76 साल पहले आज ही के दिन देश को मिली थी पहली महिला कमर्शियल पायलट
जिस साल देश आजाद हुआ, उसी साल प्रेम माथुर को पहला कमर्शियल पायलट लाइसेंस मिला था.
आज आजादी के 76 साल बाद इस देश में औरतें आजादी, आत्मनिर्भरता और सफलता के जिस मुकाम पर पहुंची हैं, उसके पीछे एक लंबी यात्रा, संघर्ष और कुर्बानियों का सिलसिला है.
आज 24 जनवरी है. आज से ठीक 76 साल पहले आज ही के दिन देश को पहली महिला कमर्शियल पायलट मिली थी. साल था 1947. वही साल, जब देश आजाद हुआ था. ये दोनों ऐतिहासिक घटनाएं तकरीबन आसपास एक ही साल में घटी थीं.
इलाहाबाद फ्लाइंग क्लब ने 37 वर्ष की एक महिला को कमर्शियल पायलट लाइसेंस दिया. यह किसी महिला पायलट को दिया गया देश का पहला कमर्शियल पायलट लाइसेंस था. बात जो सुनने में बड़ी मामूली लगती है. लेकिन इन्हीं मामूली बातों ने वह रास्ता बनाया, जिस पर चलकर आज यह देश उस जगह पर खड़ा है, जहां पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा महिला कमर्शियल पायलट हिंदुस्तान में हैं.
हम बात कर रहे हैं प्रेम माथुर की. 17 जनवरी, 1910 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद शहर के मिडिल क्लास परिवार में जन्मी प्रेम माथुर, जिन्होंने आगे चलकर डेक्कन एयरवेज और इंडियन एयरलाइंस के हवाई जहाज उड़ाए, जिन्होंने इंदिरा गांधी से लेकर लेडी माउंटबेटन तक को बिठाकर हवाई जहाज उड़ाया था.
प्रेम की शुरुआती शिक्षा इलाहाबाद के एनी बेसेंट स्कूल से और कॉलेज की शिक्षा इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हुई थी. घर के माहौल में ही कुछ ऐसा था कि हर कोई किसी न किसी रूप में फ्लाइंग के काम से जुड़ा हुआ था.
प्रेम के बड़े भाई फ्लाइंग इंस्ट्रक्टर थे. उनके छोटे भाई बाद में चलकर हवाई जहाज खरीदने और बेचने के बिजनेस में उतरे. उन्होंने कई इस्तेमाल किए हुए विमान खरीदे और बेचे.
एक बार की घटना है. एक विमान की डिलिवरी की जानी थी. प्रेम डिलिवरी के लिए जा रहे जहाज में पायलट की बगल वाली सीट पर बैठ गईं. घर की बात थी, तो कैप्टन ने बच्ची की जिद पर उसे बगल में बिठा लिया. उस छोटी सी उड़ान के दौरान ही प्रेम को ऊंचे आसमान में उड़ते और हवा से बातें करते हवाई जहाज से ऐसी मुहब्बत हुई कि फिर उन्हें और उनकी उड़ान को कोई रोक न सका.
उस दिन हवाई जहाज उड़ाते हुए कैप्टन ने हवा में कलाबाजियां करके, स्टंट दिखाकर प्रेम को डराने की भी कोशिश की, लेकिन डरने के बजाय प्रेम को हवाई जहाज से और ज्यादा इश्क हो गया.
यह वो वक्त था, जब एक लड़की के लिए पायलट बनने और हवाई जहाज उड़ाने की बात सोचना भी अकल्पनीय था. लेकिन प्रेम ने सपना देख लिया था और अब सपने को पूरा करने की बारी थी.
प्रेम को इस यात्रा में अपने परिवार और भाइयों का पूरा सहयोग मिला. इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से कॉलेज की शिक्षा पूरी करने के बा प्रेम ने इलाहाबाद फ्लाइंग क्लब ज्वाइन किया और कैप्टन अटल के नेतृत्व में हवाई जहाज उड़ाने की ट्रेनिंग लेनी शुरू कर दी.
