SheSparks: महिलाओं के लिए कितना ज़रूरी है अपना सपोर्ट सिस्टम बनाना, जानिए Tech sector में शीर्ष पर पहुंची महिलाओं से
जब हम सफल महिलाओं को टेक्नॉलोजी जैसे पुरुषों के वर्चस्व वाले डोमेन के शीर्ष पर पहुंचते हुए देखते हैं, तो ऐसा लगता है कि भविष्य महिलाओं के लिए अवसरों से भरा हुआ है. लेकिन ये कोई आसान सफ़र तो नहीं रहा होगा. पुरुष प्रधान क्षेत्रों के अपने चैलेंजेज होते हैं. इन क्षेत्रों में काम करते समय महिलाओं को किन बाधाओं का सामना करना पड़ता है? इस पर 03 मार्च को दिल्ली के इंडिया हैबिटेट सेंटर में आयोजित साल 2023 के शीस्पार्क्स (SheSparks) में एक पैनल डिस्कसन के ज़रिए बात करने की एक सफल कोशिश की गई.
इस सेशन में टेक सेक्टर के टॉप वुमन लीडर्स- मथांगी श्री (Mathangi Sri), चीफ डेटा ऑफिसर,
; सुचारिता चप्परम (Sucharitha Chapparam), सीनियर डायरेक्टर ऑफ़ इंजीनियरिंग, ; दीपा पारिख (Deepa Parikh), हेड ऑफ सोल्यूशन इंजीनियरिंग इंडिया, ; रचीता चौधरी (Rachita Choudhary), वाइस प्रेसिडेंट, बैकेंड इंजीनियरिंग, ने टेक्नॉलोजी जैसे डोमेन के शीर्ष पर पहुंचने के अपने सफ़र और उसके चैलेंजेज की कहानी साझा की.कैसा आया यह बदलाव?
टेक की दुनिया में आए बदलावों के बारे में बात करते हुए मथांगी श्री ने उस क्षेत्र में आ रहे सकारात्मक बदलाव के बारे में बताते हुए कहा कि लीडरशीप पोजीशन में महिलओं की भागीदारी बढ़ रही है. और इसका कारण शिक्षा जगत में आ रहे बदलाव हैं. अब लडकियां भी हार्ड-कोर माने जाने वाले सब्जेक्ट्स, जैसे, मैथ्स और इंजीनियरिंग, पढ़ रही हैं और बहुत बेहतर कर रही हैं जिसका असर टेक सेक्टर में अब हमें देखने को मिल रहा है. मथांगी श्री की बातों से इत्तेफाक रखते हुए रचीता चौधरी ने कहा कि अर्बन और रूरल, दोनों क्षेत्रों में, इस सेक्टर को लेकर अवेयरनेस बढ़ रही है, जिसका असर हमें हायरिंग प्रोसेस में दिखती है.
सुचारिता चप्परम ने कहा कि जब मैं इस फील्ड में आई थी तब मैं अकेली महिला डेवलपर हुआ करती थी. आज यह पूरी तरह तो नहीं बदला है. पर स्थिति बेहतर जरुर हुई है. हालांकि, टेक सेक्टर को अभी बहुत आगे जाना है. उन्होंने कहा, “ब्रोकेन लैडर को बनाने की जरुरत है.”
कैसे बनाएं सपोर्ट सिस्टम?
महिलाओं को पेश आने वाली चैलेंजेज और उसकी वजहों के बारे में बात रखते हुए सभी पैनलिस्ट ने एक बात पर जोर देते हुए कहा कि कामकाजी महिलाओं को अपना सपोर्ट सिस्टम खुद तैयार करना होगा. यह सपोर्ट सिस्टम फैमिली तो हो ही सकती है, साथ में उनको खुद का सपोर्ट सिस्टम स्वयं ही बनना होगा.
