ज़रूरतमंद स्टूडेंट्स के सपनों को नई उड़ान भरने में मदद कर रहा 'मात्रम फ़ाउंडेशन'
आज हम बात करने जा रहे हैं, चेन्नई के एक फ़ाउंडेशन 'मात्रम' की। मात्रम फ़ाउंडेशन ग़रीब-ज़रूरतमंद मगर पढ़ने में अच्छे बच्चों को मुफ़्त उच्च-शिक्षा दिलाने का नेक काम करता है। हाल ही में योर स्टोरी की फ़ाउंडर और सीईओ ने मात्रम फ़ाउंडेश के दोनों को-फ़ाउंडर्स से बात की और जाना कि किस तरह इस फ़ाउंडेशन ने इस नेक मुहिम की शुरूआत की और इसके पीछे उनके लिए क्या प्रेरणा रही।
बातचीत के दौरान मात्रम फ़ाउंडेशन के को-फ़ाउंडर सुजीत कुमार ने एक घटना का ज़िक्र करते हुए बताया कि 2013 में वह तमिलनाडु के मदुरै में स्टूडेंट की करियर काउंसलिंग के लिए एक सेमिनार को संबोधित कर रहे थे। सेमिनार ख़त्म होने के बाद कार्यक्रम के आयोजक ने उन्हें बताया कि एक बच्ची बाहर उनका इंतज़ार कर रही है।
सुजीत उस बच्ची से मिलने पहुंचे और उसकी हालत देखकर दंग रह गए। सुजीत बताते हैं, "उस लड़की की उम्र 12 साल से ज़्यादा नहीं होगी और वह फटे कपड़ों में, एक नोटबुक अपनी छाती से लगाए मेरे सामने खड़ी थी। उसने मुझसे कहा कि वह कोई ऐसा कोर्स करना चाहती है, जिसके बाद उसे नौकरी ज़रूर मिल जाए।"
सुजीत ने उस लड़की का बैकग्राउंड जानने की कोशिश की और पता चला कि उसकी मां मर चुकी है और उसका पिता शराबी था। मां के मरने के बाद वह अपने भाई-बहनों को पालने के लिए और अपनी पढ़ाई जारी रखने के लिए लोगों के घरों में काम करने लगी। बच्ची की कहानी जानने के बाद सुजीत कुमार के होश उड़ गए। इसके बाद उन्होंने लड़की की मदद करने का फ़ैसला लिया। सुजीत इन्फ़ोसिस के ह्यूमन रिसोर्स विभाग में कार्यरत हैं और इस वजह से उनके संपर्क काफ़ी अच्छे हैं।
सुजीत ने फ़ैसला लिया कि वह अपने किसी पहचान वाले व्यक्ति से लड़की को उच्च-शिक्षा दिलाने की सिफ़ारिश करेंगे और अगर उन्हें लड़की की पढ़ाई के लिए पैसा देना पड़ा तो वह देंगे। उन्होंने चेन्नई में एक कॉलेज के चेयरमैन को फ़ोन लगया और उन्हें पूरी कहानी बताई। साथ ही, उन्होंने चेयरमैन से एक फ़्री इंजीनियरिंग सीट देने के लिए कहा और फ़ोन की दूसरी तरफ़ ख़ामोशी छा गई। जो जवाब सुजीत को मिला, वह उनके लिए चौंकाने वाला था। कॉलेज के चेयरमैन ने कहा कि वह एक नहीं, 20 सीटें देने को तैयार हैं और इस तरह से ही मात्रम फ़ाउंडेशन की शुरुआत हुई।
