जेल में लिखी कविताओं से कैदी को मिली मौत की सजा से 'राहत'
कविताएं किसी की जान भी बचा सकती हैं! सोचने में थोड़ा अजीब लग रहा होगा, लेकिन यह सच है। गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए दोषी की फांसी की सजा को उम्र कैद में बदल दिया। दरअसल जेल में रहते हुए दोषी ज्ञानेश्वर सुरेश बोरकर ने कविताएं लिखीं थीं जिनसे प्रभावित होकर कोर्ट ने कहा कि दोषी को अब अपने किए पर पश्चाताप है और उसके व्यवहार से लगता है कि वह समाज के लिए अहितकर नहीं है, इसलिए उसकी सजा को उम्रकैद में परिवर्तित कर दिया जाए।
सुप्रीम कोर्ट के न्यायधीश एके सीकरी, जस्टिस एस. अब्दुल नजीर और न्यायधीश एमआर शाह की बेंच ने यह फैसला सुनाया। सुरेश बोरकर को नाबालिग का अपहरण करने और फिरौती मांगकर हत्या करने के जुर्म में पुणे की एक फास्ट ट्रैक कोर्ट ने दोषी करार दिया था। उसे आईपीसी की धारा 302 हत्या, और धारा 201 सबूत नष्ट करने के आरोप में सजा सुनाई गई थी। इसके बाद वह फांसी की सजा के खिलाफ याचिका लेकर बॉम्बे हाई कोर्ट गया जहां कोर्ट ने उसकी सजा बरकरार रखी।
इसके बाद लंबे समय से उसका मामला सुप्रीम कोर्ट में चल रहा था, जहां सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि उसकी सजा जरूर क्रूर है, लेकिन हमारी राय में उसे फांसी की सजा देना उचित नहीं है। कोर्ट ने कहा कि अपनी सजा की माफी के लिए वह राज्य सरकार से भी अपील कर सकता है। हालांकि अब यह सरकार के ऊपर है कि वह सुरेश की सजा पर क्या विचार करती है।
कोर्ट ने कहा कि सुरेश बोरकर की कविताओं को देखकर लगता है कि उसे अपनी गलती का अहसास है और वह कविताएं लिखकर अपने किए का पश्चाताप कर रहा है। इसलिए वह अब सुधरने की राह पर है। कोर्ट ने कहा कि उसके रवैये को देखकर नहीं लगता कि वह अब फिर से ऐसा कोई कार्य करेगा। आपको बता दें कि सुरेश ने 22 साल की उम्र में एक नाबालिग का अपहरण करके उसकी हत्या कर दी थी। इस जुर्म में वह सजा काट रहा है और बीते 18 सालों से जेल में है।
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