मिलें मोतिहारी, बिहार के प्रसाद रत्नेश्वर से, हिम्मत और जज़्बे से दी कैंसर को मात, चीन के मठों में गाए जाते हैं इनके लिखे बौद्ध गीत
हर साल 4 फरवरी को वर्ल्ड कैंसर डे मनाया जाता है। इस बीमारी ने देश की कई मशहूर हस्तियों की जिंदगी छीन ली। कैंसर एक ऐसी बीमारी है जिसे आज भी लाइलाज माना जाता है। हालांकि कई लोग होते हैं जो अपने जज्बे और हिम्मत की बदौलत कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी को भी मात दे देते हैं।
ऐसे ही एक शख्स बिहार के मोतिहारी के प्रसाद रत्नेश्वर हैं। 60 साल के प्रसाद रत्नेश्वर मशहूर कवि, लेखक, पत्रकार और थिएटर आर्टिस्ट हैं। साल 2017 में उन्हें सेकेंड स्टेज का कैंसर हुआ।
कैंसर जैसी बीमारी होने के बाद भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और उसी की बदौलत वह आज एकदम स्वस्थ हैं। प्रसाद रत्नेश्वर अपने इलाज के दौरान काफी परेशानी का सामना करना पड़ा। उन्होंने अपने इसी अनुभव का कविता के रूप में वर्णन किया। 35 सालों से वह थिएटर से जुड़े हैं और 14 साल तक बिहार संगीत नाटक एकैडमी के सदस्य भी रहे। साल 2012 में उन्हें प्रतिष्ठित राष्ट्रीय पुरस्कार डॉ. अंबेडकर कला नेशनल अवॉर्ड भी मिल चुका है। वह तीन विषयों में एमए कर चुके हैं और पीएचडी भी कर चुके हैं।
मुंबई की सड़कों पर पत्नी के साथ भटकते रहे
अपने संघर्ष के बारे में योर स्टोरी से बात करते हुए वह कहते हैं कि मुंबई में मेरा कोई जानकार नहीं था। मैं और मेरी पत्नी भटकते रहते। शुरुआत में एक बड़े हॉस्पिटल के डॉक्टर ने मेरा ऑपरेशन करने से इनकार कर दिया। फिर मैं एक दूसरे अस्पताल में गया और वहां जाकर इलाज करवाया। वह आगे बताते हैं कि डाकू को अपने सारे पैसों की जानकारी दे दीजिए लेकिन किसी डॉक्टर को मत दीजिए।
जीवन में सब साथ छोड़ देंगे लेकिन पत्नी हमेशा साथ देगी
योर स्टोरी से बात करते हुए वह कहते हैं कि जीवन में आप कितने ही दोस्त क्यों ना बना लें, लेकिन आखिर में वक्त आने पर सब साथ छोड़ देते हैं सिवाय आपकी पत्नी के।
वह आगे कहते हैं,
"पत्नी हमेशा साथ देती है चाहे परिस्थितियां कितनी ही खराब क्यों ना हों! इसलिए हमेशा अपनी पत्नी से प्यार करें और उसका ध्यान रखें।"
चीन के मठों में भी पढ़े जाते हैं रत्नेश्वर के गीत
महात्मा गांधी ने साल 1917 में भारत में अपना पहला सत्याग्रह किया था। यह चंपारण सत्याग्रह था। प्रसाद रत्नेश्वर ने चंपारण सत्याग्रह पर दुनिया का पहला नाटक लिखा है जिसका नाम 'निलही कोठी' है। इसका मंचन 90 के दशक में नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा ने किया था। इस नाटक में अंग्रेजों के जमाने में नील की खेती, निलहों का शोषण, जबरदस्ती के टैक्स जैसे मुद्दों को दर्शाया गया है। प्रसाद रत्नेश्वर एक शानदार कवि भी हैं। उन्होंने कई बौद्ध गीत लिखे हैं जो चीन के मठों में गाए जाते हैं। साल 2009 में वह चीन में शोध पत्र प्रस्तुत करने गए थे।
कैंसर लाइलाज नहीं है, घबराएं नहीं
वह कहते हैं,
"जीवन की डोर ईश्वर के हाथ में है। सांसें ईश्वर की दी हुई हैं। जब तक वह नहीं चाहता, आपका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। कैंसर भी नहीं। कैंसर से घबराएं नहीं और इलाज में निरंतरता बनाए रखें।"
इलाज के दौरान लिखी थी यह कविता
शीर्षक: कर्क रोग नमस्कार!
अपनी ही अस्थियां गड़ने लगीं,
नर्म बिस्तर पर गुदा मार्ग से
लालिमा ने दी उपस्थिति
लगातार ले लिया जब
जांघों ने भुजाओं का आकार
हो गया लाचार सुविचारों का
राजकुमार।।
जांच से हो गया सिद्ध तब
मेरे मौन ने कहा- कर्क रोग, नमस्कार!
जन्म दिवस पर मित्रों से पाया
सालों-साल जीने का अधिकार
रिश्तों की हुई अग्नि परीक्षा
नीता पक्ष से मिला उधार
रेड क्रॉस के रुधिर बल से
हो गई शुरु, आंत के लिए
आंतों सी यात्रा घुमावदार
मिले लोग देखी दुनिया बस नीता जी के साथ
शल्य क्रिया की पूर्व रात्रि (24 सितम्बर)
हम दोनों पर थी भारी, कल सुबह मेरी लाश लेकर
मुंबई में कहां भटकेगी अकेली
किस्मत की मारी हूं फ़िलहाल ज़िंदा
आसमान पर उड़ रहा उम्मीदों का परिंदा।