महिलाओं को सेल्फ डिफेंस सिखाकर सशक्त बना रही हैं सिल्वी कालरा
केरल में एक ऐसे माहौल में पली-बढ़ी जहां लगातार बिजली कटौती के साथ एक असुरक्षित माहौल हमेशा डराता था। हर दिन काम से घर लौटते समय, मुझे मुख्य सड़क से अपने घर तक 200 मीटर की दूरी को एक रिकॉर्ड समय में तय करना होता था। इतनी तेज दौड़ना पड़ता था कि खुद को पीटी ऊषा जैसा महसूस होता था। वैसे मजाक नहीं सच में उस दौरान मेरा दिल तेजी से धड़कता था, दिमाग में लाखों सवाल होते थे कि 'क्या होगा', और उस समय मेरा एकमात्र लक्ष्य होता था कि बिना किसी 'घटना' के घर तक पहुँच जाऊं। यह मेरे लिए डरावने विचार थे। क्योंकि अगर कोई मुझे छेड़ता है, तो मुझे नहीं पता था कि मैं कैसे रिएक्ट करूं, कैसे अकेले अपना बचाव करूं।
सुरक्षा के लिए आत्मरक्षा
दशकों बाद, भारतीय शहरों में आज भी बहुत कुछ नहीं बदला है। महिलाएं अभी भी अपने वर्कप्लेस से रात में अकेले यात्रा करने या देर तक बाहर रहने में असुरक्षित महसूस करती हैं। हर दिन, हम उन घटनाओं के बारे में सुनते हैं जो हमें झकझोर देती हैं।
हम सुरक्षित महसूस करने के लिए क्या कर सकते हैं? हालांकि जिस तरह से चीजें चल रही हैं हम उसमें अचानक बदलाव की उम्मीद नहीं कर सकते हैं, सबसे अच्छा ये हो सकता है कि हम सेल्फ डिफेंस सीख सकते हैं। किसी गुंडे को कैसे भगाना है, दरिंदे से कैसे फाइट करना है ये सीख सकते हैं। हम कैसे इनसे लड़ने के लिए अपनी शारीरिक शक्ति का उपयोग कर सकते हैं ये सीखना है। नई दिल्ली के हर दूसरे पत्रकार की तरह सिल्वी कालरा ने भी देर रात तक अपना काम किया और अकेले यात्रा करने के इस डर का अनुभव भी किया। कई बार चोर उनके हैंडबैग छीनकर भाग गए। इसके अलावा उन्हें हमेशा डर रहता था कि कहीं उनके साथ कोई अनहोनी न हो जाए।
सिल्वी स्वीकार करती है कि उन्होंने इस कारण से अपनी फुल-टाइम जॉब छोड़ दी। वह कहती हैं, “अकेले बाहर रहने के डर ने मेरे करियर को बाधित किया। मैं और स्टोरीज करना चाहती थी, लेकिन मैं ऑफिस से काफी दूर रहती थी इसलिए ये मेरे लिए काफी मुश्किल हो रहा था।” इंडिया टुडे टीवी और क्विंट में काम करने के बाद, वह अब दिल्ली में एक एनजीओ में संचार प्रबंधक के रूप में काम करती हैं।
आत्मविश्वास का निर्माण
एक दिन, काम से घर लौटते समय, सिल्वी ने दो घरेलू महिला कामगारों के बीच बातचीत सुनी जिसमें वो बोल रहे थे कि कैसे हर रात घर वापस जाना उनके लिए असुरक्षित होता है, लेकिन उनके पास कोई विकल्प नहीं है। सिल्वी कहती हैं, "यह बातचीत शायद सेल्फ-डिफेंस क्लासेस शुरू करने के लिए एक प्रेरणा थी।" सिल्वी बताती हैं कि कैसे उनकी इस पहल 'फाइटहर' ने पिछले अक्टूबर में आकार लिया। यह सब पश्चिमी दिल्ली के पश्चिम विहार में उनकी कॉलोनी पार्क में एक मार्शल आर्ट विशेषज्ञ द्वारा एक सेल्फ-डिफेंस क्लास के साथ शुरू हुआ। वह याद करती हैं, “क्लासिज़ सभी के लिए ओपन थे। झारखंड की एक 22 वर्षीय घरेलू सहायिका रेखा सहित दस लोगों ने भाग लिया। वह इस काम से बहुत उत्साहित थी और सीखना चाहती थी कि कैसे अपना बचाव किया जाए।”
सिल्वी ने अपनी जेब से उन क्लासेस के लिए पे किया लेकिन उन्होंने इसे नियमित रूप से ऑर्गनाइज करना जारी रखा। वह कहती हैं, “आत्मरक्षा सीखने का उद्देश्य सिर्फ अपनी शारीरिक शक्ति को बढ़ाना नहीं है, बल्कि अपने आत्मविश्वास के स्तर को भी बढ़ाना है ताकि आप किसी भी हमले की स्थिति में तैयार रहें। जब आप देर रात अकेले घूम रहे होते हैं, तो आप भयभीत या चिंतित होते हैं लेकिन ये कक्षाएं आपके उस डर को निकालने में मदद करेगी।”
कक्षाओं में लगभग 50 लोग शामिल हुए हैं, जिनमें से एक बड़ी संख्या महिलाओं और युवा लड़कियों की है। सिल्वी अब एक महीने में दो कक्षाएं आयोजित करने की योजना बना रही हैं। मिली प्रतिक्रिया से खुश होकर सिल्वी ने फाइटहर नाम से इस पहल को एक गैर-लाभकारी संगठन के रूप में पंजीकृत किया।
आत्मरक्षा जैसा कोई बचाव नहीं
सिल्वी बताती हैं कि फाइटहर में सेल्फ-डिफेंस क्लास कैसे ली जाती हैं। वे कहती हैं, “इन कक्षाओं में, ट्रेनर सिखाता है कि कैसे अगर चाकू से हमला होता है तब बचाव किया जाए। कैसे अगर पीछे से हमला होता है तब बचाव किया जाए। हमलावर के किस स्पॉट पर मारकर भागना है, अपने चेस्ट, पेट और चेहरे को कैसे डिफेंस करना है, बेसिक किक्स, चिन एंड एल्बो पंच, नी डिफेंस, जैसी सेल्फ डिफेंस तकनीक सिखाते हैं।" इन कक्षाओं में भाग लेने वाली बहुत सी लड़कियों में एक नौवीं कक्षा की छात्रा बबीता है, जिसने कई सेल्फ-डिफेंस मूव सीखी हैं।
वह कहती है, “यह एक ऐसा कौशल है जिसे हर लड़की को सीखना चाहिए। मैंने कक्षाओं का खूब आनंद लिया और मैं भविष्य में और अधिक भाग लेना चाहती हूं।” सिल्वी अब इन कक्षाओं को शहरी क्षेत्रों में सामुदायिक पार्कों जैसे अन्य खुले स्थानों तक विस्तारित करना चाहती है ताकि अधिक लोग आत्मरक्षा के प्रति जागरूक हो सकें। अंत में वह कहती हैं, “जब फाइटहर को कुछ फंडिंग मिलेगी तो मैं भविष्य में ग्रामीण क्षेत्रों में भी यह पहल लागू करना चाहूंगी। अब तक, मैं अपनी बचत के जरिए इसे चला रही हूं इसके अलावा समान मित्रों से थोड़ा सा योगदान भी मिला है।"