हरियाणा में पेड़-परिंदों को बचाने के लिए ममता बंसल की ईको-फ्रेंडली मुहिम
करनाल की ममता गर्ग बंसल की आखिर वह कौन सी ईको-फ्रेंडली मुहिम है, जिससे जुड़ने के लिए इस समय अंबाला, हिसार, पानीपत, कुरुक्षेत्र, चंडीगढ़, रोहतक, कैथल तक से रोजाना उनके पास सैकड़ों फोन आ रहे हैं! वह मुहिम है, परिंदों की रक्षा के लिए लोगों को मुफ्त में बर्ड फीडर और एक माह का दाना उपलब्ध कराना।
करनाल (हरियाणा) में ममता गर्ग बंसल जॉयलैप प्री स्कूल का संचालन करने के साथ-साथ बच्चों में प्रकृति से जुड़ने, पर्यावरण प्रेमी होने का हुनर भी विकसित कर रही हैं। इतना ही नहीं, वह अपने इलाके में जगह-जगह मंदिर परिसरों में वहां के कचरे से 'कंपोस्ट प्लांट' स्थापित करने का भी अभियान चला रही हैं। इसके साथ ही, वह पक्षी-प्रजातियों को बचाने के लिए 22 अप्रैल 2019 से अब तक सैकड़ों घरों को 'बर्ड फीडर्स' उपलब्ध करा चुकी हैं।
ममता के ईको-फ्रेंडली एक्सपेरीमेंट उसी तरह के हैं, जैसे गाजियाबाद की शिप्रा सनसिटी मंदिर परिसर में डेढ़ लाख की मशीन लगाकर मंदिर के कचरे से खाद और बायोगैस बनाई जा रही है। मंदिर के पीछे दस फीट का टैंक बनाकर उसे अंडरग्राउंड पाइपलाइन से मूर्तिस्थल को जोड़ दिया गया है। टैंक के पास लगी मोटर पाइपलाइन के जरिए टैंक से दूध खींचकर करीब दो सौ मीटर दूर रखी मशीन तक पहुंचा देती है। उसी समय बासी फूल-पत्तियां मशीन में डाल दी जाती हैं। उसके बाद तैयार खाद बेच दी जाती है और बायोगैस से मंदिर के पुजारी, पदाधिकारी खाना पका लेते हैं।
करनाल की ममता गर्ग बंसल अपने स्कूल के बच्चों से जो पौधे लगवाती है, उनके साथ उन बच्चों की फोटो भी लगवा दी जाती हैं। बंसल का कांसेप्ट है कि वे बच्चे और उनके द्वारा रोपे गए पौधे एक साथ बड़े होते जाएंगे। जो बच्चा, जो पौधा लगाता है, उसे सहेजने की जिम्मेदारी भी उसी पर डाल दी जाती है। बच्चों को प्रकृति से जोड़ने की इस अनूठी पहल को करनाल की सामाजिक संस्थाओं का भी सहयोग मिल रहा है।
ममता बताती हैं, एक दिन उन्होंने देखा कि घरों का गलनशील कचरा गलियों में, मंदिर परिसरों में प्रदूषण फैला रहा है। इसके समाधान के लिए उन्होंने चंडीगढ़ की कई नर्सरियों को खंगाला। वहीं से उनको पांच फीट के आकार वाली कंपोस्ट प्लांट मशीन का पता चला, जो कचरे को कुछ ही दिनों में जैविक खाद में बदल देती है। इस समय वह खासतौर से अपने इलाके के मंदिर परिसरों में वह मशीनी प्लांट की मुहिम चला रही हैं। 22 अप्रैल को पृथ्वी दिवस पर इसकी शुरुआत गीता मंदिर से की गई थी।
ममता बताती हैं, बचपन में जिन पक्षियों को देखकर वह बड़ी हुईं, वह धीरे-धीरे विलुप्त होते जा रहे हैं। प्रकृति का ताना-बाना बिखरते देखकर उन्हे जब अंदर से काफी दुख होने लगा तो एक दिन ठान लिया कि वह पक्षियों को बचाने के लिए अब कुछ न कुछ जरूर करेंगी। उन्होंने महिलाओं की संस्था चला रहीं आशा गोयल के साथ मिलकर परिदों को बचाने के लिए 22 अप्रैल को 'बर्ड फीडर्स' बांटने की एक अनोखी मुहिम शुरू कर दी।
दो-ढाई सप्ताह में ही ममता ने ढाई सौ से अधिक घरों में 'बर्ड फीडर्स' पहुंचा दिए। वे आवंटित सभी 'बर्ड फीडर्स' के लिए मुफ्त में एक महीने का दाना भी पक्षियों के लिए उपलब्ध करा देती हैं। इसके बदले में वह घर वालों से वचन लेती हैं कि वह बेजुबान परिदों की रक्षा के लिए रोजाना बर्ड फीडर्स में दाने-पानी का इंतजाम करना न भूलें। अब बर्ड फीडर्स पर पक्षियों की चहचहाहट लोगों को प्रकृति से जोड़ रही है। इस काम के लिए ममता बंसल और आशा गोयल को अब रोजाना अंबाला, हिसार, पानीपत, कुरुक्षेत्र, चंडीगढ़, रोहतक, कैथल तक से सैकड़ों फोन आते हैं कि वे उन्हें भी अपनी मुहिम से जोड़ लें।