“दुनिया बढ़ रही है मंदी की ओर” - रॉयटर्स के सर्वे में अर्थशास्त्रियों का आंकलन
रॉयटर्स सर्वे में शामिल 279 अर्थशास्त्रियों ने विकास दर में कटौती का अनुमान किया है.
पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था पर मंदी के बादल मंडरा रहे हैं. न्यूज एजेंसी रॉयटर्स ने इस संबंध में दुनिया भर के अर्थशास्त्रियों के बीच एक सर्वे किया, जिसके नतीजे बहुत उत्साहजनक नहीं है. सर्वे में शामिल तकरीबन सभी अर्थशास्त्रियों ने यह चिंता जताई है कि दुनिया की इकोनॉमी मंदी की ओर बढ़ रही है. इकोनॉमिस्टों ने दुनिया की सभी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के विकास दर में कटौती का अनुमान किया है.
दो साल तक पूरी दुनिया में फैले कोविड पैनडेमिक का असर अब इतने समय के बाद दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं पर दिखना शुरू हो गया है. जिन देशों की इकोनॉमी पहले से सुस्त रफ्तार से आगे बढ़ रही थी, अर्थशास्त्रियों का अनुमान है कि आने वाले समय में उसमें और सुस्ती आएगी.
हालांकि सर्वे में शामिल अर्थशास्त्रियों का यह भी कहना है कि 2008 में आई पिछली मंदी के मुकाबले इस बार बेरोजगारी की दर कम रहेगी. इस मंदी में गुजरे चार दशकों के मुकाबले मंदी और बेरोजगारी के बीच का अंतर सबसे कम रहने की उम्मीद की जा रही है.
रॉयटर्स के इस सर्वे में शामिल अर्थशास्त्रियों ने यह अनुमान जताया है कि इस बार मंदी की अवधि बहुत लंबी नहीं रहेगी. लेकिन ग्लोबलाइज्ड इकोनॉमी होने के नाते मंदी का असर उन देशों तक भी छनकर पहुंचेगा, जो सीधे मंदी की चपेट में नहीं हैं. इस दौरान महंगाई तेजी के साथ बढ़ेगी और मंदी समाप्त होने के बाद भी उसका असर आम लोगों की जिंदगी पर लंबे समय तक रहेगा. बैंक जिस तरह मंदी से निपटने के लिए लगातार ब्याज दरों में बढ़ोतरी कर रहे हैं, उसका असर लोगों की पर्सनल इकोनॉमी पर लंबे समय तक रहने वाला है.
सर्वे में ड्यूश बैंक के एनालिस्ट का कहना है कि गुजरे 18 महीनों में महंगाई के संबंध में सारे अनुमान आमतौर पर गलत साबित हो रहे हैं. इस बीच वैश्विक इक्विटी और बॉन्ड बाजार बुरी तरह अव्यवस्थित हो गया है, जबकि अमेरिकी डॉलर टॉप पर चढ़कर बैठ गया है. विदेशी मुद्रा बाजार में डॉलर की कीमत बढ़ती जा रही है.
रॉयटर्स के इस सर्वे में 257 अर्थशास्त्रियों ने हिस्सा लिया. इस सर्वे में जो बातें निकलकर आई हैं, वह बिंदुवार इस प्रकार हैं-
1- सर्वे में शामिल 257 में से 179 अर्थशास्त्रियों का आंकलन है कि इस मंदी में बेरोजगारी की दर पिछले 40 सालों में सबसे कम होगी. यह मंदी वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए विनाशकारी साबित नहीं होगी.
2- रॉयटर्स पोल में शामिल 70 फीसदी अर्थशास्त्रियों का कहना है कि पहली दुनिया के देशों में मंदी का सबसे ज्यादा असर देखने को मिलेगा. कॉस्ट ऑफ लिविंग में इजाफा होगा.
3- इंडियन इकोनॉमी पर भी मंदी का असर दिखाई देगा और हमारी विकास दर घटकर इस वित्त वर्ष में 6.9 फीसदी और आगामी वित्त वर्ष में 6.1 फीसदी हो सकती है.
4- तीसरी दुनिया के देशों पर इस मंदी का असर तो पड़ेगा, लेकिन यह उनकी अर्थव्यवस्था को हिला देने वाला प्रभाव नहीं होगा.
5- वैश्विक विकास दर के 2.9 फीसदी से कम होकर 2.3 फीसदी पर सिमट जाने की संभावना है. 2024 तक आते-आते इसमें सुधार शुरू होगा और मंदी से दुनिया उबरना शुरू होगी.
6- अमेरिका आगामी 2 नवंबर को चौथी बार इंटरेस्ट रेट में 75 बेसिस प्वाइंट की बढ़ोतरी कर सकता है. अर्थशास्त्रियों ने इसे सही कदम बताया है. उनका कहना है कि इस बढ़ोतरी को तब तक नहीं रोका जाना चाहिए, जब तक मौजूदा महंगाई आधे से कम नहीं हो जाए.
Edited by Manisha Pandey