हर हफ्ते दस पौधे लगाने वाली मासूम निकिता और ईहा को राष्ट्रपति ने किया पुरस्कृत
निकिता और ईहा दो ऐसी लड़कियां हैं, जो अपने छात्र जीवन से मिसाल बन गई हैं। निकिता स्कूल जाने के लिए रोजाना पैदल अकेले चौदह किलो मीटर लंबा वह खतरनाक जंगल पार करती है, जहां तेंदुओं, जंगली सुअरों से उसका सामना होता रहता है। ईहा पर्यावरण बचाने के लिए हर रविवार को दस पौधे लगाती है। राष्ट्रपति भी उसे शाबासी दे चुके हैं।
स्कूल जाने के लिए रोजाना चौदह किलोमीटर का घना जंगल पैदल पार करने वाली रायगढ़ (महाराष्ट्र) की निकिता कृष्णा और हर रविवार को दस पौधे रोपने वाली उत्तराखंड की नन्ही सी जान ईहा दीक्षित का जीवन प्रेरणा से भर देता है। एक को पढ़ाई की चुनौती थका देती है, फिर भी वह हार मानने को तैयार नहीं, दूसरी को अभी से पर्यावरण की चिंता सताती है। प्रधानमंत्री राष्ट्रीय बाल पुरस्कार से सम्मानित जागृति विहार, मेरठ (उ.प्र.) की ईहा पर्यावरण को बचाने के लिए हर रविवार पौधों के साथ गुजारती है। ये पौधे वह स्वयं नर्सरी से खरीदकर लाती है। इस नन्ही सी बच्ची का हौसला तो देखिए कि अपने पांचवें जन्मदिन पर एक ही दिन में उसने मेरठ के मेडिकल कॉलेज में एक सौ आठ पौधे और छठवें जन्मदिन पर ढाई हजार पौधे रोपने का रिकॉर्ड कायम कर दिया। ईहा पढ़ाई-लिखाई में भी तेज-तर्रार है।
इतना ही नहीं, यूकेजी में पढ़ रही ईहा के पिता कुलदीप तो बताते हैं कि किसी के भी जन्मदिन पर ईहा पौधों का उपहार देकर उनसे पौधारोपण की शपथ लेती है। उसके अभियान से अब बड़े लोग भी प्रभावित हो रहे हैं और उसके साथ रविवार को पौध रोपण में हाथ भी बंटाते हैं। वह घर पर मौसमी फल आम-जामुन खाने के बाद उनकी गुठलियां गमले में लगा देती है। ईहा कहती है कि वह ऐसे चालीस पौधों का बाग तैयार करना चाहती है। ईहा कार्टून चैनल पर पर्यावरण की रक्षा के लिए पौधारोपण के महत्व पर प्रकाश डाल चुकी है। राष्ट्रपति रामनाथ कोविद भी ईहा का हौसला बढ़ा चुके हैं। उन्होंने आश्वस्त किया है है कि कोई परेशानी हो तो वह उनको जरूर बताए। वह उसकी मदद करना चाहेंगे।
ईहा पर्यावरण को बचाने के लिए अपनी पूरी जिंदगी लगा देना चाहती है। ईहा की उपलब्धियों का अलजजीरा चैनल पर प्रसारण भी हो चुका है। ईहा के पिता कुलदीप, चौधरी चरणसिंह यूनिवर्सिटी में नौकरी करते हैं। ईहा को इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड, यूपी बुक ऑफ रिकॉर्ड, वियतनाम बुक ऑफ रिकॉर्ड आदि से सम्मानित किया जा चुका है। उसने 'ग्रीन ईहा स्माइल क्लब' नाम से अपना एक ग्रुप भी बना रखा है, जिसमें उसके छह नन्हे दोस्त शामिल हैं। पौधरोपण के समय रविवार को उसके ग्रुप के सभी सहपाठी साथ होते हैं।
निकिता कृष्णा महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले में पलछिल गांव की रहने वाली है। मोरेवाडी स्थित उसके घर और स्कूल के बीच चौदह किलो मीटर लंबा घना जंगल पड़ता है। वह रोज अपने गांव से पैदल स्कूल जाती है। घने जंगल में तेंदुए, सांपों आदि रहते हैं लेकिन कृष्णा को उनसे तनिक भी डर नहीं लगता है। निकिता डॉक्टर बनना चाहती है। वह कहती है कि वह पूरे रास्ते अपने सपने के बारे में सोचती है और उसका ध्यान घने जंगल या डर की तरफ नहीं जाता है। उसने अकसर जंगली सुअरों और सांपों का सामना किया है। एक बार स्कूल जाते समय जंगल में एक तेंदुआ भी मिला। वह पहले तो डर गई लेकिन फिर सुरक्षित बच निकली। एक तरफ से यात्रा में उसे दो घंटे लगते हैं। सुबह उसका स्कूल 10 बजकर 45 मिनट पर शुरू होता है। वह अपने घर से सुबह 8 बजकर 45 मिनट पर निकलती है। इतना ही नहीं, शनिवार को उसका स्कूल सुबह आठ बजे का होता है। इसलिए इस दिन उसे सुबह छह बजे घर छोड़ देना पड़ता है।
निकिता जिस इलाके में रहती है, वहां पर अकसर बारी बारिश होती है। ऐसे में उसका स्कूल जाना बहुत कठिन हो जाता है। बारिश होने पर रास्ते में कमर तक पानी भर जाता है। उसे कमर तक पानी में डूबकर सफर करना पड़ता है। जब वह शाम साढ़े चार बजे स्कूल से छूटती है, घर की तरफ लंबे-लंबे कदम बढ़ा देती है। बारिश के मौसम और सर्दियों में जंगल के अंदर जल्दी अंधेरा होने लगता है तो वह जंगल में घुसते ही दौड़ लगाने लगती है। ऐसी कठिन परिस्थिति से जूझती हुई वह साइंस और गणित में अपनी क्लास के सभी छात्रों से ज्यादा नंबर ले आती है। वह अपने स्कूल के शिक्षकों की सबसे पसंदीदा छात्रा है। वह दो बार से तहसील स्तर की ऐथलीट प्रतियोगिता में भी प्रथम आ रही है। निकिता के माता-पिता धान की खेती करते हैं। वह बताती है कि उसके गांव में या आसपास कोई भी स्कूल नहीं है।
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