अपनी मेहनत से सेब के एक हजार पेड़ तैयार कर मिसाल बनीं हिमाचल की कमला
हिमाचल प्रदेश की कमला ने पति के गुजर जाने के बाद घर-गृहस्थी संभालने के साथ-साथ एक ऐसा इतिहास रच दिया है, जिससे बड़े बड़े खेतिहर भी अचंभित हैं। अपने खेत में उन्होंने अपनी मेहनत से सेब के एक हजार पेड़ों का बाग तैयार कर दिया है। बाग से सेब ढोकर घर ले आने में मजदूरों की मदद लेने के सिवा बाकी सारा काम कमला खुद की करती हैं।
रामपुर बुशहर (हिमाचल प्रदेश) की मेहनतकश बागवान कमला ने बागवानी के क्षेत्र में वह हैरतअंगेज काम कर दिखाया है, जो हर किसी के लिए संभव नहीं हो सकता है। अकेली महिला होते हुए भी उन्होंने अपने गांव सभौवा नावा में करीब एक हजार सेब के पेड़ लगाकर बगीचे नया इतिहास रच दिया है। रामपुर बुशहर के समीप निरमंड तहसील क्षेत्र की निवासी कमला के बगीचे में करीब 350 पौधे आधुनिक नई प्रजाति के हैं। रेड चीफ, सुपर चीफ, आरगन स्पर प्रमुख हैं। कमला ने साबित कर दिया है कि यदि मन में कुछ कर दिखाने का जज्बा हो तो महिलाएं भी बागवानी क्षेत्र में नाम रोशन कर सकती हैं। कमला बताती हैं कि सेब की आधुनिक प्रजातियां काफी कमाई देने वाली हैं क्योंकि सेब का रंग और साइज अच्छा होता है तथा जुलाई के आखरी सप्ताह में फसल आ जाने से उससे वांछित मुनाफा भी मिल जाता है।
गौरतलब है कि हिमाचल और कश्मीर में सेब के बाग सबसे ज्यादा पाए जाते हैं लेकिन हरियाणा के गांव उचाना के किसान नरेंद्र चौहान सेब की बागवानी में नए-नए प्रयोग कर अच्छा मुनाफा कमा रहा हैं। वह अपने बाग में सेब के साथ बादाम की भी पैदावार ले रहे हैं। उनके 14 एकड़ में लगे बाग में किन्नू, अमरूद, आम, लीची व चिक्कू लगाए हुए हैं। उनको प्रति एकड़ एक लाख रुपए से ज्यादा आमदनी हो जाती है। नरेंद्र बादाम की खेती तो कई साल से कर रहे हैं। उन्होंने तीन साल पहले सेब के 227 पौधे लगाए थे। अब पौधों पर फल आने लगे हैं। नरेंद्र बताते हैं कि हिमाचल में पालमपुर युनिवर्सिटी ने सेब की एक ऐसी पौध तैयार की है, जो की निचले इलाके में ज्यादा तापमान में भी फल देती है। हिमाचल के मंडी जिले के रहने वाले हरिमन शर्मा ने सेबों की यह किस्म एचआरएन-99 तैयार की थी। निचले इलाकों में इसके अच्छे परिणाम आ रहे हैं।
कमला बताती हैं कि किसान परंपरागत खेती को छोड़कर ज्यादा मुनाफा कमा सकते हैं। गेहूं और जीरी सरकार खरीदती है, पर सरकार को इसमें कोई बचत नहीं है। किसान गेहूं जीरी की खेती को छोड़कर दूसरी खेती अपनाएं तो ज्यादा फायदा मिल सकता है। कमला ने बागवानी करना अपने स्वर्गीय पति से सीखा है। उनके पति बागवानी विश्व विद्यालय नौणी में अधिकारी थे। उनकी मृत्यु के बाद सारी जिम्मेदारी उन्हीं के सिर पर आ गई। उसके बाद उन्हे अपनी घर-गृहस्थी के लिए रात-दिन एक करना पड़ा। भारी मशक्कत के बाद धीरे धीरे उनकी मेहनत रंग लाने लगी। उन्होंने बिना किसी की मदद के बागवानी पर अपना ध्यान केंद्रित किया। कमला अपने बागीचे का सारा काम खुद ही संभालती हैं। मसलन, पौधों के लिए गड्डे बनाना, पौधे रोपना, स्प्रे्, प्रूनिंग, ग्रेडिंग पैकिंग आदि। उनको सिर्फ बगीचे से सेब ढो कर घर लाने के लिए मजदूरों से मदद लेनी पड़ती है।
हिमाचल वैसे भी सेब की खेती के नए नए इतिहास रचता रहता है। देहरा (कांगड़ा) के खेतिहर बागवान अब समुद्र तल से पांच सौ मीटर की ऊंचाई पर पथरिली जमीन में बौने कद वाले सेब के पेड़ों का बगीचा तैयार कर रहे हैं। देहरा के किसान पवन चौधरी और करियाडा के डॉ रक्षपाल ने अपने बगीचे में सेब के पौधे तैयार कर नई मिसाल पेश की है। यद्यपि सेब राज्य हिमाचल में मौसम की बेरुखी के चलते ऊपरी इलाके में सेब की पैदावार पर इस बार संकट के बादल हैं। मौसमी बदलाव, तापमान में गिरावट, ओलावृष्टि से फसल की बर्बादी से बागवानों को सेब की पैदावार घाटे का सौदा लग रही है, लेकिन निचले और गर्म इलाकों के किसानों ऩे कम ऊंचाई वाले इलाकों में सेब की नई किस्म तैयार कर के बड़ी उपलव्धि हासिल कर ली है। उनके लिए सेब की बागवानी घाटे का सौदा नहीं है। ऐसे में कमला जैसी मेहनतकश महिलाएं सेब की खेती के लिए नई मिसाल बन रही हैं।
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