जानिए कैसे 'सिंपल' के जरिए पेमेंट सिस्टम को अदृश्य बना रहा है बेंगलुरु का यह स्टार्टअप
भारत में बैंकों और डिजिटल भुगतान प्रणाली के उपयोग में आने से पहले, लोग एक ऑफलाइन वॉलेट सिस्टम को फॉलो करते थे, जिसे 'खाता सिस्टम' कहा जाता था। भरोसे के उपर बना ये 'खाता सिस्टम' पिछले दिनों में हर कोई इस्तेमाल करता था चाहे वह दूधवाला हो या दुकानदार। ऑफलाइन वॉलेट सिस्टम की ओनरशिप इसको इस्तेमाल करने वाले यूजर्स के पास ही थी इसलिए ये सुविधाजनक था। इसके पीछे मकसद ये था कि दोनों पार्टियों के बीच व्यापार बिना किसी रुकावट और देरी के होना चाहिए।
इसी तरह, यूएसए में, जब 50 के दशक के उत्तरार्ध में क्रेडिट या डेबिट कार्ड मौजूद नहीं थे, अगर उनके पास पर्याप्त कैश नहीं होता था तो लोग दुकानों पर चेक से भुगतान करते थे।
सिंपल (Simpl) की सह-संस्थापक चैत्रा चिदानंद कहती हैं,
"यह प्रणाली अभी भी यूके और यूरोप के कई हिस्सों में प्रचलित है। कोई व्यक्ति आपके घर एक बिल भेजेगा, और महीने के अंत में, आप सभी भुगतानों को क्लियर करके अपनी चेक बुक को संतुलित करते हैं। इसी तरह आप अपनी सभी खरीद और खर्चों का हिसाब रखते हैं। यह आपके अपने व्यक्तिगत नेतृत्व की तरह है।"
हालाँकि, स्मार्टफोन के उदय के साथ, बिक्री की बात अब यूजर्स के साथ वापस आ गई है। भुगतान के क्षेत्र में अवसर को देखते हुए ग्राहकों के हाथों में सत्ता वापस लाने के लिए, चैत्र चिदानंद और नित्यानंद शर्मा ने मार्च 2016 में बेंगलुरु में सिंपल की शुरुआत की। यह एक एडिशनल क्रेडिट वॉलेट है। इसके जरिए यूजर्स अपनी शॉपिंग के 20 दिनों के सायकल के बाद पूरे बिल का भुगतान कर सकते हैं।
दरअसल सिंपल एक उधार देने वाला प्लेटफॉर्म नहीं है, लेकिन एक स्मूथ चेकआउट मकेनिज्म ऑफर करता है।
क्रेडिट कार्ड को कहें 'ना'
स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी से एमबीए स्नातक, चैत्रा भारत आने से पहले स्टैनफोर्ड एंजेल्स और सिलिकॉन वैली में उद्यमियों के साथ काम कर रही थीं।चैत्रा के अनुसार, अमेरिका में रहने के दौरान, उन्हें बताया गया था कि उनका FICO स्कोर अच्छी तरह से रहने में सक्षम होने के लिए बहुत जरूरी है और उन्हें जल्द ही क्रेडिट कार्ड के लिए आवेदन करना होगा। हालाँकि, सिंपल के सह-संस्थापक, और चैत्रा की एक दोस्त के पति, नित्यानंद शर्मा, क्रेडिट कार्ड लेना नहीं चाहते थे। उच्च ब्याज दरों के साथ, चैत्रा ने सोचा कि क्रेडिट कार्ड लेना सबसे महंगा और आर्थिक रूप से गैर-जिम्मेदाराना मामला होगा।
चैत्रा कहती हैं,
"भारत में फाइनेंस स्पेस में काफी ट्रस्ट डिफिसिट और फ्रिक्शन है। बैंक अपनी प्रक्रियाओं को अविश्वास के साथ आगे बढ़ाते हैं, जबकि हर दूसरे व्यवसाय में टैब सिस्टम होता है। ऐसी डे जॉब होती हैं जहाँ लोग बैठे रहते हैं और भुगतान व किराया जमा करते रहते हैं, और यह सब केंद्रीकृत संस्थानों में विश्वास की एक बुनियादी कमी के साथ वापस जाता है। लेकिन समाज अधिक विश्वास पर काम करता है। यही वह अवसर है जिसे हमने देखा। ऐसे लोग हैं जो भरोसे लायक हैं इसलिए हमें एक ऐसी प्रणाली बनाने की आवश्यकता है जहां अवसरवाद को कम से कम किया जाए और भरोसे लायक लोगों को वैल्यू दी जाए।"
यह काम किस प्रकार करता है?
