मसूरी में पर्यटकों को पर्यावरण संरक्षण का संदेश देने के लिए 15 हज़ार प्लास्टिक बोतलों से बनाई 'वॉल ऑफ़ होप'
गढ़वाल हिमालय क्षेत्र में स्थित मसूरी हिल स्टेशन, ब्रिटिश शासन काल से ही हरियाली और शांत वातावरण के लिए लोकप्रिय रहा है और पर्यटकों को लुभाता रहा है। मसूरी को 'क्वीन ऑफ़ हिल्स' भी कहा जाता है। यहां पर लगभग 30 हज़ार लोगों की आबादी रहती है और सालाना यहां पर 30 लाख से ज़्यादा पर्यटक आते हैं।
इतनी भारी संख्या में पर्यटकों की आवाजाही की वजह से मसूरी में प्लास्टिक वेस्ट का स्तर बढ़ता जा रहा है और जो शहर की सुंदरता और वातावरण दोनों ही को प्रभावित कर रहा है। बिगड़ते हालात के प्रति जागरूक मसूरी की जनता ने इस चुनौतियों से लड़ने की ठानी है। मसूरी के नज़दीक 'वॉल ऑफ़ होप' नाम से एक इन्सटॉलेशन तैयार किया गया है। इस दीवार को 15 हज़ार प्लास्टिक की बोतलों से तैयार किया गया है।
यह दीवार 150 फ़ीट लंबी और 12 फ़ीट ऊंची है, जो बंगलो की कांडी गांव में स्थित है और इस साल जून महीने में इसका अनावरण हुआ था। इस दीवार को हिलडारी प्रोजेक्ट के अंतर्गत तैयार किया गया था, जिसके तहत प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट और प्लास्टिक से मुक्त वातावरण के लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में प्रयास किया जा रहा है। इस पहाड़ी क्षेत्र की ख़ूबसूरती को बरक़रार रखने के उद्देश्य के साथ, रीसिटी नेटवर्क और नेस्ले इंडिया ने साथ मिलकर हिलडारी प्रोजेक्ट की शुरुआत की थी, जिसके तहत मसूरी को देश के सबसे साफ़-सुथरे हिल स्टेशनों में से एक बनाने का लक्ष्य रखा गया था। इस कार्यक्रम के पीछे आइडिया था कि लोगों के अंदर पर्यावरण के प्रति उत्तरदायिता और जिम्मेदारी का भाव पैदा किया जाए।
हिलडारी प्रोजेक्ट की टीम, नियमित तौर पर पूरे मसूरी में सफ़ाई अभियान आयोजित करती रही है। टीम ने गोवा फ़ाउंडेशन के संग्रहालय के साथ भी करार कर रखा है, जिसका उद्देश्य है इस प्रोजेक्ट के लिए कला को अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाना। दो महीनों में तैयार हुई इस दीवार को बनाने में स्कूल और कॉलेजों के 50 से अधिक स्वयंसेवकों ने अपना सहयोग दिया था।
हिलडारी आंदोलन के सदस्य और रीसिटी नेटवर्क के मैनेजर मयंक टंडन का कहना है,
"जो लोग घूमने के लिए मसूरी आते हैं, उनके व्यवहार में बदलाव लाने की ज़रूरत है। पर्यावरण को साफ़-सुथरा रखने की जिम्मेदारी उनकी भी है, इस बात का आभास कराने के लिए ही यह दीवार बनाई गई है। यह दीवार लगातार पर्यटकों को इस बात का ध्यान दिलाती रहती है कि उनकी वजह से हिल स्टेशनों पर क्या प्रभाव पड़ रहा है और उन्हें एक जिम्मेदार पर्यटक की भूमिका निभानी होगी। "
उन्होंने आगे बताया,
"इस दीवार को तैयार करने में खर्च हुआ अधिकतर समय बोतलें और अन्य सामान इकट्ठा करने में लगा। हमने तीन तरीक़ों से प्लास्टिक वेस्ट इकट्ठा किया। हमने मसूरी के 16 होटलों से बोतलें इकट्ठा कीं। हमने कूड़ा-कचरा उठाने वालों से भी बोतलें ख़रीदीं और अपने सफ़ाई-अभियान से भी वेस्ट मटीरियल जुटाया।"