बहुत कम समय के भीतर उन्होंने इस काम में महारत हासिल कर ली और 1947 में उनको पहला कमर्शियल पायलट लाइसेंस भी मिल गया. प्रेम को लगा कि अब तो उनका रास्ता साफ है. उनके पास हवाई जहाज उड़ाने की कमर्शियल लाइसेंस भी है.
लेकिन उन्हें नहीं पता था कि एक औरत होने के नाते उनकी राह में अभी बहुत सारे रोड़े थे. इतना आसान भी नहीं था मौका मिलना, लोगों का एक महिला पर भरोसा करना.
1949 का साल था. कोलकाता में नेशनल एयर रेस कॉम्पटीशन का आयोजन किया गया था. प्रेम उस रेस में हिस्सा लेना चाहती थीं. उनके लिए वहां तक पहुंचना ही काफी चुनौतियों भरा रहा. आखिरी समय तक आयोजनकर्ताओं ने उन्हें इससे बाहर रखने की कोशिश की क्योंकि वो इकलौती महिला थीं. आयोजकों को डर था कि एक महिला की मौजूदगी का रेस पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है. बाकी पायलट्स का ध्यान भटक सकता है.
फिलहाल तमाम कोशिशों के बाद आखिरकार उन्हें रेस में हिस्सा लेने का मौका मिल ही गया. रेस में वो पहुंच तो गई थीं, लेकिन इसके बाद जो हुआ उसकी किसी ने उम्मीद नहीं की थी. बाकी अनुभवी पायलटों की तरह उन्हें हवाई जहाज उड़ाने की लंबा अनुभव भी नहीं था. उन्होंने कुछ सौ घंटे ही अब तक जहाज उड़ाया था. लेकिन उस दिन उस रेस में उन्होंने सारे मर्दों को पछाड़ दिया और रेस जीत गईं.
प्रेम माथुर रातोंरात एक सनसनी बन गई थीं. हर कोई जानना चाहता था कि कौन है यह लड़की, जिसने बड़े-बड़े दिग्गज पायलट्स को पछाड़ दिया है.
इसके बाद प्रेम कमर्शियली हवाई जहाज उड़ाना चाहती थीं, लेकिन वो जिस भी एयरलाइन में नौकरी के लिए आवेदन करतीं, उन्हें यह कहकर मना कर दिया जाता कि एक औरत को हवाई जहाज उड़ाता देख लोग डरेंगे और उस विमान की सेवा नहीं लेंगे.
अंत में हैदराबाद के निजाम की एयरलाइन डेक्कन एयरवेज में उन्हें पायलट की जॉब मिल गई. यह उनकी पहली नौकरी थी. यहां शुरू के छह महीने उन्हें कोई सैलरी भी नहीं मिली, फिर भी वो काम करने को तैयार थीं क्योंकि उन्हें मौका मिल रहा था. सब जगह से रिजेक्ट होने के बाद उनके लिए यही बहुत बड़ी बात थी कि उन्हें विमान उड़ाने का अवसर दिया जा रहा है.
डेक्कन एयरवेज ने उन्हें मौका तो दिया था, लेकिन छह महीने के बाद भी न उन्हें सैलरी दी और न ही उन्हें कैप्टन बनाया. उसके बाद प्रेम डेक्कन एयरवेज छोड़कर जीडी बिड़ला की निजी पायलट बन गईं.
1953 में उन्हें पहली बार कैप्टन बनाया गया और यह जॉब थी इंडियन एयरलाइंस की. उसके बाद वह 30 साल तक इंडियन एयरलाइंस में कैप्टन रहीं. 22 दिसंबर, 1992 को उनका निधन हो गया.
प्रेम माथुर की कहानी आगे चलकर लिखी गई औरतों की उपलब्धियों की अनगिनत कहानियों की शुरुआती भूमिका है. औरतें आज जहां भी खड़ी हैं, उसके पीछे हमारी पुरखिनों की लंबी लड़ाई, मेहनत और संघर्षपूर्ण यात्रा है, जिसे हम सलाम करते हैं.
Edited by Manisha Pandey