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मिलिए NDA में महिलाओं के पहले बैच की टॉपर 19 साल की शनन से, सिर्फ 50 दिन में की परीक्षा की तैयारी

सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद शनन के पास सिर्फ 50 दिन थे परीक्षा की तैयारी करने के लिए और इतने से समय में उन्‍होंने बाजी जीत ली.

मिलिए NDA में महिलाओं के पहले बैच की टॉपर 19 साल की शनन से, सिर्फ 50 दिन में की परीक्षा की तैयारी

Thursday June 23, 2022 , 7 min Read

पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने नेशनल डिफेंस एकेडमी (NDA) के दरवाजे लड़कियों के लिए खोल दिए और पहली ही परीक्षा में हरियाणा की 19 साल की शनन ढाका ने परीक्षा में टॉप किया है. लड़कियों के लिए सिर्फ 19 सीटें थीं और देश भर से एक लाख 77 हजार लड़‍कियों ने यह परीक्षा दी थी. शनन को उम्‍मीद तो थी कि उनका चयन हो जाएगा, लेकिन ये नहीं सोचा था कि लड़के-लड़कियों सबकी फेहरिस्‍त में वह दसवें नंबर पर रहेंगी.

शनन के घर में इस वक्‍त उत्‍सव का माहौल है. मां बेटी की बलाएं लेती नहीं थक रहीं. पिता का सीना गर्व से चौड़ा हो गया है. पांचवी कक्षा में पढ़ने वाली छोटी बहन खुशी से पूरे घर में ऊधम मचा रही है. जब शनन कैमरे के सामने मीडिया के सवालों का आत्‍मविश्‍वास से भरकर जवाब देती हैं तो कैमरे के पीछे खड़े पिता आंखों में ढेर सारा दुलार और गर्व भरकर उसे देखते हैं. दरवाजे पर खड़ी मां मुस्‍कुराती हैं और धीरे से अपनी आंखों के कोर पोंछ लेती हैं.

घर पर मीडिया वालों का तांता लगा हुआ है. लेकिन इन सबके बीच दुबली-पतली देह और चमकीली आंखों वाली उस लड़की के व्‍यवहार में जो संतुलन, गरिमा और समझदारी है, आप उससे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकते. सवाल कुछ भी हो, शनन का जवाब सीधा और संतुलित होता है. उसकी ज्‍यादा तारीफ करो तो वो शरमाने लगती है. खुश है, लेकिन सफलता की चमक से निरापद भी.

सुप्रीम कोर्ट का फैसला और दो महीने में परीक्षा

आजादी के बाद 1948 से नेशनल डिफेंस एकेडमी सेना की तीनों शाखाओं (आर्मी, नेवी और एयरफोर्स) के अधिकारियों की भर्ती के लिए परीक्षा लेती रही है, लेकिन अब तक लड़कियों को इस परीक्षा में बैठने की इजाजत नहीं थी. एक साल पहले 2020 में कुश कालरा ने सुप्रीम कोर्ट में एक रिट पिटीशन दायर की, जिसमें भारत सरकार और सेना के इस नियम को भेदभावपूर्ण बताया. एक साल बाद 18 अगस्‍त, 2021 को उच्‍चतम न्‍यायालय ने आदेश दिया कि अब लड़कियां भी NDA की परीक्षा दे सकेंगी.

सितंबर में यह आदेश आया था और अगली परीक्षा नवंबर में होने वाली थी. जितने लड़कों ने नवंबर में यह परीक्षा दी, वह सब कई साल से इसकी तैयारी कर रहे थे क्‍योंकि उन्‍हें पता था कि वो परीक्षा में बैठने के योग्‍य हैं. लेकिन देश भर से परीक्षा में बैठी पौने दो लाख लड़कियों को यह कतई उम्‍मीद नहीं थी कि अचानक दो महीने बाद उन्‍हें परीक्षा देनी है. 

shanan dhaka, topper of national defence academy’s (nda) first women’s batch

परीक्षा की तैयारी के लिए सिर्फ 50 दिन  

कोर्ट के फैसले के वक्‍त चंडीगढ़ के जीरखपुर में रहने वाली शनन 18 साल की थीं. तब तक उन्‍होंने दिल्‍ली के लेडी श्रीराम कॉलेज में एडमिशन ले लिया था और सिविल सर्विस की तैयारी भी शुरू कर दी थी. शनन का दो ही सपना था, या तो आर्मी में जाना है या फिर सिविल सर्विस में.

यह भी संयोग ही था कि शनन यह परीक्षा दे सकीं. अगर कोर्ट का फैसला एक साल और देर से आता या परीक्षा अगले साल होती तो शनन की उम्र परीक्षा की उम्र सीमा से अधिक हो जाती.  

दुनिया का सबसे स्ट्रिक्‍ट टाइम टेबल

कोर्ट के फैसले के बाद शनन के पास सिर्फ 50 दिन थे तैयारी के लिए. वह कहती हैं, “वक्‍त बहुत कम था. मैंने एक टाइम टेबल बनाया. मैं रोज सुबह 4 बजे उठकर पढ़ाई करती. NDA के पुराने क्‍वेश्‍चन पेपर सॉल्‍व करती और देखती कि मैं कितने पानी में हूं. किस विषय में मेरी पकड़ मजबूत है और किसमें कमजोर.”

पहले बाकी बच्‍चों की तरह शनन के और भी शौक थे. सहेलियों के साथ घूमना, फिल्‍में देखना, गाना सुनना और शाम को पार्क में जाकर खेलना. लेकिन अब सब बंद हो गया. सुबह से लेकर रात तक शनन के एक-एक मिनट का टाइम टेबल फिक्‍स था.