टीम ने कोन (शंकु) के आकार की बोतलें नहीं इस्तेमाल कीं क्योंकि उनके इस्तेमाल से निर्धारित ढांचे को तैयार करने में दिक्कत पेश आती। मयंक बताते हैं कि स्कूल-कॉलेज के विद्यार्थियों के अलावा स्थानीय लोगों, नगर निगम और ग्राम पंचायत ने भी उनकी टीम का पूरा सहयोग किया। गोवा फ़ाउंडेशन संग्रहालय के संस्थापक डॉ. सुबोध केरकर कहते हैं,
"हमने गोवा में इस ढांचे का प्रोटोटाइप तैयार किया था। यह ढांचा पूरी तरह से हवा और पानी से सुरक्षित है।"
दीवार को लोगों से मिलने वाली प्रतिक्रिया के संबंध में बात करते हुए मयंक कहते हैं कि दीवार बनने के बाद लोग काफ़ी आश्चर्यचकित थे और उन्हें यह संरचना इतनी पसंद आई कि कई लोगों ने तो दीवार के साथ सेल्फ़ी ली और फिर से अपने सोशल मीडिया अकाउंट्स पर पोस्ट भी किया। हिलडारी की हर महीने एक या दो बार सफ़ाई अभियान चलाती है। अभी तक टीम 18 अभियान चला चुकी है और हर बार लगभग 60 किलों वेस्ट इकट्ठा किया। टीम नगर पालिका परिषद, वेस्ट वर्कर्स, नागरिक समूहों, स्थानीय मीडिया चैनलों, कीन और स्क्रैंबलिंग ऐडवेंचर्स जैसे गैर-सरकारी संगठनों का भी सहयोग लेती है।
जो भी वेस्ट इकट्ठा होता है, उसे 'कीपिंग द एनवायरमेंट ईकोलॉजिकली नैचुरल' (कीन) नाम के एनजीओ द्वारा प्रॉसेस कराया जाता है। यह एनजीओ पिछले 25 सालों से वेस्ट प्रॉसेसिंग का काम कर रहा है। हिलडारी की टीम ने उत्तराखंड सरकार के सामने यह प्रस्ताव रखा है कि मसूरी में ऐसा इन्फ़्रास्ट्रक्चर विकसित किया जाए, जिसके माध्यम से यह सुनिश्चित हो सके कि पर्यटक गंदगी या कूड़े को सही जगह पर फेंके।
प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट की ज़रूरत को समझते हुए नेस्ले इंडिया ने गति फ़ाउंडेशन के साथ मिलकर मई में देहरादून और मसूरी में एक प्रोजेक्ट भी लॉन्च किया था। प्लास्टिक एक्सप्रेस नाम की एक वैन पूरे कस्बे में घूमती है, जो विभिन्न मैगी पॉइंट्स पर जाती है और प्लास्टिक वेस्ट इकट्ठा करती है। एक साल लंबे इस प्रोजेक्ट का लक्ष्य है कि पूरी कस्बे की 200 दुकानों से संपर्क बनाया जाए और प्लास्टिक वेस्ट के सही डिस्पोजल को अमल में लाया जाए।
नेस्ले की मदद से टीम अभी तक कम-क़ीमत वाले 6 टन प्लास्टिक वेस्ट (जो चिप्स, नूडल्स आदि की पैकेजिंग में इस्तेमाल होता है) को दिल्ली भेज चुकी है। जिस प्लास्टिक वेस्ट को रीसाइकल नहीं किया जा सकता, उसे पूरी जिम्मेदारी के साथ सही तरह से डिस्पोज़ कर दिया जाता है।
इतना ही नहीं, कूड़ा-कचरा उठाने वालों के प्रति सम्मान और शुक्रिया व्यक्त करने के लिए म्यूज़िअम ऑफ़ गोवा के एक कलाकार शहर की दीवारों पर तरह-तरह की कलाकृतियां बनाते हैं और उन्होंने इस प्रोजेक्ट को नाम दिया है- दीवारों पर दस्तक। मयंक बताते हैं कि उनकी पूरी कोशिश रहती है कि इस काम से जुड़े लोगों के जीवन को बेहतर बनाया जा सके।