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क्या भारत में भी आ रही है आर्थिक मंदी? अमेरिका में इसका दस्तक देना लगभग तय है!

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने साफ कहा है कि भारत में मंदी आने का कोई सवाल ही नहीं. वहीं अर्थशास्त्रियों ने कहा है कि अमेरिका में मंदी का आना तय है.

क्या भारत में भी आ रही है आर्थिक मंदी? अमेरिका में इसका दस्तक देना लगभग तय है!

Tuesday August 02, 2022 , 5 min Read

मंदी वो भूत है, जिसके आने की आहट भर से दुनिया सहम जाती है. कई रिपोर्ट और सर्वे यह कह भी रहे हैं कि दुनिया में आर्थिक मंदी आ सकती है. पिछले दिनों में तेजी से बढ़ी महंगाई, यूक्रेन पर रूस का हमला, कच्चे तेल की कीमतें और खाने-पीने की चीजें महंगी होने के चलते इस बात के अनुमान लग रहे हैं कि मंदी एक बार फिर दस्तक दे सकती है. सवाल ये है कि क्या भारत भी मंदी की चपेट में आ जाएगा? हर किसी को चिंता में डाल देने वाला महंगाई का मुद्दा लोकसभा में भी पहुंचा. इस पर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने साफ कहा है कि भारत में मंदी आने का कोई सवाल ही नहीं.

जानिए कैसे भारत बचा रहेगा मंदी से

निर्मला सीतारमण ने कहा है कि महंगाई पर अंकुश लगाने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक समय-समय पर कदम उठा रहा है. बता दें कि पिछले कुछ महीनों में रिजर्व बैंक ने रेपो दर में 90 बेसिस प्वाइंट यानी 0.90 फीसदी की बढ़ोतरी कर दी है और अब यह दर 4.90 फीसदी हो गई है. उन्होंने बांग्लादेश या पाकिस्तान के बजाय भारत की तुलना अमेरिका से करने की बात कही. उन्होंने कहा कि बुरे हालात में भी पिछले 2 सालों में भारत को विश्व बैंक, आईएमएफ और दूसरी वैश्विक संस्थाओं ने मजबूत रैंकिंग दी है. वित्त मंत्री ने बताया कि अमेरिका की जीडीपी में दूसरी तिमाही में 0.90 फीसदी और पहली तिमाही में 1.6 फीसदी की गिरावट आई, जिसे उन्होंने औपचारिक मंदी का नाम दिया है.

ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट भी कहती है भारत में नहीं आएगी मंदी

वित्त मंत्री ने ब्लूमबर्ग के सर्वे का भी जिक्र किया, जिसमें भारत में मंदी की संभावना को शून्य कहा गया है. ब्लूमबर्ग ने कुछ अर्थशास्त्रियों के बीच एक सर्वे किया, जिसमें यह बात सामने आई. सर्वे के मुताबिक सबसे बुरे आर्थिक संकट से गुजर रहे श्रीलंका के लिए अगला साल और भी खराब साबित हो सकता है. अगले साल श्रीलंका के मंदी की चेपट में आने की संभावना 85 फीसदी है. यह आंकड़ा न्यूजीलैंड के लिए 33 फीसदी, ताइवान के लिए 20 फीसदी, ऑस्ट्रेलिया के लिए 20 फीसदी और फिलीपींस के लिए 8 फीसदी है. इसके अलावा चीन के मंदी की चपेट में आने की संभावना 20 फीसदी है. दक्षिण कोरिया और जापान के लिए यह आंकड़ा करीब 25 फीसदी है. एशिया में मंदी की संभावना 20-25 फीसदी है. अमेरिका के मंदी के चपेट में आने की संभावना 40 फीसदी है, जबकि यूरोप के सामने 50-55 फीसदी जोखिम है.

भारत पर क्यों नहीं होगा मंदी का असर

मंदी का असर भारत पर नहीं होगा या अगर होगा भी तो बहुत ही मामूली. ऐसा इसलिए क्योंकि मंदी की वजह से भारत के निर्यात पर असर होगा. भारत में लोगों को खाने-पीने की चीजें आयात करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि अधिकतर चीजें तो भारत में ही उगाई जाती हैं. वहीं दूसरी ओर भारत की बड़ी आबादी एक मजबूत मार्केट की तरह काम करेगी, जो अर्थव्यवस्था के पहिए को रुकने नहीं देगी. यही वजह है कि हर मंदी से भारत आराम से बाहर निकल जाता है, क्योंकि जरूरी चीजों के लिए हम आयात पर निर्भर नहीं हैं.

ये आंकड़े भी दिखाते हैं कि भारत बेहतर हालत में है

चीन के करीब 4 हजार बैंक दिवालिया होने की कगार पर हैं, जबकि भारत में एनपीए कम हो रहे हैं. सकल एनपीए पिछले करीब 6 साल में सबसे निचले स्तर 5.9 फीसदी पर है. सरकार पर कर्ज जीडीपी का सिर्फ 56.9 फीसदी है. बता दें कि श्रीलंका में यह आंकड़ा 115 फीसदी से भी अधिक हो गया था, जिसके चलते वहां की सरकार कर्ज में डिफॉल्ट कर गई और देश में हालात बद से बदतर होते चले गए.

अमेरिका में मंदी का आना तय है!

भले ही भारत में मंदी आने की बात को निर्मला सीतारमण से सिरे से खारिज कर दिया है, लेकिन अमेरिका में मंदी आना तय है. फाइनेंशियल टाइम्स और यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो बूथ के ज्वाइंट सर्वे से इस बात का खुलासा हुआ है. सर्वे में 10 अर्थशास्त्रियों से बात की गई, जिनमें से 7 ने कहा कि अमेरिका में इस साल नहीं तो अगले साल मंदी का आना तय है.

मंदी का मतलब है आर्थिक गतिविधियों में कमी आ जाना. इसका नतीजे ये होता है कि सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी में निगेटिव ग्रोथ रेट देखने को मिलती है.

मंदी का भूत से क्यों डरते हैं लोग?

यूं ही लोग मंदी से नहीं डरते... जब मंदी आती है तो कई ऐसी चीजें होती हैं, जिसका असर हर किसी पर पड़ता है. निवेश का माहौल बिगड़ जाता है. इससे लोगों का खर्च करने का पैटर्न भी बदल जाता है. खाने-पीने या इस्तेमाल की कई चीजों पर लोग अंकुश लगा देते हैं, जिससे मांग बहुत ज्यादा घट जाती है और कई बार तो कुछ कंपनियां बंद होने की कगार तक पहुंच जाती हैं. कंपनियां बंद होने या मांग घटने की वजह से नौकरियों पर संकट पैदा हो जाता है. छंटनी का दौर चल पड़ता है, जिससे बहुत सारे लोगों की आजीवीका पर बुरा असर पड़ता है. जो बड़े बिजनस होते हैं, उन पर मंदी का ये असर होता है कि वह भारी नुकसान झेलते हैं और कई बार तो वह कर्ज चुकाने में डिफॉल्ट तक कर जाते हैं. मंदी के दौर में किसी कंपनी या किसी व्यक्ति के दिवालिया होने की खबरें भी आने लगती हैं.