सिंपल व्यापारियों को उनके ग्राहकों के लिए फ्रिक्शनलेस खरीदारी का अनुभव प्रदान करने में सक्षम होने के लिए अपना तकनीकी प्लेटफॉर्म देता है। स्टार्टअप अपने मार्चेंट्स के साथ एक ओपन P&L (लाभ और हानि) मॉडल पर काम करता है। ऐप क्लाउड में एक लेजर होता है जो मर्चेंट के ट्रांसेक्शनल सिस्टम से जुड़ा होता है। ये मर्चेंट द्वारा प्रदान किए गए कुछ डेटा पॉइंट्स का उपयोग करके उनसे जुड़ता है।
हालाँकि, सिम्पल की लागतों के बारे में पूछे जाने पर, चैत्रा उनमें से तीन के बारे में बाताती हैं - वर्किंग कैपिटल, डिफॉल्ट की लागत और निपटान की लागत। दरअसल, स्टार्टअप यूजर्स से दिक्कतों को दूर करने के लिए जो कुछ भी कर सकता है वह करता है, ऐसे में यूजर्स को सीधे बैंक खातों से निपटाना होता है।
इसके बाद, यह यूजर्स से निपटान की लागत को ऑटोमैटिकली हटा देता है। स्टार्टअप अंडरराइटिंग, धोखाधड़ी की रोकथाम और पेमेंट कलेक्शन के लिए मशीन लर्निंग का उपयोग करता है।
छात्र और सिंपल के यूजर ऋषभ भगत कहते हैं,
“ऐसे समय में जब मेरे पास कैश कम होता है या मेरे खाते में ज्यादा पैसे नहीं होते हैं, तब मैं इस वॉलेट के सारे पैसे इस्तेमाल कर लेता हूं। फूड ऑर्डर करते समय, रिचार्ज के लिए भुगतान करते हुए और खरीदारी करते समय सिंपल काफी मददगार है।”
स्टार्टअप में 95 कर्मचारी हैं। इसने मजबूती से अपने यूजर बेस को चार श्रेणियों में वर्गीकृत किया है। डिलिजेंट देवा (Diligent Deva) वे यूजर्स हैं जो समय पर किराए का भुगतान करते हैं; फ्रीलांस फ्रेडी वह जगह है जहां छात्र इस सर्विस का उपयोग करते हैं और पेमेंट के दौरान गायब हो जाते हैं, ब्रोक बाबू यंग मिलेनियल्स हैं जो एक महीने बाद विलंब शुल्क के साथ भुगतान करते हैं, और फिर आते हैं लेजी लक्ष्मण जो पेमेंट्स पोस्टपोन करते रहते हैं।
टीम के अनुसार, यूजर्स को चार श्रेणियों में वर्गीकृत करना उन्हें बताता है कि कैसे अपने संचालन को बेहतर और कुशल बनाने के बारे में जाना जाए।
रिवेन्यू और कंपटीशन
ACI वर्ल्डवाइड द्वारा AGS Transact Technologies (AGSTTL) के साथ एक व्हाइट पेपर में कहा गया है कि भारत में डिजिटल लेनदेन 2025 तक सालाना 1 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच सकता है। हालाँकि, सिंपल क्रेडिट स्पेस में पहला स्टार्टअप नहीं है। PayU का LazyPay अप्रैल 2017 से बाजार में है। पिछले साल फरवरी में, किश्त (Kissht) आया, जिसने 'स्कैन एंड पे लेटर' फीचर भी लॉन्च की, इससे यूजर्स अपने क्यूआर कोड का उपयोग करके क्रेडिट पर खरीदारी कर सकते हैं।
ऐसे समय में जब व्यापारी कंपनियां अपने खुद के प्रीपेड वॉलेट्स के निर्माण में व्यस्त थीं, ऐसे में सिंपल को चीज सबसे अलग बनाती है वो है इसका रियल टाइम में एक बटन के क्लिक पर सभी को एक पारदर्शी वित्तीय प्रणाली प्रदान करना है, जिसमें कोई भी हिडेन चार्जेस नहीं है।
कंपनी के अनुसार, उसने स्थापना के बाद से 28 प्रतिशत राजस्व वृद्धि की है। इसने वीजा के पूर्व सीईओ, आईए वेंचर्स और जोसेफ सॉन्डर्स से फंडिंग में कुल 2.5 मिलियन डॉलर जुटाए हैं। इन वर्षों में, स्टार्टअप ने प्रोसेस्ड ट्रांसक्शन्स के संदर्भ में 5 गुना वृद्धि देखी है। पांच लाख से अधिक डाउनलोड के साथ, ऐप Google Play Store और ऐप स्टोर दोनों पर उपलब्ध है।
भविष्य की योजनाएं
भुगतान के अनुभवों को पूरी तरह से अदृश्य बनाने की वृद्धि के साथ, चैत्रा का मानना है कि इस इनोवेशन को शेष दुनिया में ले जाया जा सकता है। वह कहती हैं, यूएस में उनके निवेशक बताते हैं कि सिस्टम उनके बाजार के लिए भी मायने रखता है, और ऐसा कोई कारण नहीं है कि अमेरिकी व्यापारियों को सिर्फ लेनदेन को प्रोसेस करने के लिए वीजा मास्टरकार्ड को दो से तीन प्रतिशत का भुगतान करना पड़े।
वह विनम्रतापूर्वक कहती हैं,
"हमने कुछ भी रीइनवेंट नहीं किया, बल्कि खाता सिस्टम से प्राप्त प्रेरणा ली है जो हमेशा से देश में मौजूद थी।"