महिला होने का एक सच यह भी होता है कि वो अगर सफल हैं या अपने काम के प्रति डेडीकेटेड हैं तो उन्हें इसका गिल्ट होता है कि वो अपने परिवार या बच्चों को इग्नोर कर रही हैं. सभी पैनलिस्ट ने इस बात पर जोर देते हुए कहा कि हमें इस सोच से बाहर निकल वर्क-लाइफ बैलेंस के फ़ॉर्मूले को अपनाना होगा. रचीता ने कहा कि महिलाओं की पहली परेफरेंस परिवार होता है हमारे सोशल कंडीशनिंग का नतीजा है. आपके न होने पर घर कौन संभालेगा- यह सवाल हमें अक्सर मां, सांस, पडोसी, हसबैंड से मिलता है. ऐसे में हमारी खुद की क्लैरीटी बहुत ज़रूरी होती है.
मथांगी ने बात आगे बढ़ाते हुए कहा कि हम महिलाएं मदद मांगने में बहुत झिझकती हैं. हमें लगता है सब हमें देख रहे हैं और हम कुछ भी नया करने से, सोचने से डरने हैं. मगर सच यह है कि हमें कोई नहीं देख रहा होता है. हमें आगे बढ़कर हेल्प मांगनी चाहिए और एक-दुसरे को हेल्प करनी चाहिए.
वहीं दीपा ने इस बात पर जोर डालते हुए कहा कि झिझक और इनसेक्युरिटी की जो हमें जॉब छोड़ने के निर्णय के तरफ धकेलती है इसलिए भी हमारे मन में घर कर जाती है क्यूंकि हममें से बहुत सी महिलाएं बिना सफलता का स्वाद चखे हुए जॉब फ़ोर्स से बाहर हो जाती हैं. अगर हम सफल हो जाते हैं, हमारी इनसेक्युरिटी ख़त्म हो जाती है. हम चीजों को मैनेज करने लग जाते हैं. इसलिए हमारा सफल होना भी बहुत जरुरी है.
क्या फ़र्क पड़ता है महिलाओं के लीडरशीप पोजीशन में आने से?
सुचारिता ने कहा मर्द हमेशा सेनियर पोजीशन में रहे हैं. पर जब महिलाएं वहां पहुंचती है तो उन्हें अपने को-वर्किंग वुमन फ़ोर्स से उनके डेली प्रोब्लम्स, दिक्कतें या उनके चैलेंजेज के बारे में पूछते रहना चाहिए. और अगर जरुरत पड़े तो गाइडेंस भी दें.
दीपा ने कहा लीडरशिप पोजीशन में होते हुए भी वल्नरेबल होने से मत डरिए. अपने डर को अपने टीम के साथ शेयर कीजिए. मोटिवेट होने के लिए किताब पढ़िए. अपने आप में यकीन रखिये. आगे बढिए.
रचीता ने कहा कि लीडरशिप पोजीशन पर होने की वजह से आप इन्फ़्लूएन्स बहुत कर सकते हैं. इसलिए अपने वर्क स्पेस में लीव्स को लेकर, महिलाओं के प्रोफेशनल ग्रोथ के लिए वर्कशॉप, ग्रुप्स फॉर्म कीजिए. वर्क-स्पेस को जेंडर फ्रेंडली बनानी की कोशिश करें. इस बात को आगे बढ़ाते हुए मथांगी श्री ने कहा हमें अपनी कहानियां जरुर कहनी चाहिए. हम एक-दुसरे की कहानी सुनकर इंस्पायर होते है. हमारी एक-दुसरे से बात-चीत करनी बहुत जरुरी है. ऐसे फोरम्स बहुत जरुरी हैं. और सबसे अहम्, नेटवर्किंग कीजिए. खुद को बदलिए मत. अपने पोजीशन में बने रहे. अपने संघर्ष को बताएं और साथ ही उस संघर्ष को जीतने की कहानी भी बताएं.
Edited by Prerna Bhardwaj