आज ही के दिन लगा था ब्रिस्टल से एडिनबर्ग के बीच पहला पब्लिक STD कॉल
आज एसटीडी (STD) का बर्थडे है. STD यानी सब्सक्राइबर ट्रंक डायलिंग (Subscriber trunk dialling).
ये सूचना क्रांति का दौर है. अब तो पटना से बैठकर कैलिफोर्निया फोन लगाना भी चुटकियों का खेल हो गया है. अब सिर्फ आवाज सुनकर संतोष करने की मजबूरी नहीं, शकल देखकर भी बातें की जा सकती हैं. बिना अलग से एक रुपया खर्च किए यहां से लंदन व्हॉट्स एप कॉल लगाई जा सकती है.
मोबाइल के युग में पैदा हुई जनरेशन कल्पना भी नहीं कर सकती कि जो फोन कॉल उनके लिए चुटकियों का खेल है, वो कभी कितनी बड़ी मश्क्कत हुआ करता था और फोन का लग जाना कितनी बड़ी उपलब्धि होती थी.
अब तो डेटा तकरीबन मुफ्त ही है. हर गली-मुहल्ले में मोबाइल और सिम कार्ड की दुकानें खुल गई हैं. वैसे ही जैसे कभी PCO बूथ (पब्लिक कॉल ऑफिस) हुआ करते थे. अब फटाफट अपनी बात कहकर और हालचाल पूछकर बिल बढ़ने के डर से फोन रख देने की मजबूरी नहीं. आप घंटों फोन से चिपके हुए दुनिया-जहान की गप्पें मार सकते हैं. प्रेमी-प्रेमिका चाहें तो सिर्फ एक-दूसरे की सांसों की आवाज सुनकर घंटों निकाल सकते हैं. लेकिन ये सब एक जमाने में लक्जरी हुआ करता था और यह सुख सिर्फ चंद कुलीन अमीरों को ही हासिल था.
एक जादुई आविष्कार
आज एसटीडी (STD) का बर्थडे है. STD यानी सब्सक्राइबर ट्रंक डायलिंग (Subscriber trunk dialling). यानी कहीं एक शहर में बैठकर दूसरे शहर में लैंडलाइन पर फोन लगाकर बात करना.
उस जमाने के लोगों के लिए ये किसी जादुई आविष्कार से कम नहीं था. बस पलक-झपकते कहीं बहुत दूर बैठे इंसान की आवाज फोन पर सुनी जा सकती थी. हालांकि उस पलक झपकने का अर्थ आज की तरह सचमुच पलक झपक नहीं होता था. उसका अर्थ पहले ऑपरेटर को बताना, फिर अपना नंबर कनेक्ट होने का इंतजार करना और इस पूरी प्रक्रिया में कभी-कभी एक-दो घंटे भी लग सकते थे. फिर भी ये जादू था.
पहला पब्लिक STD कॉल
आज से 67 साल पहले 1955 में पहली बार यूके में क्वीन एलिजाबेथ ने ब्रिस्टल में बैठकर एडिनबर्ग फोन लगाया. यह फोन उन्होंने पहली बार सार्वजनिक रूप से लगाया था और यह STD को पब्लिक के लिए खोलने की शुरुआत थी. यह सेवा इसके पहले सिर्फ चंद कुलीन राजघरानों और स्टेट सर्विसेज के चंद अधिकारियों के पास ही थी. यहां से STD के सार्वजनिक जीवन में जाने की शुरुआत हुई. हालांकि खुद क्वीन के लिए यह किसी जादुई आविष्कार से कम नहीं था.
धीरे-धीरे यह सर्विस इंटरनेशनल भी हो गई. नाम था- इंटरनेशनल सब्सक्राइबर डायलिंग (International Subscriber Dialing).
भारत में STD सर्विस 1960 में आई
भारत में STD सर्विस आई 1960 में और पहला फोन कॉल लगा कानपुर और लखनऊ के बीच. तब भी ये फोन कॉल ऑपरेटर के जरिए ही लगाए जाते थे. उसके बाद STD सर्विस को जन-जन तक पहुंचाने की प्रक्रिया शुरू हुई. हर शहर को एक STD कोड अलॉट किया गया. जैसे दिल्ली का STD कोड था 011 और मुंबई का 022.
इसी तरह हर छोटे-बड़े शहर का एक फिक्स्ड STD कोड था, जिसे लैंडलाइन नंबर डायल करने से पहले डायल करना होता था. बाद में मोबाइल आने पर उसका दस अंकों का नंबर भी इसी तरह शहर के एक फिक्स्ड कोड के हिसाब से तय किया गया. मोबाइल नंबर के साथ एक कंट्री कोड भी जोड़ा जाने लगा, जिसका इस्तेमाल इंटरनेशनल डायलिंग के लिए किया जाता है. जैसे भारत का कोड 91 है.
नब्बे के दशक तक आते- आते हर शहर के हर गली-मुहल्ले में STD टेलीफोन बूथ का बूम आया था, जिसमें फोन लगाने के बाद सामने स्क्रीन पर टिक-टिक होता रहता, जो बताता कि आपके इतने पैसे हो गए हैं. फोन पर बात करते हुए भी निगाहें उस स्क्रीन पर ही टिकी रहतीं. तब दो मिनट बात करने के 20-30 रुपए लग जाते थे.
बेल सिस्टम ने खोजी थी STD डायलिंग की तकनीक
1940 के दशक में, संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा में बेल सिस्टम ने एक ऐसी तकनीक को विकसित किया, जिसके जरिए सुदूर शहरों में फोन लगाना संभव हो गया. बेल सिस्टम ने इसे “डायरेक्ट डिस्टेंस डायलिंग” नाम दिया. पहली बार इसे 1951 में लागू किया गया, जिसने टेलीफोन सब्सक्राइबर को ऑपरेटर को कॉल किए बिना लंबी दूरी के टेलीफोन कॉल करने में सक्षम बनाया.
“सब्सक्राइबर ट्रंक डायलिंग” शब्द का इस्तेमाल यूनीवर्सल नहीं है. यह शब्द सिर्फ यूनाइटेड किंगडम, आयरलैंड, ऑस्ट्रेलिया, भारत और दक्षिण पूर्व एशिया में ही किया जाता है.
Edited by Manisha Pandey