मिलें पत्रकार से सोशल एक्टिविस्ट बने आलोक दीक्षित से और जानें शीरोज़ हैंगआउट कैफे के बारे में, जहां एसिड अटैक सरवाइवर्स का बढ़ रहा है आत्मविश्वास
पत्रकार से सोशल एक्टिविस्ट बने आलोक दीक्षित छाँव फ़ाउंडेशन के संस्थापक हैं। यह फ़ाउंडेशन एसिड अटैक सरवाइवर्स के लिए काम करता है। आलोक ने इसी के साथ शीरोज़ हैंगआउट नाम से एक कैफे की भी स्थापना की है, जहां एसिड अटैक सरवाइवर्स काम कर अपने आत्मविश्वास को ऊंचा कर रही हैं।
पत्रकार से सोशल एक्टिविस्ट बनने के साथ आलोक दीक्षित ने कई बड़ी मुहिमों में सक्रिय तौर पर हिस्सा लिया, फिर चाहे इंटरनेट सेंसरशिप के खिलाफ आंदोलन हो या एसिड अटैक विक्टिम की लड़ाई में उनका साथ।
गौरतलब है कि आलोक ने 2007 में भारतीय वायु सेना जॉइन की थी, लेकिन दो साल में आलोक ने वहाँ से इस्तीफा देते हुए पत्रकारिता में अपना करियर शुरू किया और कई प्रमुख टीवी चैनल और अखबारों के लिए काम किया। इसी बीच आलोक ने एसिड अटैक सरवाइवर्स की मदद करने की इस मुहिम को आगे ले जाने के मकसद से छाँव फ़ाउंडेशन की स्थापना की।
आज आलोक के साथ बड़ी संख्या एसिड अटैक सरवाइवर्स जुड़ीं हैं और आत्मविश्वास के साथ अपने जीवन में आगे बढ़ रही हैं। छाँव फ़ाउंडेशन इन पीडिताओं की कानूनी मदद, चिकित्सीय मदद और शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाएं मुहैया कराने में मदद कर रहा है।
ऐसे शुरू हुआ शीरोज़ हैंगआउट कैफे
आलोक ने इन पीडिताओं को रोजगार उपलब्ध कराने के उद्देश्य से शीरोज़ हैंगआउट कैफे की शुरूआत की, जहां पर एसिड अटैक सरवाइवर्स काम कर अपनी आजीविका अर्जित कर रही हैं, इस तरह यह कैफे इन सभी सरवाइवर्स के आत्मविश्वास को ऊंचा कर रहा है। शीरोज़ कैफे की शुरुआत दिसंबर 2014 में आगरा में हुई। इस कैफे को क्राउड फंडिंग के जरिये खड़ा किया गया था, कैफे की एक शाखा लखनऊ में भी संचालित है। कैफे की खास बात यह है कि यहा सिर्फ एसिड अटैक सरवाइवर्स ही काम करती हैं।
शीरोज़ कैफे की शुरुआत के बारे में योरस्टोरी से बात करते हुए आलोक कहते हैं,
“शीरोज़ शुरू करने का विचार एक दिन में नहीं आया, बल्कि यह विचार जरूरत से पनपा है। जब हमने एसिड अटैक को लेकर कैम्पेन शुरू किया, तब हमारे साथ एक नेटवर्क तैयार हुआ, हमारे साथ बड़ी संख्या में एसिड अटैक सर्वाइवर जुड़ीं। हम चाहते थे कि कुछ ऐसा काम करें जिससे हम लोगों को होस्ट कर सकें। महिलाओं के पास आमतौर पर कुकिंग और होस्टिंग जैसी बेसिक सकिल होती है, जिससे हमारा ये विचार आगे बढ़ पाया।”
आलोक आगे बताते हैं,
“जरूरी था कि एसिड अटैक सरवाइवर्स अपने पैरों पर खड़ी हो सकें। विदेशों में इस तरह के एक्सपेरिमेंट होते रहते हैं, लेकिन भारत में इनकी संख्या काफी कम है। कैसे एक तरह के ऑफिस का भी काम करता है, जिसके चलते हम हर दिन 2-3 सौ नए लोगों से मुलाक़ात करते हैं।”
शीरोज़ कैफे में बड़ी संख्या में ऐसे लोग आते हैं जिनहे शीरोज़ की स्थापना के बारे में कोई जानकारी नहीं है, लेकिन एक बार कैफे में आने के बाद वो भी इस मुहिम में आगे आ जाते हैं। इस तरह यह कम्यूनिटी लगातार अपना दायरा बढ़ाती जा रही है।
आलोक कहते हैं,
