महिला लोको पायलट्स की मांग पर भारतीय रेलवे ट्रेनों के इंजन में बनवाएगी टॉयलेट
पिछले महीने रेलवे ने ट्रेन ड्राइवर्स के बीच एक आंतरिक सर्वे करवाया. इस सर्वे में सभी ने एकमत से ट्रेन के इंजन में टॉयलेट बनवाए जाने का समर्थन किया.
तकरीबन साढ़े बारह लाख किलोमीटर के रेलवे ट्रैक पर दौड़ने वाली भारतीय रेलवे की 12 हजार से ज्यादा ट्रेनों में एक हजार महिला लोको पायलट (ट्रेन ड्राइवर) हैं. लेकिन इन 12 हजार ट्रेनों में एक भी सरकारी ट्रेन ऐसी नहीं, जिसमें इंजन के भीतर टॉयलट हो. 1988 पहली बार एक महिला सुरेखा यादव को लोको पायलट बनाया गया.
सुरेखा यादव ने एक बार एक इंटरव्यू में अपने उस अनुभव को बयान किया था, जिसमें लंबी दूरी की ट्रेनों में टॉयलेट न होने की वजह से उन्हें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता था. पिछले 34 सालों में महिला ट्रेन ड्राइवर्स की संख्या काफी बढ़ चुकी है, लेकिन ट्रेन के इंजन रूम में टॉयलट बनाने का फैसला लेने में सरकार को 34 साल लग गए.
ताजा खबर के मुताबिक भारतीय रेलवे ने फैसला किया है कि अब सभी ट्रेनों की इंजन यूनिट में टॉयलेट बनाया जाएगा. यह फैसला तकरीबन दस हजार से ज्यादा ट्रेन ड्राइवरों की मांग पर लिया गया है. पिछले महीने रेलवे ने ट्रेन ड्राइवर्स के बीच एक आंतरिक सर्वे करवाया. इस सर्वे में सभी लोगों ने एकमत से ट्रेन की इंजन यूनिट में टॉयलेट बनवाए जाने के समर्थन में वोट दिया. तकरीबन सभी ड्राइवर्स का ये कहना था कि टॉयलेट न होने की वजह से उन्हें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. कई बार इमर्जेंसी में उन्हें इंजन छोड़कर जाना पड़ता है.
दरअसल रेलवे द्वारा यह सर्वे कराए जाने की वजह मुख्य रूप से महिला ट्रेन ड्राइवर्स ही हैं. पिछले काफी समय से महिलाएं इंजन यूनिट में टॉयलेट की मांग कर रही थीं. उनका कहना था कि टॉयलेट न होने की वजह से उन्हें काफी परेशानी होती है. इतना ही नहीं, इसका नकारात्मक असर उनकी सेहत पर भी पड़ रहा है. टॉयलेट न होने की वजह से महिलाएं ट्रेन चलाने की बजाय डेस्क की ड्यूटी करना चाहती हैं.
महिलाओं की मांग पर रेलवे ने सभी जोन्स में पिछले महीने एक सर्वे करवाया, जिसमें 10,191 ट्रेन ड्राइवरों ने हिस्सा लिया. इस सर्वे में 382 महिला लोको पायलट भी शामिल थीं.
हालांकि साल 2016 में ही राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भारतीय रेलवे को सभी ट्रेनों की इंजन यूनिट में टॉयलेट और एसी लगवाने का आदेश दिया था, जिस पर रेलवे ने सहमति भी जताई थी. लेकिन उसके बाद सिर्फ 97 ट्रेनों में यह सुविधा दी गई. बाकी की हालत पहले जैसी ही बनी रही.
ऑल इंडिया लोको रनिंग स्टाफ एसोसिएशन की महिला सदस्यों का कहना है कि वह डेस्क जॉब करना चाहती हैं और लोको पायलट की ड्यूटी को जहां तक हो सके, अवॉइड करने की कोशिश करती हैं, खासतौर पर सर्दी के मौसम में और लंबी दूरी की ट्रेनों में. इंजन यूनिट में टॉयलेट न होने की वजह से उन्हें ट्रेन के अगले स्टेशन पर रुकने तक का इंतजार करना पड़ता है, ताकि वह किसी नजदीकी कोच में जाकर वहां टॉयलेट का इस्तेमाल कर सकें.
Edited by Manisha Pandey