बाइक के सहारे सफलता के रास्तों को नाप रहीं शाइनी राजकुमार
सामाजिक जड़ता से उबरते हुए अब देश की महिलाएं गलत परंपराओं और रूढ़ियों से टकरा रही हैं। स्त्री विरोधी पौराणिक मान्यताओं को चुनौती दे रही हैं। सबरीमाला मंदिर प्रकरण के बाद इसी तरह का दृढ़ निश्चय रहा है, बच्चों, महिलाओं के लिए वर्जित केरल के ही अगस्थ्यरकूडम पहाड़ की चोटी पर जाने का शाइनी राजकुमार का अडिग फैसला।
अपनी एक रिपोर्ट में थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन बताता है कि महिलाओं के लिए भारत दुनिया का सबसे असुरक्षित देश है। वह कितना भी 'यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता' का पाठ करे, वास्तविकता इसके विपरीत है। वहां की स्त्री विरोधी सामाजिक दृष्टि और संवेदनहीनता की जड़ें युगों से चली आ रहीं परंपराओं में जमी हुई हैं। रावण की लंका से लौटीं सीता को अग्निपरीक्षा के बावजूद बहिष्कृत कर दिया जाता है। उन्हें वाल्मीकि आश्रम में शरण लेनी पड़ ती। आज भी आए दिन स्त्रियों को ससुराल वाले घर से निकाल देते हैं। द्रौपदी का निर्वस्त्रण करने की कोशिश होती है।
महाभारत में शकुंतला को दुष्यंत जानबूझकर पहचानने से इनकार कर देता है। चरित्र पर लांछन लगाता है। उद्योगपर्व में आया माधवी का आख्यान उसके प्रति बर्बर बरताव की कथा कहता है। मातृहंता परशुराम को नायक साबित किया जाता है। सबरीमाला मंदिर का पूरा घटनक्रम उसी पारंपरिक त्रासदी का आधुनिक अध्याय है लेकिन अब वक्त के साथ संघर्ष की नई-नई राहें भी उसी स्त्री समाज के बीच से सामने आ रहे हैं। वे साहस स्त्री विरोधी मान्यताओं से टकराने की नजीर बन रही हैं। एक ऐसी ही नजीर बनी हैं केरल की दिव्या दिवाकरण।
केरल में सबरीमाला मंदिर की ही तरह वहां के अगस्थ्यरकूडम नामक पहाड़ की उन्नीस सौ मीटर चोटी पर बच्चों और स्त्रियों का जाना मना है। दिव्या पेशे से शिक्षक हैं। उन्हें ऐसी जानकारी शिक्षण के दौरान ही एक नोटिस से मिली। उसके बाद उन्होने यह जानकारी को फेसबुक पर शेयर कर दिया। अपने वॉल पर उन्होंने यह चैलेंज भी साझा कर दिया कि महिलाओं को किसी भी जगह पर जाने की आजादी होनी चाहिए। इसके बाद उन्होंने कुछ लोगों के साथ मिल कर वन मंत्रालय से पहाड़ पर चढ़ने की अनुमति मांगी। दो साल बाद उन्हे अनुमति मिल गई।
इसी बीच हाईकोर्ट का आदेश आ गया कि महिलाएं सिर्फ बेस कैंप तक ही जा सकती हैं। उसी दौरान क्षेत्रीय कनी समुदाय के लोग विरोध करने लगे। उन लोगों का कहना था कि यह पहाड़ अगस्त्य ऋषि का विश्राम स्थल है। अगस्त्य ऋषि ब्रह्मचारी थे, इसलिए किसी भी महिला को उनके या उनके निवास के करीब जाने की अनुमति नहीं है। अगर कोई महिला पहाड़ की चोटी पर पहुंच गई, तो दुनिया का अंत हो जाएगा। इसी लिए आदिवासी समुदाय की महिलाएं वहां नहीं जाती हैं। नवंबर 2018 में केरल हाईकोर्ट के फैसले के साथ बहस खत्म हो गई। औरतों ने अपने हक की लड़ाई जीत ली थी। फैसले के तुरंत बाद 4300 लोगों ने पहाड़ पर चढ़ने के लिए अपील कर दी।
यद्यपि केरल में ज्यादातर लोग परंपराओं को तोड़ने से हिचकते हैं, शाइनी राजकुमार आदि ने पहाड़ पर चढ़ने की तैयारी कर ली लेकिन उनके कई सहयात्री जाने से हिचकने लगे। वे अजीब-अजीब तरह के किस्से सुनाने लगे, लेकिन शाइनी अडिग रहीं और उन्होंने पहाड़ की चोटी को नाप दिया। परंपराओं के साए में पिछले एक साल से केरल सबरीमाला मंदिर को लेकर विवादों का तूफान आया हुआ है, जहां सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद लड़कियों और महिलाओं को अंदर नहीं जाने दिया जा रहा है। आज भी विवाद ठंडा नहीं पड़ा है। जहां एक तरफ मंदिर में प्रवेश को उत्सुक महिलाएं हैं, वहीं दूसरी ओर लाखों महिलाओं के एकजुट हो कर मंदिर के इर्द गिर्द दीवार बनाने का घटनाक्रम भी हो चुका है। इससे साफ लगता है कि हमारे देश की महिलाएं अब उन परंपराओं और रूढ़ियों से टकराने लगी हैं, जो उनके अस्तित्व की नकारती या दूषित करती है।
मोटरसाइकिल की सवारी करने वाली शाइनी राजकुमार बचपन से ही दृढ़ निश्चयी रही हैं। उनका व्यक्तित्व करिश्माई रहा है। शाइनी की दिलचस्पी खेलकूद में भी रही है। उन्होंने केरल क्रिकेट टीम के लिए जूनियर वर्ग में क्रिकेट खेला था। लोगों द्वारा खुलकर उपहास और लिंगवादी टिप्पणियां किए जाने की परवाह न करते हुए शाइनी ने बुलेट ख़रीदी और कुछ बाइकिंग क्लब्स से जुड़ गईं। क्लब्स में बाइक राइडिंग करने वाली महिलाएं ही नहीं थीं। उनकी परिचित कुछ महिलाएं उनसे बाइक चलाना सिखाने का आग्रह करने लगीं तो शाइनी ने साल 2016 में डॉन्टलेस रॉयल एक्सप्लोरर्स नामक महिलाओं के लिए अलग बाइकर क्लब शुरू कर दिया, जिसमें आज 40 सदस्य हैं।
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