राजकपूर जन्‍मदिन विशेष – बचपन में ट्रेन ड्राइवर बनना चाहते थे राज कपूर

हिंदी सिनेमा को बॉबी, मेरा नाम जोकर और आवारा जैसी कल्‍ट फिल्‍मों की सौगात देने वाले राज कपूर की याद में.

राजकपूर जन्‍मदिन विशेष – बचपन में ट्रेन ड्राइवर बनना चाहते थे राज कपूर

Wednesday December 14, 2022,

7 min Read

“अपने पर हंसकर जग को हंसाया

बनके तमाशा मेले में आया

हिंदू न मुस्लिम पूरब न पश्चिम

मजहब है अपना हंसना हंसाना”

कई दशक पहले एक बार बीबीसी को दिए एक इंटरव्‍यू में अपने जवाब की शुरुआत राज कपूर इन पंक्तियों से करते हैं और फिर कहते हैं, “मैं अगर किसी को थोड़ी सी खुशी बांटता हूं तो समझता हूं कि एक कलाकार के नाते मैंने अपना ऋण चुका दिया.”

आज हिंदी सिनेमा के महान शोमैन राज कपूर का जन्‍मदिन है. हिंदी सिनेमा को बॉबी, मेरा नाम जोकर और आवारा जैसी कल्‍ट फिल्‍मों की सौगात देने वाले राज कपूर. हिंदी सिनेमा के पहले इंटरनेशनल स्‍टार राज कपूर, जिनकी फिल्‍में ईरान, रूस और चीन तक के सिनेमा हॉल में रिलीज होती थीं. ‘आवारा’ ईरान में रिलीज होने वाली पहली भारतीय फिल्‍म थी. कहते हैं कि ईरान के एक सिनेमा हॉल में यह फिलम एक साल तक लगी रही.

 

कहते हैं, जब भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू रूस गए तो सरकारी भोज के दौरान वहां के विदेश मंत्री निकोलाई बोल्‍गेनिन‍ ने अपने मंत्रियों के साथ खड़े होकर राज कपूर का एक गाना गाया. गीत के बोल थे-

“आवारा हूं,

या गर्दिश में हूं आसमान का तारा हूं

आवारा हूं.”

नेहरू आश्‍चर्य और खुशी से अवाक् रह गए. हिंदुस्‍तान लौटकर ये किस्‍सा उन्‍होंने खुद राज कपूर से को सुनाया.

फिल्‍म ‘आवारा’ चीनी क्रांति के जनक माओत्‍से तुंग की भी पसंदीदा फिल्‍म थी. राज कपूर की बेटी रितु नंदा ने एक इंटरव्‍यू में कहा था कि एक बार जब हम चीन गए थे तो मुझे और रणधीर को देखकर चीनी लोग ‘आवारा हूं’ गाना गाने लगे. वो नहीं जानते थे कि हम कौन हैं. बस उन्‍होंने किसी हिंदुस्‍तानी को देखा और गीत गाने लगे.   

राज कपूर का शुरुआती सफर

राज कपूर के जन्म का नाम सृष्टि नाथ कपूर था. ब्रिटिश भारत के पेशावर के क़िस्सा ख्वानी बाज़ार में उनके दादा की बड़ी हवेली हुआ करती थी. नाम था कपूर हवेली. उसी घर में पृथ्वीराज कपूर और रामसरनी देवी कपूर की पहली संतान राज कपूर का जन्‍म 14 दिसंबर, 1924 को हुआ.

बाद में परिवार पेशावर छोड़ पहले कलकत्‍ता और फिर बंबई जा पहुंचा. अनिल कपूर का परिवार भी राज कपूर के परिवार से इस तरह जुड़ा है कि अनिल और बोनी कपूर के पिता सुरिंदर कपूर पृथ्‍वीराज कपूर के चचेरे भाई थे. बॉलीवुड के पुराने फिल्‍मी परिवारों का इतिहास खंगालें तो पाएंगे कि आधी इंडस्‍ट्री की जड़ें कहीं न कहीं कपूर परिवार से जुड़ी हुई हैं.

