Brands
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
Youtstory

Brands

Resources

Stories

General

In-Depth

Announcement

Reports

News

Funding

Startup Sectors

Women in tech

Sportstech

Agritech

E-Commerce

Education

Lifestyle

Entertainment

Art & Culture

Travel & Leisure

Curtain Raiser

Wine and Food

YSTV

ADVERTISEMENT
Advertise with us

हिंसा के दौरान इंटरनेट शटडाउन के पक्ष में लोग, सोशल मीडिया पर नहीं है भरोसा, सर्वे में सामने आई बड़ी बातें

भारत में जनवरी 2012 और जून 2022 के बीच, सरकार द्वारा लगाए गए इंटरनेट शटडाउन की संख्या 647 थी. यह संख्या दुनिया के किसी देश की तुलना में सबसे अधिक थी.

हिंसा के दौरान इंटरनेट शटडाउन के पक्ष में लोग, सोशल मीडिया पर नहीं है भरोसा, सर्वे में सामने आई बड़ी बातें

Friday October 21, 2022 , 4 min Read

दुनियाभर में अक्सर किसी न किसी कारण इंटरनेट सेवा को बंद किया जाता है. इसके लिए कई बार सरकार द्वारा सुरक्षा कारणों का हवाला दिया जाता तो और कई बार किसी तकनीकी समस्या के कारण इंटरनेट शटडाउन किया जाता है.

भारत में जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर के इलाकों में महीनों और सालों तक कानून व्यवस्था के नाम पर इंटरनेट बंद कर दिया जाता है जबकि देश के अलग-अलग हिस्सों में कानून व्यवस्था के कारण कुछ दिन या कुछ महीने के लिए भी बंद कर दिया जाता है.

पिछले कुछ सालों में ऑनलाइन परीक्षाओं का चलन बढ़ने के कारण ऐसे मामले सामने आने लगे हैं जिसमें नकल रोकने के लिए इंटरनेट शटडाउन कर दिया जाता है.

एक डिजिटल अधिकार समूह, Access Now के आंकड़ों के अनुसार, 2016 और 2021 के बीच, 74 देशों में सरकार द्वारा लागू लगभग 931 इंटरनेट शटडाउन दर्ज किए गए. वहीं, भारत में जनवरी 2012 और जून 2022 के बीच, सरकार द्वारा लगाए गए इंटरनेट शटडाउन की संख्या 647 थी. यह संख्या दुनिया के किसी देश की तुलना में सबसे अधिक थी.

36 फीसदी कानून-व्यवस्था के लिए इंटरनेट शटडाउन के पक्ष में

ऐसे में एक हालिया सर्वे में सामने आया है कि कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए ‘इंटरनेट शटडाउन’ (इंटरनेट सेवा बंद करना) का समर्थन करने वाले लोगों की संख्या इसके विरोधियों से कहीं अधिक है और बड़ी तादाद में लोग निगरानी के भी हिमायती हैं.

‘भारत में मीडिया’ विषय पर लोकनीति-सीएसडीएस द्वारा गुरुवार को जारी सर्वे में कहा गया है, “कानून-व्यवस्था के आधार पर सरकारों द्वारा इंटरनेट शटडाउन का समर्थन भी इसके विरोध से कहीं अधिक था. एकमात्र मुद्दा, संभवत: जिस पर इतनी रूढ़िवादी राय नहीं दिखी, वह था सरकार द्वारा सोशल मीडिया सामग्री का विनियमन.”

कुल प्रतिभागियों में से 36 फीसदी कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए इंटरनेट शटडाउन के पक्ष में थे, जबकि 26 प्रतिशत ने इसे गलत माना और 38 फीसदी ने कोई राय नहीं दी.

34 फीसदी को निगरानी से कोई फर्क नहीं पड़ता

सरकारी निगरानी के मामले में भी कुछ ऐसा ही मत देखने को मिला. बड़ी संख्या में लोगों ने निगरानी को अनैतिक नहीं माना. सर्वे के अनुसार, “बड़ी संख्या में प्रतिभागियों को सरकारी निगरानी में कुछ भी गलत नहीं नजर आता है.”

इसमें कहा गया है, “स्मार्टफोन और इंटरनेट के ज्यादातर उपयोगकर्ताओं को लगता है कि लोग इंटरनेट या स्मार्टफोन पर क्या करते हैं, इस पर सरकार नजर रखती है. हालांकि, उनकी इस राय का यह मतलब नहीं है कि वे सरकारी निगरानी के खिलाफ हैं.”

सर्वे के मुताबिक, 34 फीसदी लोगों को लगता है कि सरकार इस बात पर नजर रखती है कि वे फोन और इंटरनेट पर क्या करते हैं. वहीं, 14 प्रतिशत का मानना है कि सरकार ऐसा नहीं करती है, जबकि 52 फीसदी ने इस बारे में कोई राय जाहिर नहीं की.

सोशल मीडिया सबसे कम विश्वसनीय प्लेटफॉर्म

‘भारत में मीडिया’ विषय पर लोकनीति-सीएसडीएस के सर्वे से यह भी पता चला है कि बड़ी संख्या में इंटरनेट उपयोगकर्ता भले ही सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन यह उनके बीच सबसे कम विश्वसनीय प्लेटफॉर्म है.

सर्वे में शामिल कुल सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं में से आधों ने किसी न किसी पड़ाव पर फर्जी खबरों और सूचनाओं से भ्रमित होने की बात कही. यह सर्वे ‘कोनराड एडिन्योर स्टिफटंग’ के साथ मिलकर किया गया.

सर्वे से यह भी पता चलता है कि आधे से ज्यादा इटंरनेट उपयोगकर्ता फर्जी खबरों को लेकर चिंतित हैं. वहीं, इतनी ही संख्या में सोशल मीडिया यूजर ने माना कि इंटरनेट पर उपलब्ध फर्जी खबरों और सूचनाओं ने उन्हें कभी न कभी भ्रमित किया है.

इसी तरह, 28 फीसदी लोग सरकार द्वारा सोशल मीडिया सामग्री के विनियमन के पक्षधर थे. वहीं, 33 प्रतिशत इसके खिलाफ हैं, जबकि 39 फीसदी ने कोई राय नहीं व्यक्त की.

19 राज्यों के 7,463 लोग सर्वे में शामिल हुए

सीएसडीएस के निदेशक संजय कुमार ने कहा, “हमने ग्रामीण और शहरी भारत, दोनों से व्यवस्थित रूप से उचित नमूने लिए, ताकि यह पता चल सके कि मीडिया के बारे में भारतीयों की वास्तविक राय क्या है.”

उन्होंने ने कहा, “मुझे लगता है कि सरकारी निगरानी के बारे में एक विभाजित राय है, लेकिन जब सुरक्षा की बात आती है, जो भारतीयों के लिए चिंता का बड़ा विषय बन गया है तो निगरानी को व्यापक समर्थन हासिल है और यह बात सर्वेक्षण से बहुत स्पष्ट रूप से सामने आई है.”

यह सर्वे 19 राज्यों में किया गया और पारंपरिक व नए मीडिया मंचों, दोनों पर केंद्रित था. इसमें 15 साल और उससे अधिक उम्र के कुल 7,463 नागरिक शामिल हुए.