“हमारे साथ जितनी भी एसिड अटैक सरवाइवर्स जुड़ी हुई हैं, हमें उन्हे विक्टिम की तरह नहीं पेश करना है, बल्कि हमें उन्हे एक लीडर के दौर पर पहचान देनी है। आज ऐसा नहीं है कि इन सरवाइवर्स के केस हम लड़ रहे हैं, ये सभी अपने केस खुद ही लड़ रही हैं।”
अभी बाकी हैं बुनियादी समस्याएँ
वर्तमान में स्थापित समस्याओं के बारे में बात करते हुए आलोक कहते हैं,
“कई एसिड अटैक सरवाइवर्स के परिवार वाले दर के चलते उन्हे घर से बाहर नहीं निकलने देते हैं, ऐसे में हमारे लिए भी मुश्किल हो जाता है कि हम उन्हे मौके उपलब्ध करा सकें। हमारी कोशिश यह रहती है कि हम उन्हे उनके पैरों पर खड़ा कर सक्ने में उनकी मदद कर सकें, जिससे उनमे एक आत्मविश्वास जाग सके।”
छाँव फ़ाउंडेशन के बारे में बात करते हुए आलोक कहते हैं,
“हमें अभी पॉलिसी स्तर पर काफी काम करना बाकी है। सुप्रीम कोर्ट ने एसिड अटैक के खिलाफ कई आदेश जारी कर दिये हैं, लेकिन उन्हे अभी जमीन पर पूरी तरह लागू नहीं किया जा सका है। इसके चलते अभी हालात में अधिक बदलाव नहीं आ पाया है। फ़ाउंडेशन को लेकर हम इस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।”
आलोक के अनुसार देश में एसिड अटैक को रोकना छाँव फ़ाउंडेशन की प्राथमिकता है और इसके लिए हम सब एक मुहिम को आगे ले जा रहे हैं। शीरोज़ कैफे में काम करने वाली सरवाइवर्स के लिए आलोक उनकी बेहतर सैलरी से लेकर अन्य बुनियादी सुविधाएं जैसे शिक्षा आदि की तरफ भी पहल कर रहे हैं।
जुड़ रहे हैं लोग
आज बड़ी संख्या में लोग शीरोज़ के साथ जुड़कर इन सरवाइवर्स तक मदद पहुंचाना चाहते हैं। इस बारे में बात करते हुए आलोक कहते हैं,
“मैं चाहता हूँ कि लोग एक बार शीरोज़ आयें और यहाँ पर इन सभी से मिलें। लोग हमसे ईमेल के जरिये भी जुड़ सकते हैं, हमारी वेबसाइट भी मौजूद है। लोग हर तरह से हमें सहयोग कर सकते हैं। वे वॉलंटियर की तरह भी हमसे जुड़ सकते हैं। अगर उनके पास कोई ऐसी स्किल है जो इन सरवाइवर्स के काम आ सकती है, तो वे इसे सरवाइवर्स को सिखा भी सकते हैं।”
इस पहल को लेकर सरकार की तरफ से कैसा सहयोग रहा है, इस बारे में आलोक कहते हैं,
“सुप्रीम कोर्ट से जो आदेश पारित हुए हैं, उन्हे अभी जमीन पर पूरी तरह उतारा नहीं जा सका है। लोगों के बीच भी संवेदना जागृत करने की ख़ासी जरूरत है। जो काम शीरोज़ कर रहा है, वे ज़िम्मेदारी सरकार की भी हैं। एसिड अटैक को लेकर कानून भी अधिक कठोर नहीं किए जा सके हैं। सरकार को चाहिए कि इन सरवाइवर्स को नौकरी प्रदान करे, जिससे उन्हे अपने पैरों पर खड़े होने में मदद मिल सके।”
एसिड अटैक पर लगाम कैसे लगे, इसके बारे में बात करते हुए आलोक कहते हैं,
“एसिड अटैक करने वाले लोग यह चाहते हैं कि पीड़ित को तकलीफ हो, उसकी जिंदगी खराब हो, ऐसे में हमारी ज़िम्मेदारी है कि हम एक समाज के तौर पर इन सरवाइवर्स को मौका दें कि वे अपने पैरों पर खड़ी हो सकें, जिससे उस हमलावर का मकदम नाकाम हो सके और समाज में एक कड़ा संदेश जा सके।”
आलोक का मानना है कि समाज से अपराध मिटाने के लिए मुहिम चलनी चाहिए, क्योंकि एसिड अटैक भी इसी का एक हिस्सा है। अकेले एसिड अटैक को नहीं रोका जा सकता है। इसकी शुरुआत हमें अपने घर से करनी होनी, तब जाकर हम बड़ी हिंसा को रोक सकेंगे ।