राज कपूर की शुरुआती शिक्षा कलकत्‍ता के कर्नल ब्राउन कैम्ब्रिज स्कूल, सेंट जेवियर्स स्कूल और फिर बॉम्बे के कैंपियन स्कूल से हुई.

raj kapoor the great indian actor, film director and producer of hindi cinema

बड़े होकर ट्रेन ड्राइवर बनना चाहते थे राज कपूर

बचपन में राज कपूर ट्रेन ड्राइवर बनना चाहते थे. बचपन में उन्‍होंने कई बार परिवार के साथ ट्रेन से बंबई से कलकत्‍ते और पेशावर की यात्रा की थी. तब फ्रंटियर मेल, तूफान मेल जैसी भारी-भरकम नामों वाली गाडि़यां होती थीं, जिसमें अंग्रेज ड्राइवर थे. राज कपूर बताते हैं कि जैसे ही ट्रेन प्‍लेटफॉर्म पर रुकती, वे दौड़कर इंजन के पास जाकर देखते कि अंदर कौन है. कई बार ड्राइवर बच्‍चे को उठाकर अपने साथ इंजन में बिठा लेता. इस तरह कई स्‍टेशन तो वो ड्राइवर के साथ इंजन में बैठकर ही सफर करते.

जब बारिश में भीगते हुए ट्राम से जाना पड़ा स्‍कूल 

अपने बच्‍चों की परवरिश को लेकर पृथ्‍वीराज कपूर का रवैया बिलकुल साफ था. वे नहीं चाहते थे कि पिता का पैसा, रुतबा और हैसियत बच्‍चों का दिमाग खराब कर दे. उनके पांव जमीन पर रहने जरूरी थे. उनके बचपन का एक किस्‍सा है. राज कपूर ट्राम से स्‍कूल जाया करते थे. एक दिन बहुत बारिश हो रही थी तो उन्‍होंने चुपके से अपनी मां से कहा कि आज उन्‍हें कार से स्‍कूल छोड़ दिया जाए. मां ने जाकर पति से गुजारिश की. पृथ्‍वीराज बैठे अखबार पढ़ रहे थे. उन्‍होंने अखबार से सिर उठाए बगैर कहा, “कोई जरूरत नहीं है. बारिश में गल नहीं जाएगा. थोड़ा भीगेगा, सीखेगा. यही जीवन है. उसे बोलो, ट्राम से ही जाना होगा स्‍कूल.” 

जब तक मां बेटे को ये खबर सुनाने आतीं, राज कपूर, जो दरवाजे के पीछे से छिपकर सारी बात सुन रहे थे, अपना बस्‍ता उठाकर चुपचाप स्‍कूल के लिए निकल गए. 

राज कपूर के फिल्‍मी सफर की शुरुआत

ये 1935 की बात है राज कपूर की उम्र तब कुछ 11 बरस रही होगी, जब उन्‍होंने फ़िल्म 'इंकलाब' में अभिनय किया था. 15 साल की उम्र में वे पिता के साथ काम करने लगे थे. राज कपूर एक इंटरव्‍यू में कहते हैं, “पिताजी ने एक रुपया महीना सैलरी पर काम पर रख लिया और मेरा काम था स्‍टूडियो में झाडू लगाना.” जब फिल्‍मों में काम करने की बात आई तो राज कपूर की शुरुआत बतौर एक्‍टर-डायरेक्‍टर नहीं, बल्कि चौथे असिस्‍टेंट के रूप में हुई. वे बॉम्बे टॉकीज स्‍टूडियो में सहायक बन गए. बाद में केदार शर्मा के साथ क्लैपर बॉय का काम करने लगे.

