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केवल 250 रुपए खर्च कर पानी बचाने में मदद कर रहा है इस शख्स का रेनवॉटर हार्वेस्टिंग यंत्र

केवल 250 रुपए खर्च कर पानी बचाने में मदद कर रहा है इस शख्स का रेनवॉटर हार्वेस्टिंग यंत्र

Tuesday August 06, 2019 , 2 min Read

थिंक टैंक नीति आयोग (NITI Aayog) की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि 2020 तक देश के 21 शहर जिनमें दिल्ली, चेन्नई, बेंगलुरू और हैदराबाद शामिल हैं, वो जमीन के भीतर के पानी से महरूम हो जाएंगे। और इस समस्या का सबसे बड़ा कारण होगा तेजी से बढ़ता शहरीकरण जिसने भूजल और झीलों को खत्म कर दिया। चेन्नई पहले से ही गंभीर जल संकट से जूझ रहा है। शहर में पानी खत्म हो चुका है। जलाशय सूख गए हैं - परिणामस्वरूप ऑफिस और स्कूल बंद हो रहे हैं। इस संकट से निपटने के लिए व्यक्तियों और समुदायों ने समान रूप से छोटे-छोटे उपाय करने शुरू कर दिए हैं। उदाहरण के लिए, चेन्नई के चितलापक्कम के 45 वर्षीय दयानंद कृष्णन से मिलिए, जिन्होंने 250 रुपये में एक साधारण वर्षा जल संचयन तंत्र यानी रेनवॉटर हार्वेस्टिंग यंत्र बनाया है। 


वॉटर

दयानंद कृष्णन


नवभारत टाइम्स के मुताबिक, दयानंद ने महज 250 रुपये खर्च कर ऐसी व्‍यवस्‍था की जिससे 10 मिनट में 225 लीटर पानी संग्रहण कर सकते हैं। दयानंद ने पीवीसी पाइप की मदद से एक डायवर्जन बनाया है। उन्‍होने बिल्‍ड‍िंग की छत से बारिश के पानी की निकासी के लिए लगे पाइप में इस पीवीसी पाइप को जोड़ दिया है। जिसकी निकासी सीधे जाकर एक ड्रम में होती है। रिपोर्ट्स के मुताबिक दयानंद ने बताया कि ऐसा करके उन्होंने 10 मिनट में 225 लीटर बचाया है।


द न्यू इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए दयानंद ने कहा, "मैंने सोचा कि बारिश का पानी बर्बाद क्‍यों होने दें। जब बारिश होती है, तो शुरुआत के कुछ मिनटों तक पानी गंदा होता है। ऐसा इसलिए कि उसके साथ छत पर जमा कचरा भी बहकर आ जाता है। लेकिन उसके बाद आने वाला पानी साफ रहता है। आप इस पानी से घर में पोछा भी लगा सकते हैं।" पाइप के अंत में जुड़ा कपड़ा फिल्टर यह सुनिश्चित करता है कि जो पानी निकल रहा है वह साफ और अशुद्धियों से मुक्त हो।


दयानंद के अलावा, चेन्नई में एक समुदाय ने एक घंटे के अंतराल में 30,000 लीटर पानी इकट्ठा किया। सबरी टेरेस अपार्टमेंट में रहने वाला ये समुदाय, वर्ष में तीन महीने बारिश के पानी का उपयोग करता है। बारिश के पानी को इकट्ठा करके अब संग्रहीत किया जाता है, इसके बाद यह ट्रीटमेंट से गुजरता है और फिर भूमिगत टैंकों में संग्रहित किया जाता है। बाद में, बचा हुआ पानी जमीन में छोड़ दिया जाता है।