पढ़ने के साथ दौड़ना भी

NDA परीक्षा का एक हिस्‍सा फिजिकल फिटनेस का भी होता है. शनन ने पढ़ाई के साथ उस पर भी ध्‍यान देना शुरू किया. रोज सुबह उठकर दौड़ना शुरू किया. फिटनेस बढ़ाने के लिए उन्‍होंने खाना कम नहीं किया, बल्कि थोड़ा ज्‍यादा खाने लगीं क्‍योंकि वह शरीर से कमजोर और दुबली-पतली थीं. मां ने दूध, दही, पनीर, सब्जियों की खुराक बढ़ा दी. दो महीने तक जोर-शोर से परीक्षा की तैयारी चलती रही.

shanan dhaka, topper of national defence academy’s (nda) first women’s batch

सिर्फ 19 सीटें और दो लाख लड़कियां

शनन ने परीक्षा के लिए कोई कोचिंग नहीं की. ज्‍यादातर सेल्‍फ स्‍टडी ही करती रहीं. कई बार गणित के किसी सवाल में फंसती तो अपने दोस्‍तों और आसपास के लोगों की मदद ले लेतीं. शनन कहती हैं, “परीक्षा देने से पहले मैंने कितनी बार अपनी खुद की परीक्षा ली और खुद को नंबर दिए. जिस दिन मैं पूरा पेपर सॉल्‍व कर लेती और 600 के ऊपर नंबर आ जाते, वो पूरा दिन खुश-खुश बीतता. लेकिन जिस दिन 400 नंबर मिलते उस दिन मैं थोड़ा निराश हो जाती थी.”

शनन कहती हैं, “19 सीटें थीं और दो लाख लड़कियां परीक्षा देने वाली. कभी-कभी डर भी लगता था कि पता नहीं, मैं ये कर भी पाऊंगी या नहीं. जब मैंने ये बात एक दिन पापा से कही तो वो बोले, ‘लेकिन तुम्‍हें तो सिर्फ एक ही सीट चाहिए.’ “

ये बात शनन के दिमाग में बैठ गई. “मुझे तो बस एक ही सीट चाहिए और वो सीट मुझे जरूर मिलेगी.”

परीक्षा खत्‍म होते ही सबसे पहले देखी फिल्‍म

जिस दिन परीक्षा खत्‍म हुई, शनन की खुशी का ठिकाना नहीं था. दो वजहों से, एक तो पेपर अच्‍छा हुआ था. वो संतुष्‍ट थीं और दूसरे इसलिए कि परीक्षा खत्‍म हुई, जान छूटी. परीक्षा से निजात पाते ही शनन ने पहला काम ये किया कि मन का खाना खाया, सहेलियों के साथ घूमने गईं और सायना नेहवाल वाली फिल्‍म देखी. उसके बाद पूरा परिवार भी पंचकूला के मोरनी हिल्‍स घूमने गया.

शनन का अनोखा नाम

शनन का नाम बड़ा अनोखा है. उनसे इस नाम का राज पूछो तो हंसकर कहती हैं, “हां, मुझे भी अपना नाम अच्‍छा लगता है. मेरी मां को ये नाम तब से पसंद था, जब मैं पैदा भी नहीं हुई थी. मम्‍मी की एक पड़ोसी थीं. उनकी बेटी का नाम शनन था. उन्‍होंने तभी तय कर लिया कि अगर मेरी बेटी हुई तो मैं उसका नाम शनन रखूंगी.”

शनन का पूरा परिवार ही मानो आर्मी में हैं. उनका पूरा बचपन चंडीगढ़, रूढ़की, दिल्‍ली के कैंट एरिया में बीता है. पिता विजय कुमार शनन सेना में ऑनरेरी नायक सूबेदार थे. दादा भी सूबेदार के पद से रिटायर हुए. पिता की लेह, ऊधमपुर, सिलिगुड़ी, श्रीनगर, कश्‍मीर, जलपाईगुड़ी जैसी जगहों पर पोस्टिंग रही, लेकिन फील्‍ड पोस्टिंग में वो परिवार को साथ लेकर नहीं जाते. घर का माहौल ऐसा था कि सेना के प्रति शुरू से ही एक सम्‍मान और गौरव का भाव था.

भविष्‍य से शनन की उम्‍मीदें

शनन ने सुप्रीम कोर्ट में उस केस को करीब से देखा था, जिसके फैसले के बाद लड़कियों के लिए NDA के दरवाजे खुल गए थे. भारत सरकार और NDA की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में पेश हुई एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्‍वर्या भाटी ने कोर्ट में कहा था कि महिलाओं को NDA की परीक्षा में न बैठने देना एक “पॉलिसी डिसिजन” है. कोर्ट ने उन्‍हें फटकार लगाई, “आपकी यह पॉलिसी महिलाओं के प्रति भेदभावपूर्ण है.”

शनन न्‍यायालय के इन शब्‍दों और इस फैसले के प्रति कृतज्ञ महसूस करती हैं. वो कहती हैं, “मैं एक बढि़या आर्मी ऑफीसर बनना चाहती हूं. मैं चाहती हूं यह साबित करना कि इतने सालों तक लड़कियों को इस परीक्षा में न बैठने देना वास्‍तव में भेदभावपूर्ण था. लड़कियां किसी भी क्षेत्र में कम नहीं हैं. मौका मिलने पर वह अपनी काबिलियत साबित कर रही हैं. बात सिर्फ भेदभाव को खत्‍म करने और उन्‍हें एक मौका देने की है.”