पत्रकारिता छोड़कर अब स्कूल में बच्चों को सिखाते हैं ट्रैफिक नियम का पालन करना
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ऋषभ आनंद
भारत में ट्रैफिक नियम को तोड़कर आगे बढ़ जाना काफी आम हो गया है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार भारत में 2017 में लगभग 4,64,910 सड़क दुर्घटनाएं हुईं। इसका मतलब है हर दिन 405 चोटें और 1,290 मौतें। इतनी मौतें जाहिर सी बात है हमारे लिए चिंता का विषय होना चाहिए। इसीलिए कई सारे संगठन सरकार के साथ मिलकर लोगों को ट्रैफिक नियमों का पालन करना सिखा रहे हैं। इसी मुद्दे का समाधान करने के लिए ऋषभ आनंद ने स्कूलों और कॉलेजों में वर्कशॉप आयोजित करने का फैसला किया। उन्होंने झारखंड में राइज अप नाम से एक संगठन की शुरुआत की।
ऋषभ खुद एक प्लेस्कूल चलाते हैं जिसका नाम है- कार्टून प्लेस्कूल। इस स्कूल में बच्चों को सड़क सुरक्षा और ट्रैफिक नियमों के बारे में जागरूक किया जाता है। 2016 में इस संगठन की शुरुआत हुई थी और तब से अब तक 250 से अधिक स्कूलों और कॉलेजों में कार्यशालाएं आयोजित हो चुकी हैं। राइज अप की प्रेजिडेंट कहती हैं, 'संगठन की शुरुआत के बाद हमने प्लेस्कूल के रूप में एक टिकाऊ मॉडल की शुरुआत की। हमारा सोचना था कि बच्चों को शुरू से ही ट्रैफिक नियमों की समझ हो सके।'
प्लेस्कूल में बच्चों को ट्रैफिक नियम से जुड़ी हुई कक्षाएं दी जाती हैं और इसके अलावा उन्हें लेन ड्राइविंग, सीट बेल्ट, हेलमेट का प्रयोग और ट्रैफिक लाइट का पालन कैसे किया जाए इसके बारे में भी बताया जाता है। इसके अलावा स्कूल परिसर में ही एक ट्रैफिक पार्क की स्थापना की गई है जहां बच्चों को सड़क सुरक्षा से जुड़ी नैतिकता समझाई जाती है। 36 महीने के अंतराल में बच्चों को ट्रैफिक से जुड़ी सारी जानकारी दी जाती है।
अपने प्लेस्कूल के बारे में बताते हुए ऋषभ कहते हैं, 'यह एक सच्चाई है कि हम अपने जीवन के शुरुआती वर्षों के दौरान जो सीखते हैं, वह हमारे साथ बहुत लंबे समय तक रहता है। अक्षर और संख्या का ज्ञान इसका बड़ा उदाहरण है। मैंने महसूस किया कि ट्रैफ़िक सेंस उन विषयों में से एक है, जिन्हें किसी के जीवन में बहुत पहले सिखाया जाना चाहिए। लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा हो नहीं पाता है।'
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पुलिस अधिकाियों के साथ ऋषभ
एनजीओ की स्थापना करने से पहले, ऋषभ एक पत्रकार थे। वे बेंगलुरु और दिल्ली में रह चुके हैं। इन शहरों में ट्रैफिक की दुर्दशा देखने के बाद, उन्होंने महसूस किया कि छोटे शहरों में स्थिति बदतर होगी क्योंकि छोटे शहरों में जागरूकता का स्तर बहुत कम था। इसलिए उन्होंने अपने गृहनगर रांची लौटने का फैसला किया। शहर में ट्रैफिक की स्थिति सही करने के लिए उन्होंने सबसे पहले पोस्टर कैंपेन शुरू किया। उनके प्रयासों ने लोगों का ध्यान खींचना शुरू किया। इसके बाद उन्होंने पुलिस प्रशासन और शहर के नगरपालिका अधिकारियों के साथ मिलकर जागरूकता बढ़ाने के लिए कार्यक्रम आयोजित किए। रांची से उनका कारवां शुरू हुआ और अब राज्य के चार से पांच शहरों में फैल गया है।
आने वाले वक्त में अपनी योजनाओं पर बात करते हुए ऋषभ कहते हैं, 'हमने अब दुर्घटना में शामिल लोगों और उनके रिश्तेदारों को परामर्श देना शुरू कर दिया है। हम कानूनी और चिकित्सा परामर्श देते हैं। अक्सर दुर्घटना में शामिल लोग मानसिक आघात के शिकार हो जाते हैं। इतना ही नहीं दुर्घटना में अपनी जान गंवा चुके लोगों के परिजनों की भी जिंदगी मुश्किल हो जाती है। हम उन्हें भी काउंसिलिंग प्रदान करते हैं।'
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