10 सालों में दृष्टिबाधितों की मदद के लिए 681 एग्जाम्स दे चुकी हैं पुष्पा
एग्जाम देने से हर किसी को डर लगता होगा। अक्सर लोग एग्जाम हॉल में जाने से पहले घबरा जाते हैं। लेकिन हमें खुद पर भरोसा होता है और उस भरोसे की बदौलत हम मुश्किल से मुश्किल परीक्षा को पास कर जाते हैं। लेकिन कभी आपने उनके बारे में सोचा है जिन्हें देखने में दिक्कत होती है और परीक्षा देने के लिए उन्हें किसी दूसरे व्यक्ति का सहारा लेना पड़ता है। बेंगलुरु की पुष्पा ऐसी ही शख्स हैं जो कि दृष्टिबाधितों की परीक्षा देने के लिए हमेशा तत्पर रहती हैं। वे बीते 10 साल से यह काम कर रही हैं और अब तक 681 एग्जाम दे चुकी हैं।
पुष्पा को इस काम के लिए इसी साल राष्ट्रपति के हाथों नारी शक्ति पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। भारत में दृष्टिबाधितों की आबादी लगभग 4 करोड़ है। लेकिन इनमें से सिर्फ कुछ को ही लिखने पढ़ने का मौका मिलता है। पुष्पा कहती हैं, 'मैं सौभाग्यशाली हूं कि मैं सही तरह से देख और बोल सकती हूं, लेकिन इससे मैं उनसे श्रेष्ठ नहीं हो जाती हूं जो ऐसा नहीं कर सकते। दिव्यांग लोग अपने हिसाब से काफी प्रतिभावान होते हैं। मैं बस उनकी मदद करती हूं।'
SSLC और PUC की परीक्षा से लेकर इंजीनियरिंग, लॉ, अंडरग्रैजुएट और पीजी, बैंक तक दृष्टिबाधितों के लिए पुष्पा सारे एग्जाम दे चुकी हैं। सबसे बड़ी बात ये है कि वे इसके लिए किसी भी तरह की फीस नहीं लेती हैं। पुष्पा ने 2007 में इस काम की शुरुआत की थी जब उन्होंने 19 साल की एक दृष्टिबाधित छात्रा के लिए एग्जाम दिया था। वे बताती हैं, 'एक दोस्त के जरिए मैं हेमा का एग्जाम देने गई थी। क्योंकि आखिरी मौके तक किसी स्क्राबर का इंतजाम नहीं हो पाया था।'
पुष्पा बताती हैं, 'ऐसा पहली बार हो रहा था जब मैं किसी दृष्टिबाधित का एग्जाम दे रही थी। एग्जाम देते वक्त मुझे समझने में काफी दिक्कत हुई। मुझे कम समझ में आ रहा था। लेकिन एग्जाम के बाद मैंने इस बारे में काफी कुछ पढ़ा और जानने की कोशिश की कि कैसे दृष्टिबाधित बोलते और पढ़ते हैं।' इसके बाद पुष्पा ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। अब तक वे जिन दृष्टिबाधितों के लिए परीक्षा दे चुकी हैं उनमें से अधिकतर ने अच्छे नंबर हासिल किए और कुछ तो नौकरी भी कर रहे हैं।
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