105 साल की ये दादी खटिया पर बैठकर हुक्का गुड़गुड़ाने की बजाय दौड़-दौड़कर गोल्ड मेडल जीत रही हैं
हरियाणा की रहने वाली 105 वर्ष की राम बाई ने 100 मीटर रेस 45.40 सेकेंड में पूरा करके नया कीर्तिमान बना दिया है.
105 साल की दादी. ये शब्द सुनते ही हमारी कल्पना में कैसी छवि बनती है. एक जर्जर देह वाली बूढ़ी सी स्त्री होगी. खटिया पर बैठी हुक्का फूंक रही होंगी, नाती-पोतों को खिला रही होंगी या बहुओं को आदेश दे रही होंगी. बहुत हुआ तो अपनी लाठी लेकर बाहर दालान तक घूम आती होंगी.
लेकिन ये 105 साल की दादी ऐसी नहीं हैं. अभी पिछले हफ्ते एथलेटिक्स फेडरेशन ऑफ इंडिया ने बेंगलुरू में नेशनल ओपेन मास्टर्स एथलेटिक्स चैंपियनशिप का आयोजन किया. इस चैंपियनशिप में 105 साल की दादी ने भी हिस्सा लिया और ऐसे जोशोखम से दौड़ीं कि जवानों के पसीने छूट गए. दादी ने 100 मीटर की रेस 45.40 सेकेंड में पूरा करके नया कीर्तिमान बना दिया. पिछला रिकॉर्ड स्वर्गीय मान कौर के नाम दर्ज था, जिन्होंने वर्ष 2017 में 74 सेकेंड में ये रेस पूरी की थी.
कौन हैं 105 साल की ये दादी
105 साल की दादी का नाम है राम बाई. वो हरियाणा के चरखी दादरी के एक गांव कादमा की रहने वाली हैं. उनका जन्म 1 जनवरी, 1917 को हुआ था. दादी के परिवार में यूं तो सभी एथलीट हैं, लेकिन दादी ने खेल की दुनिया में पहला कदम 104 बरस की उम्र में पिछले साल ही रखा.
पिछले साल नवंबर में वाराणसी में आयोजित मास्टर्स एथलेटिक्स मीट में राम बाई ने हिस्सा लिया और चार-चार गोल्ड मेडल जीतकर एक और रिकॉर्ड बना दिया. उस साल उन्होंने 100 मीटर और 200 मीटर की रेस में गोल्ड मेडल जीता. साथ ही रिले रेस और लंबी कूद का भी गोल्ड अपने खाते में दर्ज कर लिया.
उसके बाद तो मानो दादी के दौड़ने और जीतने का सिलसिला ही चल पड़ा है. वाराणसी के बाद वो केरल, महाराष्ट्र और कर्नाटक में आयोजित कई प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेकर मेडल जीत चुकी हैं. वो हर जगह अपनी पोती शर्मिला सांगवान के साथ जाती हैं. शर्मिला भी अपनी दादी से काफी
प्रभावित है.
कादमा की दौड़ने वाली दादी
राजधानी दिल्ली से तकरीबन 100 किलोमीटर दूर हरियाणा के कादमा गांव में प्रवेश करते ही आप आते-जाते किसी भी राहगीर से दौड़ने वाली दादी का पता पूछ लीजिए, वो आपको उनके घर तक छोड़कर आएगा. आपको उनका नाम न भी पता हो तो भी कोई फर्क नहीं पड़ता.
जैसे एक जमाने में कहते थे कि पेले को चिट्टी लिखनी हो तो सिर्फ पेले, ब्राजील लिखकर पोस्ट कर दो, चिट्ठी पेले के घर तक पहुंच जाएगी. कुछ वैसी ही कहानी हमारी दादी की भी है.
पूरे गांव में उन्हें दौड़ने वाली दादी के नाम से लोग जानते हैं. सुबह के चार बजे जब चिडि़यों ने भी पूरी आंखें नहीं खोली होतीं, कुत्ते और जानवर भी उनींदे होते हैं, गर्मियों के मौसम में हर घर के बाहर खटिया पर चादर ताने जवान नींद में कुनमुना रहे होते हैं, 105 साल की दादी अपने स्पोर्ट्स शूज पहनकर खेतों की पगडंडी पर दौड़ लगा रही होती हैं. उनका स्टैमिना ऐसा है कि उनके सामने नौजवान भी पानी भरें. इतना ही नहीं, अगर आप देह सुबह कादमा पहुंचे हैं तो बहुत मुमकिन है कि इस बार दादी आपको खेतों में फावड़ा चलाते, फसल की गुड़ाई करते, चारा काटते या कुछ भी और काम करते दिख जाएं.
इतने साल हो गए, लेकिन दादी की दिनचर्या में कोई बदलाव नहीं हुआ है. रोज सुबह उठकर दौड़ना, फिर खेतों में काम करना, घर के कामों में हाथ बंटाना. दादी खटिया पर बैठकर हुक्का गुड़गुड़ाती भी दिखती हैं, लेकिन अकसर देर शाम. जीवन के सारे व्यापार निपटाने के बाद, जब परिवार और गांव के लोग साथ बैठकर गपशप करते हैं.
राम बाई की सेहत का राज
उनकी सेहत का राज उनकी मेहनत और उनका जमीन से जुड़ा खाना है. भैंस का दूध और घी उनके रोजमर्रा के भोजन का हिस्सा है. वो गेंहू के बजाय जौ-बाजरे और मिलेट की रोटी खाना पसंद करती हैं. उन्हें चावल पसंद नहीं. पांच सौ ग्राम दही और ढाई सौ ग्राम घी उनके रोजमर्रा के भोजन का हिस्सा है. दादी जमकर खाती हैं और खूब मेहनत करती हैं. यही कारण है कि उनकी मांशपेशियां आज भी इतनी बलशाली हैं.
राम बाई को बिलकुल नहीं लगता है कि वो 105 साल की हैं तो अब जीवन का क्या भरोसा. पिछली प्रतियोगिताओं में हासिल हुई जीत ने उनका भरोसा और हिम्मत दोनों बढ़ा दी है. अब वो अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेना चाहती हैं. वो चाहती हैं अपना पासपोर्ट बनवाना और विदेश जाकर दौड़ना.
ये दादी की कहानी उन जवान लोगों के लिए एक सबक है, जो सोचते हैं कि अब जीवन में कुछ बड़ा हासिल करने का वक्त निकल चुका है.