को मजबूर हैं। केंद्र सरकार के एक डेटा के मुताबिक 2017 में मैन्युअल स्कैवेंजर्स यानी हाथ से मैला साफ करने वाले सफाई कर्मचारियों की संख्या 53,236 थी। मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो पिछले 4 सालों में मैनहोल में उतरकर सफाई करने में 300 सफाई कर्मचारियों को जान से हाथ धोना पड़ा। यह दुखद स्थिति है कि तकनीक के होने के बावजूद हम इंसानी जानों की हिफाजत नहीं कर पा रहे हैं।
मैनहोल में उतरकर अपनी जान जोखिम में डालने वाले सफाई कर्मचारियों की मदद करने के लिए चार युवा इंजीनियरिंग छात्रों ने एक स्टार्टअप की शुरुआत की है। तिरुवनंतपुरम में स्थित इस स्टार्टअफ का नाम है जेनरोबोटिक्स। इस स्टार्टअप ने मकड़ी के आकार का एक रोबोट विकसित किया है जो मैनहोल में उतरकर सफाई करेगा। इसका नाम बांदीकूट है। वजन 50 किलो वजनी बांदीकूट रोबोट वायुचालित है। इसे रिमोट के जरिए कंट्रोल करते हुए मैनहोल में भेजा जा सकता है जहां यह अपने आप सफाई करता है। इस रोबोट की भुजाएं 360 डिग्री अंश पर घूम सकती हैं।
लेकिन इस रोबोट को बनाने की शुरुआत कैसे हुई? इस स्टार्टअप को एमईएस कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, कालीकट में कॉलेज प्रोजेक्ट के रूप में शुरू किया गया था। विमल गोविंद एमके, अरुण जॉर्ज, निखिल एनपी, और राशिद बिन अब्दुल्ला खान नाम के दोस्तों को विज्ञान और तकनीक से काफी लगाव था। इसी लगाव ने बांदीकूट के निर्माण की नींव रखी। विमल कहते हैं, 'विज्ञान और इंजीनियरिंग का काम इंसानों की मदद करना है। कॉलेज में हम कई तरह के सामाजिक कार्यों का हिस्सा थे। हमें महसूस हुआ कि सामाजिक बुराइयों को खत्म करने के लिए विज्ञान का सही प्रयोग करना चाहिए।'
इसके बाद टीम ने जेनरोबोटिक्स बनाने का फैसला किया। विमल की पूरी टीम समाज में कुछ अच्छा करने की योजना बना रही थी। उन्होंने सबसे पहले आयरन मैन सूट बनाने से शुरुआत की। विमल कहते हैं, 'रक्षा और निर्माण क्षेत्रों में काम करने वाले अधिकतर लोगों को भारी वजन उठाना पड़ता है। सैनिकों को करीब 70 से 80 किलो वजन उठाना पड़ता है और लंबी दूरी तय करनी पड़ती है। हमने एक रोबोटिक आयरन मैन सूट का एक प्रोटोटाइप बनाया, जो अधिक सामान को ऐसे बना देगा कि उसे आसानी से कहीं भी ले दाया सके।
इस आयरनमैन के प्रोटोटाइप को सिंगापुर में अमेरिकन सोसाइटी ऑफ रिसर्च सहित कई फेस्टिवल्स में प्रदर्शित किया गया। इसके बाद केरल स्टार्टअप मिशन के तहत इसे इन्क्यूबेशन सिस्टम में जाने का मौका मिला। यहां पर टीम ने आयरन मैन सूट का अधिक उन्नत संस्करण विकसित किया। लेकिन अभी भी उन्हें फंड्स की कमी का सामना करना पड़ रहा था। विमल कहते हैं, 'जब मैन्युफैक्चरिंग की बात आती है तो आपको अधिक फंड्स की जरूरत होती है। इसके साथ ही प्रोटोटाइपिंग और टेस्टिंग के काम में भी खर्च होता है। हमें जितना पैसा चाहिए था नहीं मिला इसलिए प्रोडक्ट तैयार करने में मुश्किलें आईं।'
इसी दौरान कोझिकोड में एक खबर आई जहां एक रिक्शॉ ड्राइवर मैनहोल में उतर कर सफाई करने वालों को बचाने के चक्कर में अपनी जान गंवा बैठा। वह सफाई कर्मचारियों के साथ मैनहोल में आधे घंटे तक फंसा रहा, लेकिन उन्हें कोई बचाने के लिए आगे नहीं आया। इसके बाद केरल सरकार को इन युवा इंजीनियरों की याद आई और उन्हें कोई ऐसा प्रॉडक्ट विकसित करने को कहा जिससे मैनुअल स्कैवेंजिंग को पूरी तरह से खत्म किया जा सके।