पृथ्‍वीराज कपूर ने राज कपूर से काफी रगड़कर काम करवाया था, हालांकि उन्‍हें अपने बेटे की काबिलियत पर भी पूरा यकीन था. राज कपूर के निजी सहायक वीरेन्द्रनाथ त्रिपाठी ने लिखा है कि पृथ्वीराज हमेशा कहते थे कि राज पढ़ेगा-लिखेगा नहीं, पर फिल्मों में बेहतरीन काम करेगा. आज केदार ने जरूर उसे मेरा बेटा होने के कारण काम दिया है, लेकिन एक दिन वह भी आएगा, जब लोग राज को पृथ्वीराज का बेटे के रूप में नहीं, पृथ्वीराज को राज कपूर का बाप होने के कारण जानेंगे. 

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और ऐसा ही हुआ भी. जब राज कपूर सफल निर्देशक बन गए तो उन्‍होंने एक बार अपने पिता को एक ब्‍लैंक चेक दिया. पिता बहुत सालों से अपनी पुरानी फिएट गाड़ी से ही चला करते थे. राज कपूर ने पिता को ब्‍लैंक चेक देकर कहा कि आप अपनी पसंद की नई कार ले लें. पृथ्‍वीराज कपूर बहुत दिनों से उस ब्‍लैंक चेक को अपने सीने से लगाए दोस्‍तों को दिखाते रहे, लेकिन उसे भुनाया नहीं.

जब जमीन पर सोने के लिए लंदन के होटल में भरा जुर्माना

राज कपूर की आदत थी कि वे कभी बिस्‍तर पर नहीं सोते थे. हमेशा जमीन पर गद्दा बिछाकर जमीन पर ही सोते थे. मधु त्रेहन ने ये किस्‍सा अपनी किताब में लिखा है. एक बार की बात है. राज कपूर लंदन के हिल्‍टन होटल में रुके हुए थे. वहां उन्‍हें बिस्‍तर पर नींद नहीं आ रही थी. सो उन्‍होंने गद्दा बेड से उठाया और नीचे जमीन पर बिछाकर उस पर सो गए.

होटल वालों ने इस पर आपित्‍त दर्ज की और कहा कि आप ऐसा नहीं कर सकते. लेकिन अगले दिन फिर उन्‍होंने गद्दा जमीन पर ही बिछाया. इस बार होटल ने उन पर जुर्माना लगा दिया. राज कपूर पांच दिन उस होटल में रुके और पांचों दिन जुर्माना भरा, लेकिन सोए जमीन पर ही.  

जब इस्‍मत के पति शाहिद ने किया नरगिस से अपनी मुहब्‍बत का इजहार

ये किस्‍सा राज कपूर ने खुद एक इंटरव्‍यू में सुनाया था. निजी जिंदगी में हुए बहुत सारे वाकयों को राज कपूर ने कई बार फिल्‍मों में हू-ब-हू उतार दिया था. संगम फिल्‍म का वह चिट्ठी वाला दृश्‍य भी उनकी निजी जिंदगी से ही प्रेरित था.

तो हुआ यूं था कि इस्‍मत चुगताई के पति और फिल्‍मों के जाने-माने निर्माता निर्देशक शाहिद लतीफ ने नरगिस को एक खत लिखकर प्रपोज किया था. उसी समय राज कपूर नरगिस क घर पहुंचे. उन दोनों को कहीं बाहर जाना था. जब वे नरगिस के घर पहुंचे तो देखा कि वो घबराई सी खड़ी हैं. उनके हाथ में एक कागज था. जब उन्‍होंने पूछा कि ये क्‍या है तो वो ये कहकर टाल गईं कि कुछ नहीं हुआ. फिर नरगिस ने वो कागज फाड़कर फेंक दिया.

कार में बैठने के बाद राज कपूर ने कहा कि मैं अपना रूमाल घर में ही भूल गया. वे वापस गए. नौकरानी तब तक झाडू लगाकर कागज के टुकड़ों को डस्‍टबिन में डाल चुकी थी. राज कपूर ने वो कागज के टुकड़े बीने और अगले दिन बड़े जनत से उन टुकड़ों को जोड़कर देखा कि इसमें क्‍या था. वो शाहिद की चिट्ठी थी, जिसमें उन्‍होंने नरगिस से अपने प्रेम का इजहार किया था. 

राज कपूर ने हूबहू इस दृश्‍य को संगम फिल्‍म में फिल्‍माया.

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