मिलें मध्य प्रदेश की लड़कियों की रोल मॉडल मोना कौरव से
"नरसिंहपुर (म.प्र.) की सड़ूमर ग्राम पंचायत से निर्वाचित होकर मोना कौरव देश की सबसे कम उम्र की सरपंच तो जाने कब की बन चुकी हैं, राजस्थान, महाराष्ट्र, चेन्नई, दिल्ली में सम्मानित होने के साथ ही वह अब अपने राज्य की लड़कियों की रोल मॉडल बन चुकी हैं। साबित कर दिया है कि उम्र कामयाबी की मोहताज नहीं होती।"
हाल ही की बात है, नरसिंहपुर (म.प्र.) की सड़ूमर ग्राम पंचायत की सरपंच मोना कौरव जब हेलीकॉप्टर में मुख्यमंत्री कमलनाथ के साथ उड़ान भर रही थीं, कुछ वर्ष पहले तक उन्होंने शायद सपने में भी नहीं सोचा होगा कि अपने इलाके की सूरत बदल देने के एवज में उन्हे कभी इतना सुखद सिला मिलेगा। मोना बताती हैं कि उन्होंने तो मुख्यमंत्री को अपनी ग्राम पंचायत की समस्याओं से रू-ब-रू कराने और उनके समाधान के लिए न्योता था लेकिन ग्रामीणों की मुश्किलों के संबंध में बातों का सिलसिला न टूटने पर उनके साथ हवाई उड़ान भी भरनी पड़ी।
ये वही मोना कौरव हैं, जिन्हे देश की सबसे कम उम्र की सरपंच होने का गौरव हासिल है। जब वह 2015 में सरपंच निर्वाचित हुई थीं, वह मात्र 21 साल, 3 महीने की थीं। वह उपराष्ट्रपति से सम्मानित भी हो चुकी हैं। मोना ने सरपंच चुने जाने के बाद न केवल अपनी ग्राम पंचायत की तस्वीर बदल डाली, बल्कि वह बेटियों के जन्म पर बैंडबाजे के साथ उनके घर वालों को उपहार से सम्मानित कराने लगीं। इस समय तो मध्य प्रदेश की लड़कियों के लिए वह रोल मॉडल बन चुकी हैं।
मोना कौरव बताती हैं कि उनके इलाके में पहले बेटियों की पढ़ाई 8वीं के बाद बंद करा दी जाती थी। एक वक़्त में जब अपने ननिहाल में रहने के दौरान वर्ष 2011-12 में उन्होंने आठवीं के बाद पढ़ने की जिद की थी तो उनके माता-पिता ने साफ मना कर दिया था। तब उनको अपने मामा राव विक्रम सिंह का संबल मिला, जिन्होंने ननिहाल के गांव से आठ किलो मीटर दूर कौड़िया कन्या स्कूल में उनका तो दाखिला करा दिया था लेकिन उनकी सहपाठी लड़कियां पढ़ाई छोड़कर घर बैठ गई थीं। उन दिनो जब राधे ठाकुर रोजाना उन्हें साइकिल से स्कूल छोड़ने जाते थे, कई बार नाले में पानी ज्यादा होने से रोड पर बैठकर पानी कम होने का इंतजार करना पड़ता था।
कई बार तो राधे ठाकुर के कंधे पर बैठकर नाला पार करना पड़ा। उनकी पढ़ाई की जिद ने उनके गांव की चार और लड़कियों को प्रोत्साहित किया। वे उनके स्कूल में जाकर पढ़ने लगीं। बाद में मुख्यमंत्री योजना से साइकिलें मिल गईं तो वे सभी एक साथ स्कूल जाने लगीं। कौड़िया के उस स्कूल में उनकी 10वीं तक पढ़ाई हुई। फिर इंटर में पढ़ने के लिए गाडरवारा जाने लगीं। वहां के बाद भोपाल के नूतन कॉलेज में दाखिला लेकर एमएससी फूड एंड न्यूट्रीशियन का कोर्स किया।
मोना कौरव बताती हैं, जब वह अपनी ग्राम पंचायत की सरपंच बनीं, मन में बेटियों को लेकर अपने पढ़ाई के दिनो की टीस गई नहीं थी। इसीलिए उन्होंने जनप्रतिनिधि के रूप में फर्ज अदा करते हुए बेटी के जन्म पर बैंडबाजे के साथ उत्सव मनाने और उपहार देने की परंपरा शुरू की। मुक्तिधाम जाकर न केवल महिलाओं-युवतियों के वहां न जाने की परंपरा तोड़ी, बल्कि अतिक्रमण हटवाकर शेड बनवाया। बच्चियों की परीक्षा की तैयारी के लिए सरपंच पाठशाला की शुरुआत कराई। वहां आज भी वह खुद पढ़ाती हैं। बच्चियों की कुपोषण से मुक्ति के लिए गोद लेकर उनको आंगनवाड़ी तक पहुंचवाती हैं।
मध्य प्रदेश के जनसंपर्क विभाग ने मोना पर महिला सशक्तीकरण की डॉक्यूमेंट्री बनाई है। उनको 17 फरवरी, 2018 को मुंबई में फेमिना प्रेजेंटेशन में वुमेन सुपर अचीवर अवॉर्ड मिला। उन्हे 23 जनवरी, 2018 को पुणे में उच्च शिक्षित आदर्श युवा सरपंच पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 17 दिसंबर, 2017 को राजस्थान में जोधपुर यूथ पार्लियामेंट की ओर से उनको भारत रत्न डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम राष्ट्र निर्माण पुरस्कार से नवाजा गया।
इसके अलावा 11 दिसंबर 2017 को दिल्ली में भारत-जापान ग्लोबल पार्टनरशिप समिट में मप्र का प्रतिनिधित्व करते हुए वन यूथ वन कल्चर थीम पर उन्हे सम्बोधित करने का अवसर मिला। पिछले साल पंचायती राज व्यवस्था पर काम करने वाले मिशन 'समृद्धि' के सातवें सम्मेलन में भी उनको सम्मानित किया गया।