ईको-फ्रेंडली और केमिकल मुक्त सेनेटरी पैड बना रही है कोयम्बटूर की यह 18 वर्षीय लड़की, एक पैड को 12 बार किया जा सकता है इस्तेमाल
इस इको-फ्रेंडली विकल्प को बनाने का संकल्प ईशाना ने 12वीं कक्षा पूरी करने के बाद फैशन डिजाइनिंग के एक कोर्स के लिए चुना। उन्होंने अपना एक बुटीक खोला, जहां उन्हें अपने निजी इस्तेमाल के लिए क्लॉथ सैनिटरी नैपकिन बनाने का आइडिया आया। इन पैड्स को एना क्लॉथ पैड्स कहा जाता है।
आज बाजार में उपलब्ध अधिकांश सैनिटरी नैपकिन बहुत सारे केमिकल्स से युक्त हैं और ये प्लास्टिक का उपयोग करके बनाए जाते हैं, जो लंबे समय तक उपयोग के बाद हमारे स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकते हैं। इसके अलावा, प्रत्येक इस्तेमाल के बाद, उन्हें नष्ट किए जाने की आवश्यकता होती है लेकिन कई जगहों पर कोई रीसाइक्लिंग मकैनिज्म नहीं होता है, और अंतत: वे हमारे लैंडफिल में जाकर ही खत्म होते हैं।
जहां सैनिटरी नैपकिन के हानिकारक प्रभावों के बारे में महिलाओं में जागरूकता पैदा करने के प्रयास किए जा रहे हैं, वहीं कोयम्बटूर की यह 18 वर्षीय लड़की पर्यावरण के अनुकूल और पुन: प्रयोज्य सेनेटरी नैपकिन बनाने का तरीका दिखा रही है।
इस इको-फ्रेंडली विकल्प को बनाने का संकल्प ईशाना ने 12वीं कक्षा पूरी करने के बाद फैशन डिजाइनिंग के एक कोर्स के लिए चुना। उन्होंने अपना एक बुटीक खोला, जहां उन्हें अपने निजी इस्तेमाल के लिए क्लॉथ सैनिटरी नैपकिन बनाने का आइडिया आया। इन पैड्स को एना क्लॉथ पैड्स कहा जाता है। ईशान ने इन पैड्स को बनाना इसलिए शुरू किया क्योंकि उन्हें बाज़ार में उपलब्ध सैनिटरी पैड्स का इस्तेमाल करके स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था।
उन्होंने शुरू में अपने दोस्तों को ये पैड दिए, जिन्हें इसी तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था। उनसे सकारात्मक प्रतिक्रियाएँ प्राप्त करने के बाद, ईशाना ने अधिक लोगों को पैड उपलब्ध कराना शुरू कर दिया।
ईशाना 'एना क्लॉथ पैड्स' नामक अपने स्वदेशी ब्रांड के तहत इन पैड्स को मैन्युफैक्चर करती हैं।
लॉजिकल इंडियन को ईशाना ने बताया,
“मैं यह सब भारत के लोगों के लिए कर रही हूं। हर लड़की नियमित रूप से सैनिटरी नैपकिन के कारण समस्याओं का सामना कर रही है, जो प्लास्टिक से बने होते हैं। इनके चलते चकत्ते (rashes) जैसी स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।"
इन रीयूजेबल कॉटन नैपकिन की कीमत 120 रुपये है। इनकी खास बात ये है कि ये पैड पारंपरिक पैड्स की तुलना में केवल 6 दिनों में डीकंपोज हो जाते हैं जबकि पारंपरिक पैड्स को डीकंपोज होने में सालों लगते हैं। इसके अलावा, कोई भी इसका इस्तेमाल कम से कम 12 बार कर सकता है।
ईशाना के अनुसार, पैड को धोने के बाद उन्हें हल्दी पाउडर में रखा जा सकता है और धूप में सुखाना पड़ता है।
वे कहती हैं,
"अगले महीने उनका उपयोग करने से पहले, मैं पैड पर एक गीला कपड़ा रखने और इसे कम से कम दो दिन तक इस्त्री करने की सलाह देती हूं।"
महिलाओं के स्वास्थ्य पर ध्यान केंद्रित करने के अलावा, ईशाना का उद्यम उनके पड़ोस की महिलाओं को भी सशक्त बना रहा है। पैड ईशाना की छोटी वर्कशॉप में निर्मित हैं, जिसमें उनके साथ काम करने वाली लगभग 25 महिलाएं हैं। ईशान उन महिलाओं को कट पीसेस भेजती हैं, जिनके घर में सिलाई मशीन होती है, और फिर वे अपनी सहूलियत के मुताबिक घर बैठे पैड की सिलाई करती हैं।
प्रॉफिट की बात करें तो, न्यूज18 के ममुताबिक ईशान अपने पर्यावरण के अनुकूल सेनेटरी नैपकिन के माध्यम से प्रति माह लगभग 5,000 रुपये कमाती हैं।
वे आगे कहती हैं,
"अब, मैं अधिक से अधिक लोगों को एक सूती कपड़े से सैनिटरी पैड बनाने के बारे में शिक्षित करना चाहती हूं।"
ईशाना से सलेम, हैदराबाद और केरल के व्यापारियों द्वारा उनके क्षेत्रों में पैड के वितरण के लिए संपर्क किया जा रहा है।
अपनी योजनाओं के बारे में बात करते हुए, ईशाना कहती हैं,
"भविष्य में, मैं बुढ़ापे या बीमारी के कारण बिस्तर पर पड़े लोगों के लिए पैड बनाना चाहूंगी और बच्चों के डायपर भी बनाऊंगी।"