सुजीत ने इन्फ़ोसिस में अपने कुछ सहयोगियों से बात की और उनसे ऐसे ही ज़रूरतमंदों के बारे में पता करने के लिए मदद मांगी। कॉलेज के चेयरमैन ने उन्हें इंजीनियरिंग की 20 सीटों का वादा दिया था और सुजीत इस मौक़े को भुनाना चाहते थे। इस काम में उनकी सहयोगी पुनीता ऐंथनी ने उनका विशेष सहयोग किया। तमिल भाषा में 'मात्रम' का मतलब होता है बदलाव और सुजीत द्वारा शुरू की गई बदलाव की बयार आजतक नहीं थमी है। मात्रम फ़ाउंडेशन, 35 इंजीनियरिंग विश्वविद्यालयों के साथ जुड़ा हुआ है और आर्थिक रूप से कमज़ोर 677 स्टूडेंट्स के लिए मुफ़्त में इंजीनियरिंग की पढ़ाई का इंतज़ाम कर रहा है।
यह सुनिश्चित करने के लिए सिर्फ़ ज़रूरतमंदों को ही यह सुविधा मिले, मात्रम फ़ाउंडेशन ने एक 5 चरणों की प्रक्रिया निर्धारित की है। फ़ाउंडेशन अपने कैंडिडेट्स की पहचान को गुप्त रखता है ताकि उनकी योग्यता को ध्यान में रखा जा सके, न कि सिर्फ़ उनकी आर्थिक स्थिति। फ़ाउंडेशन रोज़ागर के लिए तैयार करने के उद्देश्य के साथ अपने कैंडिडेट्स को सॉफ़्ट स्किल्स आदि का प्रशिक्षण भी देता है।
सुजीत ने योर स्टोरी की सीईओ श्रद्धा शर्मा को बताया कि अनाथ बच्चों को पहली प्राथमिकता दी जाती है। साथ ही, लड़कियों की शिक्षा को भी ख़ास तवज्जोह दिया जाता है। फ़ाउंडेशन द्वारा लाभान्वित होने वाले कैंडिडेट्स में 80 प्रतिशत लड़कियां हैं। इस संबंध में सुजीत कुमार का मानना है कि अगर एक घर में एक लड़की शिक्षित हो जाती है तो इससे आने वाली पीढ़ियों के शिक्षित होने का रास्ता साफ़ हो जाता है।
चेन्नई से ऑपरेट होने वाले मात्रम फ़ाउंडेशन को आठ लोगों की कोर टीम चला रही है। मात्रम के वोलंटियर्स में 4 साल से लेकर 92 साल तक के वोलंटियर्स शामिल हैं। जहां एक तरफ़ सुजीत कुमार कॉलेज सीट सुरक्षित करने और फ़ंडिंग जुटाने का काम करते हैं, वहीं कंपनी की दूसरी को-फ़ाउंडर पुनीता कैंडिडेट्स के ऐकेडमिक स्किल्स पर काम करती हैं। सुजीत कुमार की पत्नी फ़ाउंडेशन की हेल्पलाइन संभालती हैं। कंपनी की को-फ़ाउंडर पुनीता का कहना है कि वह मात्रम को फ़ाउंडेशन नहीं बल्कि एक परिवार के रूप में देखती हैं।
भविष्य की योजनाओं पर बात करते हुए सुजीत कुमार कहते हैं, "2013 में जब हमने अपनी इस मुहिम की शुरुआत की थी, तब हम हीं जानते थे कि यह इतनी बड़ी हो जाएगी। लेकिन अभी हमें और लंबा सफ़र तय करना है और ज़्यादा से ज़्यादा संस्थानों को अपने साथ जोड़ते हुए अधिक से अधिक ज़रूरतमंदों को लाभान्वित करना है।"
सुजीत कुमार बताते हैं कि मात्रम फ़ाउंडेशन की बदौलत न सिर्फ़ इन ज़रूरतमंदों की ज़िंदगी संवर रही है बल्कि हर टीम मेंबर और उनके परिवार के सदस्यों की ज़िंदगी में भी बदलाव आया है और वे अपने आस-पास रहने वालों लोगों के प्रति पहले से कहीं अधिक संवेदनशील और फ़िक्रमंद हो गए हैं।