विमल कहते हैं, 'हमने रिसर्च करना शुरू किया तो हमें समझ आया कि यह समस्या कितनी जटिल है। यह समस्या सिर्फ साफ-सफाई या सामाजिक मुद्दा भर नहीं था, बल्कि इससे कई लोगों की जानें जा रही थीं। इसके बाद बांदीकूट रोबोट बनाने का विचार आया।' चारों युवा इंजीनियरों ने यह महसूस किया कि इस समस्या को तकनीक के सहारा सुलझाया जा सकता है। उन्होंने इसे बनाने के लिए आईटी कंपनियों में अपनी नौकरी छोड़ दीं और वापस केरल स्टार्टअप मिशन में आकर जेनरोबोटिक्स पर काम करने लगे।
लेकिन यह काम आसान नहीं था। टीम को विभिन्न प्रकार के परीक्षण करने पड़े और यह देखने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ी कि संभव विकल्प क्या हो सकते हैं। साथ ही, उन्हें वास्तव में स्टार्टअप को पंजीकृत करने, एक कार्यालय स्थापित करने और एक टीम बनाने पर काम करना था। उन्होंने शुरुआत में दोस्तों और कॉलेज इंटर्न के साथ काम किया। जल्द ही, उन्होंने एक प्रोटोटाइप का निर्माण किया और उसका परीक्षण भी किया।
बैंडिकूट को उन्हें उकसाने और मलबे को बाहर निकालने के लिए मैनहोल में गिराया जा सकता है, जिसे बाद में कचरे के ढेरों में ले जाया जाता है। बॉट की तरह काम करते हुए, यह आवश्यक सीखने की मात्रा को निर्धारित करने के लिए मशीन लर्निंग और कृत्रिम बुद्धिमत्ता का उपयोग करता है। बैंडिकूट 45 मिनट में मैन्युअल रूप से तीन से चार घंटे का काम पूरा कर सकता है।
यह रोबोट अपने आप मैनहोल में जा सकता है जहां से वह कचरे का ढेर लेकर लौटता है। यह मशीन लर्निंग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर आधारित है जो कि तीन से चार घंटे के काम को सिर्फ 45 मिनट में पूरा कर सकता है। विमल बताते हैं कि मैनहोल में उतरने वाले सफाई कर्मचारी बेहद गरीब होते हैं और उनकी आजीविका इसी पर आधारित होती है। इसीलिए उन्हें इस प्रोग्राम से जोड़ने का काम किया गया। अब तक इस टीम ने 100 मैन्युअल स्कैवेंजर्स को अपने साथ जोड़ दिया है।
जेनरोबोटिक्स तिरुवनंतपुरम में अपना मैन्युफैक्चरिंग सेटअप के साथ काम कर रहा है और जल्दी ही पुणे में इसकी एक और यूनिट शुरू होने वाली है। इसे बनाने में जिस सामग्री का उपयोग किया जाता है उसे फिलहाल चीन से आयात किया जा रहा है। वहीं तकनीक की बात करें तो अमेरिका, यूके और जर्मनी से भी मदद ली जा रही है। इस रोबोट की कीमत 15 से 35 लाख रुपये है। इसे दो मॉडल में संचालित किया जा रहा है। एक सीधे खरीदकर वहीं दूसरे तरीके में इसे किराये पर लेकर भी काम चलाया जा सकता है। अभी फिलहाल विमल और उनकी टीम वड़ोदरा में इसे स्थापित करने का काम कर रही है। इसे तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश और हरियाणा में पहले ही स्थापित किया जा चुका है। विमल ने बताया कि जेनरोबॉटिक्स ने दुबई नगर पालिका, शारजाह, और कतर के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं।
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