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प्राइड मंथ जून 2022: Razorpay ने समलैंगिक इंप्लॉईज़ के लिए उठाया क्रांतिकारी कदम

गे, लेस्बियन और ट्रांसजेंडर इंप्लॉईज के लिए इंश्योरेंस के ये नए नियम कॉर्पोरेट के लिए उदाहरण बनेंगे.

प्राइड मंथ जून 2022: Razorpay ने समलैंगिक इंप्लॉईज़ के लिए उठाया क्रांतिकारी कदम

Saturday June 11, 2022 , 4 min Read

Razorpay, जो इंडिया का जाना-माना पेमेंट और बैंकिंग प्लेटफॉर्म है, अपने LGBTQ कर्मचारियों के लिए खुशियों की सौगात लेकर आया है. जून के महीने, जिसे 'प्राइड' मंथ (Pride Month) भी कहते हैं, को सेलिब्रेट करने के लिए कंपनी ने सभी LGBTQ कर्मचारियों के लिए अपनी इंप्लॉई हेल्थ पॉलिसी (Employee Health Policy) में बड़े बदलाव किए हैं.

LGBTQ या फिर LGBTQIA+ का अर्थ होता लेस्बियन, गे, बायसेक्शुअल, ट्रांसजेंडर, क्वियर, इंटरसेक्स, एसेक्शुअल इत्यादि समुदाय के लोग. यानी मोटे तौर पर वो लोग जो जेंडर और जेंडर से जुड़ी सामजिक भूमिकाओं से खुद को जोड़कर नहीं देखते हैं. बल्कि एक स्वछंद सेक्शुअल आइडेंटिटी के साथ जीना पसंद करते हैं. जो भी व्यक्ति खुद को सामाजिक तौर पर समलैंगिक या ट्रांसजेंडर मानता है, उसे सिर्फ हमारे देश में ही नहीं, दुनियाभर में एक बड़ा तबका हिकारत से देखता है. समलैंगिक और ट्रांस लोग कई साल से अपने हक़ की लड़ाई लड़ रहे हैं. और इसके पक्ष में इंडिया ने एक बड़ा कदम तब उठाया जब साल 2018 में समलैंगिकता को अपराध के दायरे से बाहर कर दिया और साल 2019 में ट्रांसजेंडर पर्सन्स प्रोटेक्शन ऑफ़ राइट्स एक्ट लागू किया.

रेज़रपे ने भी अब इस दिशा में कदम बढ़ाते हुए कॉर्पोरेट सेक्टर के लिए बड़ा उदाहरण तय किया है. पॉलिसी में बदलाव की सबसे खास बात ये है कि LGBTQ समुदाय के केस में न सिर्फ उनके माता-पिता बल्कि पार्टनर को भी इंश्योरेंस बेनिफिट मिलेगा. बता दें कि इंडिया में अभी समलैंगिकों को शादी करने का अधिकार नहीं है. ऐसे में उनके पार्टनर्स को इंश्योरेंस कवर देना सेक्शुअल विविधता को स्वीकारने की ओर एक बड़ा कदम है. साथ ही, रेज़रपे ऐसा करने वाला पहला 'फिनटेक' यूनिकॉर्न बन गया है.

इंश्योरेंस में आए बदलावों के बाद ये चीज़ें भी कवर में जुड़ गई हैं:

 जेंडर रीअसाइनमेंट सर्जरी: ये को-पेमेंट बेस्ड कवर होगा. कई ट्रांसजेंडर सर्जरी के साथ सेक्स चेंज करवाते हैं. आमतौर पर ये सर्जरी बेहद महंगी होती है क्योंकि इसमें जननांग दोबारा बनाए जाते हैं और फिर हॉर्मोन की मदद से सेक्स चेंज का पूरा प्रोसेस ख़त्म होता है.

इनफर्टिलिटी ट्रीटमेंट: वे महिलाएं जो मां बनना चाहती हैं मगर उन्हें किसी तरह की तकलीफ पेश आ रही है, वे इस कवर का लाभ ले सकती हैं. इसके साथ ही अगर डिलीवरी के बाद किसी तरह की दिक्कत आती है तो उसको भी कवर किया जाएगा. साथ ही पुराने कवर में 50,000 से 75,000 रुपये तक कि बढ़ोतरी की गई है.

 

आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट: कई लोग 'अल्टरनेटिव' मेडिसिन में ज्यादा यकीन रखते हैं. मगर किसी भी पॉलिसी में इसका कवर नहीं देखने को मिलता. रेज़रपे की नई पॉलिसी में अब इसे भी कवर मिलेगा.

विधवा/विधुर बेनिफिट: कोरोना काल की शुरुआत में इस बेनिफिट को लाया गया था. पहले नियम ये था कि इलाज के दौरान अगर किसी की मौत हो गई तो खर्चों का 90% इंश्योरेंस कवर करता था. और 10% इंप्लॉई का परिवार को-पे करता था. मगर अब इंश्योरेंस पूरा खर्चा उठाएगा.

  

रेज़रपे के लिए पीपल्स ऑपरेशन्स की वाइस प्रेसिडेंट अनुराधा भारत बताती हैं:

"रेज़रपे के लिए उसके कर्मचारी ही उसकी जान हैं. हम उनका सम्मान करते हैं और चाहते हैं कि उनकी सेहत अच्छी रहे. हमारे हर काम कि बुनियाद हमारे इंप्लॉई ही हैं. इस नई हेल्थ पॉलिसी को लॉन्च करने के पीछे मकसद यही था कि वर्कप्लेस में विविधता आए, साथ ही समलैंगिक और ट्रांस लोगों के लिए स्वीकार्यता बढ़े. हम अपने सभी इंप्लॉईज का ख्याल रखना चाहते हैं, जिनमें उनके परिवार वालों से लेकर LGBTQ समुदाय के केस में उनके लिव इन पार्टनर शामिल होंगे. इस तरह हम 'ख़याल रखने' की परिभाषा को बदलना चाहते हैं. ज़रूरी नहीं कि 'परिवार' की ट्रेडिशनल परिभाषा ही मानी जाए.

अनुराधा आगे बताती हैं:

कोरोना के कष्टकारी दौर ने हमें ये सिखाया है की हम सब बराबर हैं. रेज़रपे के सभी इंप्लॉईज को हम बताना चाहते हैं कि हम एक ऐसा कल्चर बनाना चाहते हैं जिसमें भेदभाव न हो, सबके लिए पर्याप्त मौके हों और काम करने के लिए सुरक्षित माहौल हो, फिर भले ही उस व्यक्ति की आइडेंटिटी कुछ भी हो. हमें यकीन है कि ऐसा करने से हमारे इंप्लॉई भी बेहतर परफॉर्म करने के लिए प्रेरित होंगे."

बीते दो साल में रेज़रपे ने कई नयी चीजें अपने कल्चर में जोड़ी हैं. जैसे 'नो मीटिंग डेज़' या फिर 'वेलनेस लीव', जिसके पीछे कंपनी का लक्ष्य ऐसा कल्चर बनाना है जो कर्मचारियों को केंद्र में रखता हो.

LGBTQ समुदाय के हक़ में किए गए ये बदलाव बेशक ही कॉर्पोरेट कल्चर में एक उदाहरण की तरह देखे जाएंगे. और दूसरे संस्थानों के लिए प्रेरणा बनेंगे.


Edited by Prateeksha Pandey