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अरबों के कारोबार से हाथ धो बैठे पाक को नाखून कटाकर शहीद बनने का शौक

अरबों के कारोबार से हाथ धो बैठे पाक को नाखून कटाकर शहीद बनने का शौक

Saturday August 10, 2019 , 4 min Read

"पाकिस्तान की मति मारी गई है तो क्या कर लेगा कोई। खफ्तुलहवाशी में वह तीन अरब की चपत लगा बैठा है। पीएम मोदी तो कश्मीरियों के लिए नौकरी, कारोबार, परिवहन, शिक्षा-स्वास्थ्य की चिंता के साथ घाटी के ट्रेडिशनल प्रोडक्ट्स को विश्व बाजार से जोड़ने की पहल कर रहे हैं लेकिन उधर भी कुएं में पड़ी भांग माथा ठंडा नहीं हो दे रही है।" 


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भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ इमरान खान (पाकिस्तान) (फोटो: सोशल मीडिया)



इसे ताज़ा दौर का 'तीन सौ सत्तर गुना दर्द' कहने में आख़िर हर्ज क्या है, जबकि आर्टिकल 370 और 35A हटने के बाद कश्मीर और पाकिस्तान में मची हलचल ने सबसे पहले व्यापार क्षेत्र को डांवाडोल कर दिया है। कश्मीर से आने वाले फल भारतीय मंडी से या तो लापता हो रहे हैं या भारी महंगाई की चपेट में। कश्मीर में सेबों का सीजन अभी शुरू हुआ है और आवक 60 फीसदी तक लुढ़क गई है। माल भाड़ा 30 फीसदी तक बढ़ने के साथ ही सेब, आलूबुखारा और नाशपाती के ट्रांसपोर्ट पर गहरा असर पड़ा है। आवक में देरी होने से सेब की कीमतों में 10 फीसदी और आलूबुखारा, नाशपाती की कीमतों में 12 फीसदी तक उछाल आने का अंदेशा है। 


भारत और पाकिस्तान के बीच सालाना तीन अरब रुपये से अधिक का व्यापार होता रहा है। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान ख़ान के भारत के साथ व्यापार स्थगित करने के ऐलान से हर सप्ताह छह-सात हज़ार रुपये कमाने वाले हजारों कश्मीरी मजदूरों के चूल्हे बुझने लगे हैं। चकोठी सेक्टर के गोदाम चार महीने पहले से भरे पड़े हैं, जिससे नियंत्रण रेखा के पार फ़ैसलाबाद, लाहौर, पंडी की मंडियों का कारोबार भी जाम हो चुका है। इस बीच हाथोहाथ बिकने वाली कश्मीरी शॉल, फल, मसाला, क़ालीन, फ़र्नीचर, जड़ी-बूटी, सब्जी, चावल, अखरोट, दाल, लकड़ी, कढ़ाई वाले कपड़ों आदि के कारोबारी निढाल हुए जा रहे हैं।


पुलवामा हमले के बाद फरवरी में पाकिस्तान के खिलाफ कड़ी आर्थिक कार्रवाई करते हुए भारत आयात पर 200 प्रतिशत सीमा शुल्क लगा देने, मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा छिन जाने के बावजूद आर्थिक बदहाली से गुजरते पाकिस्तान का व्यापारिक रिश्ता एकतरफा समेट लेने का फैसला खुद के पांवों में कुल्हाड़ी मार लेने जैसा है। नाखून कटाकर शहीद बनने के उसके शौक ने अब उसे कहीं का नहीं रखा है। इस पर तुर्रा ये कि उसने रेल यात्रियों की मुश्किलें बढ़ाते हुए 'समझौता' और 'थार' एक्सप्रेस के चक्के वाघा बॉर्डर पर थाम दिए हैं। उल्लेखनीय है कि भारत हथियारों, मादक पदार्थों और अवैध नोटों की पाकिस्तान से चल रही तस्करी के कारण इस साल अप्रैल से क्रॉस एलओसी ट्रेड पहले से ही निलंबित कर रखा है। 





प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चाहते हैं कि हालात सामान्य हों, इसी मकसद से सिक्यूरिटी लॉकडाउन के पांच दिन बाद राज्य में फोन-इंटरनेट सेवाओं की बहाली के साथ शुक्रवार की नमाज के लिए पाबंदियों में भी ढील दी गई, ईद मनाने में भी उनको किसी तरह की कठिनाई न हो।


पीएम का मकसद है कि अब तक देश के अन्य लोगों को हासिल हो रहीं सुविधाएं जम्मू कश्मीर के लोगों को भी मिलें, राज्य के बच्चे और बेटियां अपने अधिकारों से वंचित न रहें, सफाई कर्मचारियों का कल्याण हो, दलितों का उत्पीड़न रुके, एससी-एसटी वर्ग को आरक्षण का लाभ मिले, बंटवारे के बाद भारत आए लोगों को मतदान और चुनाव लड़ने का अधिकार मिले, पुलिसकर्मियों और सरकारी कर्मचारियों को अन्य केंद्र-शासित प्रदेशों की तरह सुविधाएं मिलें; साथ ही, नोएडा इंटरप्रिन्योर्स एसोसिएशन (एनईए) भारत सरकार को पत्र लिखकर श्रीनगर के आसपास इंडस्ट्रियल टाउनशिप बनाने की मांग कर रहा है, गुजरात कोऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन कश्मीर में अपना प्लांट लगाना चाहता है, दूसरी तरफ पाकिस्तान अब चीन समेत दुनिया भर में कश्मीर में अपनी दखलंदाजी के सपने देखने से बाज नहीं आ रहा है।  


ऐसे में समझना होगा कि शुरू से ही जम्मू कश्मीर को आर्थिक तौर पर मजबूत बनाने में केंद्र सरकार की बड़ी भूमिका रही है। उसको केंद्र से 50 प्रतिशत आर्थिक मदद के साथ कुल 70 प्रतिशत राजस्व मिलता आ रहा है। आज भी इस राज्य को अपनी खेती, बागवानी, पर्यटन आदि से अन्य कुल कमाई से ज्यादा पैसा केंद्र सरकार की तरफ से उसे हासिल होता रहता है। केंद्र सरकार चाहती है कि लद्दाख के नौजवानों को अब अच्छे शिक्षण संस्थान और अस्पताल मिलें, वहां के इंफ्रास्ट्रक्चर का और तेजी से आधुनिकीकरण हो, लद्दाख सोलर पावर जनरेशन स्पिरिचुअल टूरिज्म, एडवेंचर टूरिज्म, इको टूरिज्म का सबसे बड़ा केंद्र बने। 


केंद्र की मंशा है कि जम्मू-कश्मीर के स्थानीय प्रतिनिधियों, लद्दाख और करगिल की डवलपमेंट काउंसिल्स के सहयोग से केंद्र सरकार वहां विकास की तमाम योजनाओं का लाभ अब और तेजी से पहुंचाने की रणनीति बना रही है ताकि कहवा, सेब, खुबानी, कश्मीरी कलाकृतियों, ऑर्गैनिक प्रॉडक्ट्स, हर्बल मेडिसिन वहां से दुनिया भर में पहुंचे, लेकिन इसके लिए जरूरी है कि अलगाववाद, आतंकवाद, परिवारवाद और व्यवस्थाओं में बड़े पैमाने में फैले भ्रष्टाचार का वहां सफाया हो, और तब, सरदार पटेल, बाबा साहेब अंबेडकर, डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी, अटल बिहारी वाजपेयी के सपने साकार हों।