कर्नाटक के इस गाँव में लोग संस्कृत में करते हैं बात, छात्र पढ़ रहे हैं वेद
कर्नाटक के शिमोगा जिले का मत्तूर गाँव लोगों के बीच आम बातचीत संस्कृत भाषा में होती है। इस गाँव में छात्र वेद का भी अध्ययन करते हैं।
कर्नाटक के शिमोगा जिले का मत्तूर गाँव दुनिया भर में उन दुर्लभ स्थानों में से एक है जहाँ लोग नियमित रूप से संस्कृत में एक दूसरे से बातचीत करते हैं। तुंगा नदी के तट पर स्थित यह गाँव भारत में एकमात्र ऐसा स्थान है जहाँ संस्कृत अभी भी पनप रही है।
गाँव में लगभग 5 हज़ार लोग रहते हैं। इस गाँव के बच्चे 10 वर्ष की आयु में वेदों का अध्ययन करना शुरू कर देते हैं। मत्तूर का हर छात्र धाराप्रवाह संस्कृत बोलता है। गाँव में कथम अस्ति (आप कैसे हैं?), अहम् गच्छामि (मैं जा रहा हूँ) जैसी अभिव्यक्तियाँ सड़कों पर आसानी से सुनाई दे जाती हैं।
मत्तूर आज आधुनिक समय में परंपराओं को बनाए रखने का एक बड़ा उदाहरण बन गया है, जिसमें लोग अपने फोन पर भी संस्कृत में बात कर रहे हैं। ऐसा नहीं है कि यह गाँव पिछड़ा हुआ है या समय के साथ आगे नहीं बढ़ रहा है, गाँव के प्रत्येक परिवार में एक आईटी पेशेवर या एक लेक्चरर आसानी से मिल सकता है।
1981 में यह यात्रा तब शुरू हुई जब संस्कृत को बढ़ावा देने वाली संस्था संस्कृत भारती ने मत्तूर का दौरा किया। उन्होंने गाँव में 10 दिनों तक एक कार्यशाला का आयोजन किया, जहाँ उन्होंने भाषा को संरक्षित करने के लिए लोगों के बीच बहुत उत्साह देखा।
द बेटर इंडिया के अनुसार, समूह के एक प्रोफेट ने बताया,
"यह एक ऐसा स्थान है जहाँ लोग संस्कृत बोलते हैं, जहाँ पूरे घर में संस्कृत में बात होती है!"
ग्रामीणों ने इस पहल को गंभीरता से लिया और उन्होने तब संस्कृत को अपनी प्राथमिक भाषा बनाने पर काम करने का फैसला किया। संचेती ग्रामीणों द्वारा बोली जाने वाली एक और दुर्लभ बोली है जो संस्कृत, कन्नड़, तमिल और तेलुगु का अद्भुत मिश्रण है।
इस गांव के निवासियों को सीबीएसई स्कूलों में संस्कृत के साथ जर्मन भाषा को बदलने के केंद्र सरकार के फैसले के साथ जोड़ा गया है। द इकोनॉमिक टाइम्स के साथ बात करते हुए, मधुकर, जो सिस्को के साथ काम करने के बाद अपने गांव लौट कर आए हैं, उन्होने कहा,
"बेशक भारत में बच्चों को अनिवार्य रूप से संस्कृत का अध्ययन करना चाहिए। वेद बच्चों को पूर्ण जीवन जीने में मदद कर सकते हैं क्योंकि वे सिखाते हैं कि कैसे बेहतर पारिवारिक जीवन व्यतीत किया जाए, जिससे जीवन के आध्यात्मिक पहलू को समझा जा सके।"