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गरीबी के चलते जिसे अपना बचपन गुज़ारना पड़ा अनाथालय में, वो अपनी मेहनत के बल पर बन गया IAS अधिकारी

गरीबी के चलते जिसे अपना बचपन गुज़ारना पड़ा अनाथालय में, वो अपनी मेहनत के बल पर बन गया IAS अधिकारी

Thursday April 04, 2019 , 3 min Read

मोहम्मद अली शिहाब

जिसे ज़िंदगी में सचमुच ही कुछ हासिल करना होता, उसे सुविधाओं और संसाधनों की आवश्यकता नहीं होती। बिना किसी सहारे और शिकायत के भी वो आगे बढ़ जाते हैं और कुछ ऐसा कर दिखाते हैं, जो उनके आसपास के माहौल के हिसाब से नामुमकिन होता है। ऐसा ही एक नाम हैं मोहम्मद अली शिहाब। शिहाब वो शख़्सियत हैं, जिन्हें गरीबी के चलते अपना बचपन अनाथालय में गुज़ारना पड़ा, लेकिन कुछ बड़ा करने का जुनून ऐसा कि सभी अभावों को पीछ छोड़ते हुए शिहाब ने आईएएस अधिकारी बन कर ही दम लिया।


2011 के यूपीएससी एग्ज़ाम में मोहम्मद अली शिहाब को 226वीं रैंक मिली थी। शिहाब की अंग्रेजी पर पकड़ अच्छी नहीं थी, जिसके चलते उन्हें इंटरव्यू के दौरान ट्रांसलेटर की ज़रूरत पड़ी, ऐसे में उन्होंने 300 में से 201अंक हासिल किए। इन दिनों शिहाब नागालैंड के कोहिमा में पदस्थ हैं l अपनी सफलता का पूरा श्रेय शिहाब अपने अनुशासन को देते हैं। अपने सामने आने वाली सभी चुनौतियों का सामना शिहाब ने कठिन परिश्रम, लगातार कोशिशों और अनुशासन के बल पर ही किया और सफलता हासिल की।


मोहम्मद अली शिहाब का जन्म केरल के मलप्पुरम जिले के एक गांव, एडवन्नाप्परा में हुआ था। बचपन में शिहाब अपने पिता के साथ पान और बांस की टोकरियों की दुकान में काम किया करते थे। 1991 में लंबी बिमारी के चलते शिहाब के पिता का देहांत हो गया, उस वक्त शिहाब की उम्र बहुत कम थी। शिहाब की मां इतनी गरीब थीं कि पिता के गुजर जाने के बाद वो अपने पांच बच्चों का खर्च नहीं उठा सकती थीं, जिसके चलते उन्हें दिल पर पत्थर रखकर शिहाब सहित अपने सभी बच्चों को अनाथालय में डालना पड़ा। 


कोई भी मां नहीं चाहती कि उसे अपने बच्चों से दूर होना पड़े, लेकिन गरीबी वो अभिशाप है जो कुछ भी करने को मजबूर कर देती है और यही वजह है कि शिहाब और उनके भाई बहनों को अपना बचपन एक मुस्लिम अनाथालय में गुज़ारना पड़ा। शिहाब ने अपनी ज़िंदगी के दस साल अनाथालय में गुज़ारे। वहां भी वो एक बुद्धिमान स्टूडेंट के तौर पर जाने जाते थे। वहां उन्हें जो पढ़ाया जाता उसे वो तुरंत समझ जाते।

अनाथालय अनाथालय होता है और औपचारिक स्कूल औपचारिक स्कूल, फिर भी शिहाब के लिए अनाथालय का जीवन उस जीवन से बेहतर था जहां पिता के गुज़र जाने के बाद उनका परिवार मजदूरी करके पेट पालने को मजबूर था।


शिहाब का कहना है कि उन्होंने अब तक विभिन्न सरकारी एजेंसियों द्वारा आयोजित 21 परीक्षाओं को पास किया है। जिनमें उन्होंने वनविभाग, जेल वार्डन और रेलवे टिकट परीक्षक के पदों के लिए भी परीक्षा दी है। शिहाब ने 25 साल की उम्र से ही सिविल सेवा की परीक्षा देने का सपना देखना शुरू कर दिया था।

शुरुआती दिनों से लेकर आईएएस अधिकारी बनने तक शिहाब के लिए जीवन आसान नहीं था। सीविल सर्विस की पहली दो परिक्षाओं में शिहाब असलफल रहे, लेकिन उन्होंने धैर्य बनाये रखा और थर्ड अटैंप्ट दिया। जिसमें उन्हें सफल मिली। मोहम्मद अली शिहाब जैसे लोग प्रेरणा है उन लोगों के लिए जिनके सपने तो बड़े हैं, लेकिन उनके हिस्से का आकाश उन्हें विरासत में नहीं मिलता बल्कि खुद गढ़ना होता है। इंसान अगर ठान ले तो कुछ भी नामुमकिन नहीं, जैसे कि शिहाब ने कर दिखाया।


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